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वर्ष 2004 में भारत सरकार ने तय किया था कि 20 अगस्त को अक्षय ऊर्जा दिवस के तौर पर मनाया जाएगा ताकि अक्षय ऊर्जा या नवीकरणीय ऊर्जा के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके
वर्ष 2004 में भारत सरकार ने तय किया था कि 20 अगस्त को अक्षय ऊर्जा दिवस के तौर पर मनाया जाएगा ताकि अक्षय ऊर्जा या नवीकरणीय ऊर्जा के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके। पिछले 4-5 दशकों में विश्व की लगातार बढ़ती हुई जनसंख्या, नई-नई तकनीकों के विकास से और बिजली की बढ़ती मांग के कारण विश्व स्तर पर ऊर्जा की मांग भी काफी तेजी से बढ़ रही है। इस मांग को नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से पूरा किया जा सकता है। अब नवीकरणीय ऊर्जा ही भविष्य का इकलौता विकल्प रह गया है क्योंकि यही कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करके पर्यावरण की सुरक्षा में मददगार है। पिछले कई वर्षों से हम जिन ऊर्जा स्रोतों को जीवाश्म ईंधन के रूप में उपयोग करते आ रहे हैं, वे एक सीमित संसाधन हैं। जहां एक तरफ उनको विकसित होने में लाखों साल लग जाते हैं, वहीं दूसरी तरफ ज्यादा दोहन के कारण समय के साथ-साथ वे कम होते जा रहे हैं। सौर ऊर्जा को बिजली में बदलकर उपयोग में लाया जा सकता है। इस ऊर्जा को प्रयोग में लाने के लिए सोलर पैनलों की जरूरत होती है। हमारे देश की धरती पर पांच हज़ार लाख किलोवाट घंटा प्रति वर्गमीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है। साफ धूप वाले दिनों में सौर ऊर्जा का औसत पांच किलोवाट घंटा प्रति वर्गमीटर होता है।
एक मेगावाट सौर ऊर्जा के उत्पादन के लिए लगभग तीन हेक्टेयर समतल भूमि की आवश्यकता होती है। वैश्विक महामारी कोरोना के कारण लागू किए गए लॉकडाउन से हवा की गुणवत्ता में काफी सुधारा आया, जिससे मार्च से मई महीने के बीच पृथ्वी को 8.3 प्रतिशत अधिक सौर ऊर्जा मिली है। हमारा देश एक उष्ण-कटिबंधीय देश है। उष्ण- कटिबंधीय देश होने के कारण हमारे यहां वर्ष भर में सूर्य का प्रकाश लगभग 3000 घंटे तक मिलता है। भारत सरकार ने 2022 के अंत तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसमें पवन ऊर्जा से 60 गीगावाट, सौर ऊर्जा से 100 गीगावाट, बायोमास ऊर्जा से 10 गीगावाट और लघु जलविद्युत परियोजनाओं से 5 गीगावॉट शामिल हैं। सौर ऊर्जा उत्पादन में सबसे ज्यादा योगदान रूफटॉप सौर ऊर्जा और सोलर पार्क का है। यह देश में बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता का 16 प्रतिशत है। सरकार का लक्ष्य इसे बढ़ाकर स्थापित क्षमता का 60 प्रतिशत करना है। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2035 तक देश में सौर ऊर्जा की मांग सात गुना तक बढऩे की संभावना है। हमारे देश में यदि सौर ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाया जा सके तो इससे जीडीपी दर भी बढ़ेगी। नवीकरणीय ऊर्जा विकल्प प्रचुर मात्रा में सरलता से उपलब्ध हैं। इन पर जीवाश्मीय ईंधनों की तरह किसी भी देश का एकाधिकार नहीं होता है। इस कारण इनकी आपूर्ति आसानी से की जा सकती है।
