सम्पादकीय

चुनावी माहौल में मीडिया लिटरेसी की जरूरत

Rani Sahu
11 Oct 2022 7:15 PM GMT
चुनावी माहौल में मीडिया लिटरेसी की जरूरत
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हिमाचल प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है। हर राजनीतिक पार्टी अपने-अपने तरीके से जनता को लुभाने में लगी हुई है। वहीं सत्तासीन पार्टी द्वारा पिछले पांच वर्षों में किए गए कामों के लिए जनता का अनुमोदन, उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। वहीं अन्य राजनीतिक पार्टियां, सत्तासीन पार्टी के किए गए कामों की आलोचनात्मक समीक्षा कर अपने लिए जनता से वोट मांगने में लगी हुई हैं। इन सब के बीच मुख्य कड़ी का काम करता है मीडिया। मीडिया के विभिन्न माध्यमों से ही हर राजनीतिक पार्टी अपने विचारों के साथ जनता के बीच पहुंच सकती है और जनता भी इन्हीं माध्यमों की मदद से राजनीतिक दलों का लेखा-जोखा जानकर अपने विचार बनाती है। इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि मीडिया के किन माध्यमों के द्वारा पार्टियां जनता तक और जनता उन तक पहुंच पा रही है। आज सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग के कारण मीडिया की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाया जा रहा है। जबकि मुख्यधारा के मीडिया के माध्यम समाचारपत्र, टीवी और रेडियो उपयोगी होने के बावजूद अविश्वसनीयता की पंक्ति में खड़े कर दिए गए हैं।
इस कशमकश में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए मीडिया लिटरेसी की बहुत आवश्यकता है। मीडिया लिटरेसी के अंतर्गत सूचना के प्रवाह को प्राप्त करने के सही स्त्रोत, सूचनाओं का सही विश्लेषण और सही जांच-पड़ताल कर उनका मूल्यांकन करना होता है। इसके साथ-साथ सिर्फ सूचना प्राप्त कर लेना काफी नहीं बल्कि उन सूचनाओं की हर स्तर पर समीक्षा करना भी मीडिया लिटरेसी का अभिन्न हिस्सा है। लेकिन दुर्भाग्यवश सूचना के जाल में फंसकर आम जनता सही और गलत सूचना का अंतर नहीं समझ पा रही है। जिसके कारण हम न चाहते हुए भी फेक न्यूज़ पर विश्वास कर अपना एक मत बना लेते हैं। आम जनता की इसी कमजोरी का फायदा उठाकर राजनीतिक पार्टियां अपनी सकारात्मक छवि बनाने के लिए एक दूसरे पर चित्रों, वीडियो और लिखित लेखों के माध्यम से किसी भी प्रकार का आरोप लगाने पर गुरेज़ नहीं करती हैं। फिर चाहे आम जनता हो या राजनीतिक पार्टियां, मीडिया लिटरेसी के अभाव में सूचना की फैली आराजकता का सारा ठीकरा मीडिया पर फोड़ दिया जाता है। इसलिए चुनावी समय में मीडिया लिटरेसी की आवश्यकता आम जनता और राजनीतिक पार्टियों दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
अगर आम जनता की बात की जाए तो सभी आयु वर्ग के सामने सबसे बड़ी चुनौती डिजिटल मीडिया के ज़रिए आ रही सूचनाओं के तेज प्रवाह को झेलने की है, क्योंकि इस तूफान में लोगों को सोचने का समय ही नहीं मिल पाता कि कौन सी सही सूचना है और कौन सी नहीं? इसलिए ज़रूरी है कि सूचनाओं की भीड़ में शामिल न होकर विश्वसनीय स्त्रोतों जैसे कि समाचारपत्र, सूचना भेजने वाले के स्त्रोत पर विश्वास करना चाहिए। अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि सूचना को आलोचनात्मक दृष्टि से पढऩा चाहिए। ताकि न्यूज़ के पीछे की न्यूज़ और उसकी सत्यता को जाना जा सके। इस परिप्रेक्ष्य में 1968 में मैक्सवेल मैककॉम्बस और डा. डोनाल्ड लुईस शॉ द्वारा विकसित किए गए एजेंड़ा-सेटिंग सिद्धांत को ज़रूर समझना होगा जिसके अनुसार जनता का महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा अलग होता है जबकि मीडिया द्वारा अलग चुनावी मुद्दा बना दिया जाता है। वर्तमान में इस सिद्धांत की कही हुई बातों को डिजिटल मीडिया पूरे तरीके से अपनाए हुए है। जबकि आंशिक तौर पर इस प्रकार का आरोप मुख्यधारा मीडिया के विभिन्न माध्यमों पर लगता रहता है। बेशक मीडिया को भी अपनी जिम्मेवारी निभानी चाहिए लेकिन मुख्य रूप से जनता की सजगता ही उन्हें सटीक सूचना से रूबरू करवा सकती है।
हम बाज़ार से सामान खरीदते समय हर प्रकार की जांच-पड़ताल करने के बाद कोई भी वस्तु खरीदते हैं तो सूचना प्राप्त करते समय ये कोताही क्यों? क्योंकि सही सूचनाओं के प्रवाह से ही हम सूचनात्मक आत्मनिर्भर बनते हैं और यही आत्मनिर्भरता हमें सही सरकार चुनने में मदद करती है। इस परिस्थिति में मानसिक मजबूती हमें चुनावों में भाग लेने को प्रोत्साहित करती है, विशेषकर युवा वर्ग को। वहीं राजनीतिक पार्टियों के लिए भी मीडिया लिटरेसी जनता के बीच उनकी सकारात्मक छवि बनाने में कारगर साबित हो सकती है। क्योंकि झूठ, तथ्यहीन और हीन भावना से ग्रसित राजनीतिक पार्टियां मीडिया की मदद से जनता के बीच जाएंगी तो उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगना लाज़मी है। वैसे भी आज की पीढ़ी में चुनावों में जनभागिता के प्रति उदासीन रवैया है। इस रवैये को सकारात्मक करने की जिम्मेवारी प्रत्येक पार्टी की है न कि चुनाव आयोग की, जो लोगों को चुनावों में भाग लेने के लिए अंतिम समय में प्रोत्साहित करता नजऱ आता है। हर राजनीतिक पार्टी को चाहिए कि मीडिया के विभिन्न माध्यमों से तथ्य, सही स्त्रोत के साथ अपनी बात जनता के बीच रखे और उन्हें स्वयं तय करने दे कि क्या सही है और क्या गलत? सच्चे लोकतंत्र की खूबसूरती यही है कि जनता बिना किसी दवाब के, खुली सोच के साथ चुनावों में भाग ले। यह सिर्फ मीडिया लिटरेसी से ही संभव है। ऐसा करने से ही लोकतंत्र मजबूत होता है जिसका देश को फायदा मिलता है।
निधि शर्मा
स्वतंत्र लेखिका

By: divyahimachal

Rani Sahu

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