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- पेट पर लात मारने वाला...
भूपेंद्र सिंह| कृषि कानूनों के विरोध में जब किसान संगठन अपने लोगों के साथ सड़कों पर उतरे थे, तब उन्हें अन्नदाता कहकर संबोधित किया गया था-न केवल समर्थकों की ओर से, बल्कि सरकार की ओर से भी, लेकिन बीते आठ महीनों में किसान संगठनों ने आम नागरिकों के समक्ष जैसी समस्याएं खड़ी की हैं, उसे देखते हुए उन्हें मुसीबतदाता ही कहा जा सकता है। किसान संगठन न केवल दिल्ली की सीमाओं को घेरकर बैठे हैं, बल्कि उनके धरना-प्रदर्शन दिल्ली की सीमाओं के अलावा भी जारी हैं। उनके कारण भी लोगों को समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है। संकट केवल यह नहीं कि लोगों को आने-जाने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि यह भी है कि बहुत से लोगों की रोजी-रोटी के सामने भी संकट खड़ा हो गया है। दिल्ली से सटे बहादुरगढ़ के उद्योगों के सामने तो कहीं बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई है। हाल की एक खबर के अनुसार बहादुरगढ़ के उद्योगों का कुल टर्नओवर करीब 80,000 करोड़ रुपये का है। किसान आंदोलन की वजह से उन्हें अब तक करीब 20,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है।