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गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में जिद्दी किसानों द्वारा शर्मिंदा करने वाले कृत्य से देश का मस्तक झुक गया
गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में जो कुछ हुआ, उससे देश का मस्तक झुक गया। इसे जानबूझकर झुकाया जिद्दी किसान नेताओं और उनके अराजक साथियों ने। उन्होंने गणतंत्र दिवस मनाने का स्वांग किया और फिर उस बहाने उसकी मर्यादा तार-तार की। शायद उनका इरादा भी यही था और इसीलिए उन्होंने जानबूझकर गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली निकालने की जिद यह जानते हुए भी पकड़ी कि इस दिन दिल्ली पुलिस के लिए हजारों ट्रैक्टरों को संभालना आसान नहीं होगा। किसान नेताओं की दिलचस्पी अनुशासन का परिचय देने में नहीं थी, इसकी पुष्टि इससे होती है कि उन्होंने पुलिस से किए गए हर वादे को चुन-चुनकर तोड़ा। ट्रैक्टर रैली समय से पहले शुरू की गई और बैरीकेड भी तोड़े गए। उन्माद से भरे कथित किसान केवल यहीं तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने पुलिस से मारपीट करने के साथ ट्रैक्टरों से उन्हें कुचलने की भी कोशिश की। इस गुंडागर्दी के बाद किसान नेता यह कहकर देश की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहे हैं कि हिंसा में उनके लोग नहीं थे और जो उत्पात हुआ, उससे उनका लेना-देना नहीं। वे दिल्ली को अराजकता की आग में झोंक देने के बाद पल्ला झाड़कर देश से फिर छल ही कर रहे हैं। उन्हें बचकर निकलने का मौका नहीं दिया जाना चाहिए। उन्हें जवाबदेह बनाते हुए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उन्हें उनके किए की सजा मिले। उन्होंने गणतंत्र दिवस की गरिमा को तार-तार कर राष्ट्र का घोर अपमान किया है।