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- न्याय व्यवस्था में...
देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने पिछले दिनों न्याय व्ययवस्था को जीर्ण-शीर्ण बताते हुए यह भी कहा था कि जो व्यक्ति न्याय की आस में न्यायालय जाता है, वह अपने निर्णय पर प्राय: पश्चाताप करता है। न्याय व्यवस्था के शीर्ष पर रहे व्यक्ति का यह बयान चिंताजनक है। गोगोई मुख्य न्यायाधीश रहते हुए खुद न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की निर्णायक पहल कर सकते थे, लेकिन इस पहल का इंतजार ही होता रहा। उन्होंने राज्यसभा में अपने मनोनयन को स्वीकार कर न्याय-व्यवस्था की स्वतंत्रता और विश्वसनीयता को प्रश्नांकित किया। हाल में अमेरिकी संस्था फ्रीडम हाउस ने जिन कारणों से भारत की न्यायिक स्वतंत्रता पर सवाल खड़ा किया, उनमें रंजन गोगोई का राज्यसभा सदस्य बनना भी है। हालांकि वह कोई अपवाद नहीं। सेवानिवृत्ति उपरांत न्यायमूर्तियों की इस प्रकार की नियुक्तियां पहले भी होती रही हैं। एमसी छागला, बहरुल इस्लाम, रंगनाथ मिश्र, कोका सुब्बाराव, फातिमा बीवी, रमा जोइस, गोपाल स्वरूप पाठक और सतशिवम जैसे कुछ चुनिंदा उदाहरण हैं।