सम्पादकीय

समय की मांग मोटे अनाज को प्रोत्साहन, जीवन शैली में बदलाव के कारण सामने आईं कई बीमारियां को रोकने में सक्षम

Rani Sahu
23 Sep 2022 5:40 PM GMT
समय की मांग मोटे अनाज को प्रोत्साहन, जीवन शैली में बदलाव के कारण सामने आईं कई बीमारियां को रोकने में सक्षम
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सोर्स- जागरण
रमेश कुमार दुबे। कांग्रेस कार्यसंस्कृति में पले-बढ़े लोग इस पर चकित रहते हैं कि आखिर मोदी सरकार में योजनाएं समय से पहले कैसे पूरी हो जाती हैं। ऐसे लोग इसकी तह में जाएं तो पता लगा पाएं कि मोदी सरकार योजनाओं को बनाने से पहले उन्हें अमल में लाने की पुख्ता तैयारी करती है। कोई योजना भले ही कितनी ही अच्छी क्यों न हो, लेकिन यदि उसे ढंग से क्रियान्वित नहीं किया जाता तो कभी अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं होंगे। यह बात मोदी सरकार भलीभांति समझती है। मोटे अनाज से जुड़ी पहल के बारे में भी सरकार का यही सोच दिखता है। अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष (2023) शुरू होने में भले ही कुछ माह शेष हैं, लेकिन मोदी सरकार ने सभी मंत्रालयों और विभागों की कैंटीनों में मोटे अनाज से तैयार व्यंजन शुरू करने के निर्देश दे दिए हैं। मोटे अनाजों की पौष्टिकता के प्रति लोगों को जागरूक करने का अभियान आरंभ कर दिया है।
राशन प्रणाली के तहत मोटे अनाजों के वितरण पर जोर दिया जा रहा है आंगनबाड़ी और मध्याह्न भोजन योजना में भी मोटे अनाजों को शामिल कर लिया गया है। इससे पहले 28 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मासिक रेडियो संबोधन 'मन की बात' में मोटे अनाज की पौष्टिकता पर चर्चा की थी। उन्होंने कहा था कि भारत में आदि काल से ही मोटे अनाज की खेती होती रही है और वह हमारे भोजन का अहम हिस्सा रहे हैं।
स्वयं अपना अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि मैं पिछले कई वर्षों से विदेशी मेहमानों के भोजन में मोटे अनाजों से बने कुछ पकवान अवश्य रखता हूं और उनका महत्व भी बताता हूं। मोटे अनाज को महत्व दिलाने के लिए उनकी सरकार ने वर्ष 2018 को मोटा अनाज वर्ष घोषित किया था। अब भारत के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र ने अगले वर्ष अर्थात 2023 को 'अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष' के रूप में मनाने का निर्णय लिया है, जिसे 70 देशों ने समर्थन दिया है।
मोटे अनाजों में मुख्य रूप से बाजरा, मक्का, ज्वार, रागी, सांवा, कोदो, कंगनी, कुटकी और जौ शामिल हैं। ये हर दृष्टि से सेहत के लिए लाभदायक हैं। पिछली सदी के सातवें दशक में हरित क्रांति के नाम पर गेहूं व धान को प्राथमिकता देने से मोटे अनाज उपेक्षित हो गए। इसके बावजूद पशुओं के चारे तथा औद्योगिक इस्तेमाल बढ़ने के कारण इनका महत्व बना रहा। कोरोना के बाद मोटे अनाज इम्युनिटी बूस्टर के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं। इन्हें सुपर फूड कहा जाने लगा है।
इन्हें लेकर बढ़ती जागरूकता का ही नतीजा है कि जो मोटे अनाज कभी गरीबी के प्रतीक माने जाते थे, वे अब अमीरों की पसंद बन गए हैं। हम एक ऐसे दौर में रह रहे हैं, जहां जीवन शैली में बदलाव के कारण कई बीमारियां बढ़ रही हैं। इन बीमारियों में मोटे अनाज फायदेमंद हैं। इससे मोटे अनाज का बाजार लगातार बढ़ रहा है। दुनिया में तमाम लोगों को ग्लूटेन से एलर्जी होती है। मोटे अनाज ग्लूटेन मुक्त होते हैं। इसलिए इनके निर्यात की संभावनाएं भी बढ़िया हैं।
न केवल सेहत, बल्कि पर्यावरण की दृष्टि से भी मोटे अनाज किसी वरदान से कम नहीं। इनकी पैदावार के लिए पानी की जरूरत कम पड़ती है। खाद्य व पोषण सुरक्षा देने के साथ-साथ ये पशु चारा भी मुहैया कराते हैं। इनकी फसलें मौसमी उतार-चढ़ाव भी आसानी से झेल लेती हैं। इसका यही अर्थ है कि पानी की कमी और बढ़ते तापमान के कारण खाद्यान् उत्पादन पर मंडराते संकट के दौर में मोटे अनाज उम्मीद की किरण जगाते हैं, क्योंकि इनकी खेती अधिकतर वर्षाधीन इलाकों में बिना उर्वरक-कीटनाशक के होती है।
पोषक तत्वों की दृष्टि से ये गुणों की खान हैं। प्रोटीन व फाइबर की भरपूर मौजूदगी के चलते मोटे अनाज डाइबिटीज, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप का खतरा कम करते हैं। इनमें खनिज तत्व भी प्रचुरता में होते हैं, जिससे कुपोषण की समस्या दूर होती है।
मोटे अनाजों के वितरण से न सिर्फ खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि गेहूं-चावल के पहाड़ से भी मुक्ति मिल जाएगी। इससे विविधतापूर्ण खेती को बढ़ावा मिलेगा, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ेगी। साथ ही रासायनिक उर्वरकों-कीटनाशकों के इस्तेमाल में कमी आएगी। इनकी खेती को बढ़ावा देना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि सिंचित क्षेत्र की पैदावार में बढ़ोतरी थम गई है।
देश में उपलब्ध भूजल का 80 प्रतिशत खेती में इस्तेमाल होता है। मोटे अनाजों की खेती से बड़ी मात्रा में पानी बचाया जा सकता है। यदि भारत को पोषक खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग से निपटना है तो वर्षाधीन इलाकों में दूसरी हरित क्रांति जरूरी है। यह तभी संभव है जब कृषि शोध और मूल्य नीति मोटे अनाजों को केंद्र में रखकर बने। मोटे अनाजों की खेती मुख्य रूप से छोटे एवं सीमांत किसान करते हैं, तो उन्हें बढ़ावा देने से छोटी जोतें भी लाभकारी बन जाएंगी।
मोदी सरकार गेहूं-धान की एकफसली खेती के कुचक्र से निकालकर विविध फसलों की खेती को बढ़ावा दे रही है। इसके लिए सरकार तीन नए कृषि कानून लाई थी, लेकिन चंद राज्यों में सक्रिय बिचौलियों-आढ़तियों की ताकतवर लाबी ने ऐसा नहीं होने दिया। इसके बावजूद सरकार मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा दे रही है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत पोषक अनाज उप-मिशन के माध्यम से मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
सरकार के कई संस्थान मोटे अनाजों के प्रसंस्करण का प्रशिक्षण दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश में तो योगी सरकार गेहूं-चावल के साथ एक किलो चना देने की योजना भी शुरू कर चुकी है। राज्य सरकारों को भी केंद्र की इस पहल को सफल बनाने के लिए आगे आना होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि मोदी सरकार की मोटे अनाजों को बढ़ावा देने की नीति खेती के परिदृश्य को बदलने की क्षमता रखती है।
Rani Sahu

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