सम्पादकीय

गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में जिद्दी किसानों द्वारा शर्मिंदा करने वाले कृत्य से देश का मस्तक झुक गया

Neha Dani
27 Jan 2021 1:19 AM GMT
गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में जिद्दी किसानों द्वारा शर्मिंदा करने वाले कृत्य से देश का मस्तक झुक गया
x
गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में जो कुछ हुआ, उससे देश का मस्तक झुक गया।

गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में जो कुछ हुआ, उससे देश का मस्तक झुक गया। इसे जानबूझकर झुकाया जिद्दी किसान नेताओं और उनके अराजक साथियों ने। उन्होंने गणतंत्र दिवस मनाने का स्वांग किया और फिर उस बहाने उसकी मर्यादा तार-तार की। शायद उनका इरादा भी यही था और इसीलिए उन्होंने जानबूझकर गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली निकालने की जिद यह जानते हुए भी पकड़ी कि इस दिन दिल्ली पुलिस के लिए हजारों ट्रैक्टरों को संभालना आसान नहीं होगा। किसान नेताओं की दिलचस्पी अनुशासन का परिचय देने में नहीं थी, इसकी पुष्टि इससे होती है कि उन्होंने पुलिस से किए गए हर वादे को चुन-चुनकर तोड़ा। ट्रैक्टर रैली समय से पहले शुरू की गई और बैरीकेड भी तोड़े गए। उन्माद से भरे कथित किसान केवल यहीं तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने पुलिस से मारपीट करने के साथ ट्रैक्टरों से उन्हें कुचलने की भी कोशिश की। इस गुंडागर्दी के बाद किसान नेता यह कहकर देश की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहे हैं कि हिंसा में उनके लोग नहीं थे और जो उत्पात हुआ, उससे उनका लेना-देना नहीं। वे दिल्ली को अराजकता की आग में झोंक देने के बाद पल्ला झाड़कर देश से फिर छल ही कर रहे हैं। उन्हें बचकर निकलने का मौका नहीं दिया जाना चाहिए। उन्हें जवाबदेह बनाते हुए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उन्हें उनके किए की सजा मिले। उन्होंने गणतंत्र दिवस की गरिमा को तार-तार कर राष्ट्र का घोर अपमान किया है।

दिल्ली में डेरा डाले किसान संगठनों के साये में अराजक तत्व पल रहे थे, यह इससे साबित होता है कि इन तत्वों ने लाल किले पर धावा बोलकर राष्ट्रीय ध्वज का भी निरादर कर दिया। यह असहनीय है। आखिर राष्ट्रीय अस्मिता के प्रतीक लाल किले पर चढ़ाई उस कृत्य से अलग कैसे है, जो कुछ दिनों पहले अमेरिका में वहां की संसद में ट्रंप समर्थकों की ओर से किया गया था? अराजक किसानों के उत्पात के लिए किसान नेताओं के साथ उन्हें उकसाने वाले राजनीतिक दल और खासकर कांग्रेस और वामपंथी दल भी जिम्मेदार हैं। वे इससे अनजान नहीं हो सकते कि किसान नेताओं का मकसद अराजकता का सहारा लेकर सरकार को झुकाने का था, न कि कृषि कानूनों पर अपनी आपत्तियों का समाधान कराना। इसी कारण केंद्र सरकार से बातचीत के दौरान वे लगातार अडि़यल रवैया अपनाए रहे। वे सरकार की नरमी के बाद भी समस्या के समाधान तक पहुंचने की कोशिश करने के बजाय ट्रैक्टर रैली निकालने की योजना बनाते रहे। यदि किसान नेता अपने किए पर तनिक भी लज्जित हैं तो उन्हें देश को नीचा दिखाने वाले अपने तथाकथित आंदोलन को तत्काल प्रभाव वापस ले लेना चाहिए।


Next Story