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
हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान देश का व्यापार घाटा बढ़कर 192 अरब डॉलर हो गया है। फरवरी 2022 के आखिर से रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण कच्चे तेल के वैश्विक दामों में इजाफे से पेट्रोलियम आयात के मूल्य में तेज उछाल के कारण पेट्रोलियम की आयात की जाने वाली खेपों का मूल्य एक साल पहले की तुलना में करीब दोगुना होने की वजह से आयात 610 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। गौरतलब है कि भारत के द्वारा कच्चे तेल की कुल जरूरतों का करीब 85 फीसदी हिस्सा आयात किया जाता है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से भारत का व्यापार घाटा बढ़ने की प्रवृत्ति दिखाता है। वित्त वर्ष 2021-22 में देश के कुल आयात मूल्य में पेट्रोलियम आयात का हिस्सा 26 प्रतिशत था। पेट्रोलियम उत्पादों के अलावा इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं और सोने का आयात एक-तिहाई तक बढ़ा और इसके परिणामस्वरूप व्यापार घाटे में इजाफा हुआ है। भारत का उत्पाद आयात वित्त वर्ष 2021-22 में पूर्ववर्ती वित्त वर्ष 2020-21 के 394.44 अरब डॉलर की तुलना में 54.71 प्रतिशत बढ़ा है। नतीजतन उत्पाद व्यापार घाटा पहली बार 100 अरब डॉलर का स्तर पार कर गया है। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के अलावा देश के व्यापार घाटे के बढ़ने का एक बड़ा कारण चीन से तेजी से बढ़े हुए आयात भी है। इस समय चीन से तेजी से बढ़ा आयात और देश का तेजी से बढ़ा विदेश व्यापार घाटा इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि पिछले 6-7 वर्षों से व्यापार घाटा घटाने के लगातार प्रयास हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार वोकल फॉर लोकल और आत्मनिर्भर भारत अभियान के माध्यम से स्थानीय उत्पादों के उपयोग की लहर को देशभर में आगे बढ़ाया है। हाल ही के वर्षों में चीन को आर्थिक चुनौती देने के लिए सरकार के द्वारा टिक टॉक सहित विभिन्न चीनी एप पर प्रतिबंध, चीनी सामान के आयात पर नियंत्रण, कई चीनी सामान पर शुल्क वृद्धि, सरकारी विभागों में चीनी उत्पादों की जगह यथासंभव स्थानीय उत्पादों के उपयोग की प्रवृत्ति जैसे विभिन्न प्रयास किए गए हैं। वर्ष 2019 और 2020 में चीन से तनाव के कारण देशभर में चीनी सामान का जोरदार बहिष्कार दिखाई दिया था।
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