इस तरह हम ये कह सकते हैं कि नवीकरणीय ऊर्जा विकल्प सर्वव्यापी और पूरी दुनिया में आसानी से उपलब्ध है। धरती को स्वच्छ रखने की जि़म्मेदारी को ध्यान में रखते हुए हमारे देश ने संकल्प लिया है कि वर्ष 2030 तक बिजली उत्पादन की हमारी 40 फीसदी स्थापित क्षमता ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों पर आधारित होगी। इस महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के साथ ही हमारा देश विश्व के सबसे बड़े स्वच्छ ऊर्जा उत्पादकों में शामिल हो जाएगा। राष्ट्रीय पवन सौर स्वच्छता नीति-2018 के अनुसार पवन सौर ऊर्जा उत्पादन के वर्तमान लक्ष्य 80 गीगावाट को वर्ष 2022 तक दोगुने से भी ज्यादा अर्थात 225 गीगावाट तक पहुंचाने का लक्ष्य है। नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में कई चुनौतियां भी हैं। लोगों में नवीकरणीय ऊर्जा को लेकर जागरूकता का अभाव है जिससे उपलब्ध क्षमता के बावजूद नवीकरणीय ऊर्जा का दोहन काफी कम है और इसके साथ ही कुशल मानव संसाधनों का ही अभाव है। सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने में सरकार की पहल सराहनीय है। इसको बढ़ावा देने के लिए कई नए-नए कार्यक्रम शुरू किए गए हैं जैसे राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन जिसका लक्ष्य अनुसंधान एवं विकास और कच्चे माल तथा उत्पादों के घरेलू उत्पादन के माध्यम से देश में सौर ऊर्जा उपयोग की लागत को कम करना है। एक अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन भी किया गया है। यह गठबंधन सौर ऊर्जा संपन्न देशों का एक संधि आधारित अंतर-सरकारी संगठन है। इसकी स्थापना की पहल भारत ने की थी और पेरिस में 30 नवंबर 2015 को संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के दौरान भारत और फ्रांस ने इसकी संयुक्त शुरुआत की थी।
कर्क और मकर रेखा के बीच आंशिक या पूर्ण रूप से बसे हुए 122 सौर संसाधन संपन्न देशों के इस गठबंधन का मुख्यालय गुरुग्राम (हरियाणा) में है । इस फ्रेमवर्क में वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा और उन्नत व स्वच्छ जैव-ईंधन प्रौद्योगिकी के लिए शोध में निवेश को बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। सरकार द्वारा ग्रिड से जुड़े हुए रूफटॉप और छोटे सौर ऊर्जा संयंत्र कार्यक्रमों का भी क्रियान्वयन किया जा रहा है, जिनके तहत अलग-अलग क्षेत्रों में 2100 मेगावाट की क्षमता स्थापित की जा रही है। इस कार्यक्रम में सामान्य श्रेणी वाले राज्यों में लागत के 30 प्रतिशत तक और विशेष श्रेणी वाले राज्यों में लागत के 70 प्रतिशत तक केंद्रीय सरकार द्वारा वित्त सहायता मुहैया कराई जा रही है। स्मार्ट सिटी बनाने में भी 10 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को कहा गया है। भारत की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बुनियादी ढांचा मज़बूत करने की ज़रूरत है और इसके साथ ही ऊर्जा के नए स्रोत तलाशना भी ज़रूरी है। सौर ऊर्जा क्षेत्र देश की ऊर्जा मांग को पूरा करने में सहायक साबित हो सकता है। सौर ऊर्जा के साथ-साथ समुद्र तटीय क्षेत्रों में पवन और जल ऊर्जा से बिजली पैदा करके विश्व की बिजली की ज़रूरत को पूरा किया जा सकता है। नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करने से वायु प्रदूषण को भी कम किया जा सकता है। यह समय की मांग है कि हम अक्षय ऊर्जा को अपना लें।
प्रत्यूष शर्मा
लेखक हमीरपुर से हैं
By: divyahimachal
Rani Sahu
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