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संजय पोखरियाली: क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि जब पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी संत रविदास की जन्मस्थली वाराणसी में थे, तब एक दिन पहले उनकी ओर से दिए गए इस बयान की गूंज हो रही थी कि उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली के लोग यहां आकर राज नहीं कर सकते और उन्हें पंजाब में फटकने नहीं देना है? उन्होंने इन प्रांतों के लोगों के लिए जिस तरह भइये शब्द का प्रयोग किया, उससे महाराष्ट्र की उन घटनाओं का स्मरण हो आया, जिनमें उत्तर भारत के लोगों के साथ कभी शिवसेना तो कभी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के लोग मारपीट किया करते थे।
क्या शिवसेना की संगत में कांग्रेस के नेता यह भूलने लगे हैं कि वे राष्ट्रीय दल का प्रतिनिधित्व करते हैं? इससे खराब बात और कोई नहीं कि कांग्रेस सरीखे राष्ट्रीय दल के नेता और वह भी मुख्यमंत्री क्षेत्रीय दलों के नेताओं जैसी संकीर्णता का परिचय दें। क्षेत्रवाद की संकीर्ण राजनीति केवल संविधान की भावना के खिलाफ ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता के लिए भी घातक है। आज जब नौकरी, व्यापार, शिक्षा आदि के सिलसिले में देश के हर हिस्से के लोग दूसरे हिस्सों में जा रहे हैं और समय के साथ उनकी संख्या बढ़ रही है, तब पंजाब के मुख्यमंत्री को अन्य प्रांतों के लोगों के बारे में संभलकर बोलना चाहिए था।
हालांकि चन्नीजी को मुख्यमंत्री बने कुछ ही महीने हुए हैं, लेकिन वह इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकते कि पंजाब की खेती को सहारा देने और वहां के उद्योगों को संचालित करने में उत्तर प्रदेश एवं बिहार के लोगों का कितना योगदान है। लगता है उन्हें यह भी याद नहीं रहा कि महान योद्धा और सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह की जन्मस्थली तो बिहार ही है। यह समझ आता है कि चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सक्रियता रास न आ रही हो, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह क्षेत्रवाद की राजनीति को हवा देने लगें।
यह हैरानी की बात है कि जब वह उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली के लोगों के खिलाफ बोल रहे थे, तब उनके साथ मंच पर उपस्थित प्रियंका गांधी उनका उत्साहवर्धन कर रही थीं। क्या वह ऐसा करते समय यह भूल गईं कि उन्होंने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जिताने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले रखी है? आखिर अब वह उत्तर प्रदेश के लोगों के सवालों का सामना कैसे करेंगी?