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सम्पादकीय
नए सीडीएस की नियुक्ति में जितनी देरी होगी, सैन्य सुधारों का काम उतना ही टलता जाएगा
Gulabi Jagat
7 May 2022 7:08 AM GMT
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सैन्य सुधारों का काम उतना ही टलता जाएगा
जेकेएस परिहार। देश के पहले चीफ आफ डिफेंस जनरल बिपिन रावत के असामयिक निधन को काफी समय गुजर गया। उनके स्थान पर सरकार ने अभी तक नए सीडीएस की नियुक्ति नहीं की है। इससे सामरिक सुधारों की रफ्तार और सैन्य एकीकरण की प्रक्रिया शिथिल पड़ गई है। वह भी तब जबकि रूस-यूक्रेन युद्ध और बदलते वैश्विक समीकरणों में यह और अधिक आवश्यक हो गया है। इसलिए सरकार को नए सीडीएस की नियुक्ति में विलंब नहीं करना चाहिए। हाल में सेना प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त हुए जनरल मनोज मुकंद नरवणे इस दायित्व के लिए उपयुक्त हो सकते हैं। उन्होंने लद्दाख में चीनी सेना का अतिक्रमण रोकने एवं उसे करारा जवाब देकर अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया। इसी प्रकार सैन्य कूटनीति में भी अपनी क्षमताएं सिद्ध कीं। ऐसे में अनुभव और क्षमता के लिहाज से वह एक कामयाब सीडीएस साबित हो सकते हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध ने भविष्य के युद्धों में आर्थिक हितों पर आघात, बैंकिंग सिस्टम पर प्रतिबंध, सूचना प्रणाली पर साइबर हमलों, अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रभुत्व को युद्ध संचालन नीति के आवश्यक अंगों के रूप में नए सिरे से रेखांकित किया है। जिस प्रकार ड्रोन एवं मिसाइल के द्वारा महत्वपूर्ण संस्थानों तथा धीमी गति से चलने वाले बड़े आकार के टैंक, आर्टिलरी गन, हेलीकाप्टर, युद्धक विमानों, गोला बारूद, हथियारों, रसद आपूर्ति तथा स्वास्थ्य सेवा पर आक्रमण द्वारा उन्हें निष्क्रिय किया गया, वह भी एक गंभीर चिंता का विषय है। अब यह निश्चित है कि भविष्य के युद्ध अतीत में लड़े गए युद्धों के अनुभवों और संरचनाओं के आधार पर नहीं लड़े जा सकते। भविष्य के युद्ध संचालन साइबर खतरों, अंतरिक्ष, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मानव रहित रोबोटिक प्रणाली और जैविक युद्ध के खिलाफ प्रतिरोध तथा त्वरित कार्रवाई हेतु क्षमता पर आधारित होंगे।
हमारे समक्ष कहीं बड़ी चुनौतियां हैं। हिंद प्रशांत क्षेत्र, दक्षिण एशिया और पड़ोस में चीन की बढ़ती आक्रामक आर्थिक एवं विस्तारवादी गतिविधियों से उपजे प्रश्न भी नए सीडीएस के लिए विषम चुनौतियों से कम नहीं होंगे। चीन, पाकिस्तान और तालिबान का संभावित गठजोड़ भी हमारे सुरक्षा तंत्र के लिए गंभीर चुनौती के रूप में उभरा है। सीडीएस के समक्ष सैन्य, नागरिक एवं सैन्य तकनीकी प्रयासों के एकीकरण और आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के बीच एक सहजीवी संबंध बनाने के लिए तीनों सेनाओं के बीच जुड़ाव एवं आधुनिक युद्ध संचालन प्रणाली को समयबद्ध तरीके से मूर्त रूप देने की जिम्मेदारी होगी। बेहतर होगा कि यह काम 2023 तक संपन्न हो जाए।
सैन्य संचालन और निर्णायक बढ़त के लिए शक्तिशाली वायु सेना अति महत्वपूर्ण है। इसी प्रकार सामुद्रिक खतरों से मुकाबला शक्तिशाली नौ सेना द्वारा ही संभव है। वहीं थल सेना को जमीन से प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करनी होगी। ऐसे में उनके बीच सही तालमेल जरूरी होगा। ऐसा एकीकरण सुनिश्चित करते हुए नए सीडीएस को तीनों सेनाओं की विशिष्टताओं और उनकी स्वायत्तता को भी अक्षुण्ण रखना होगा। संयुक्त थिएटर कमान का निर्माण सेना के युद्ध संचालन की एकीकरण प्रक्रिया का अति महत्वपूर्ण अंग है। अमेरिका, रूस और चीन जैसी दुनिया की प्रमुख सेनाओं ने संयुक्त थिएटर कमान और एकीकृत बैटल ग्र्रुप प्रणाली को पहले से ही अपना लिया है। चूंकि भारत ने इस आधुनिक युद्धक प्रणाली को अपनाने में देर कर दी है, इसलिए उसे अपनी रफ्तार बढ़ानी होगी।
संयुक्त थिएटर कमान के निर्माण से सेना की प्रभावशीलता में दूरगामी एवं बहुआयामी परिवर्तन होंगे। नए सीडीएस को यह भी देखना होगा कि सैन्य एकीकरण की यह प्रक्रिया सुरक्षा तंत्र का सुगम परिचालन करे। एकीकृत बैटल ग्र्रुप में एक ही कमांडर के अंतर्गत थल सेना, वायु सेना और नौ सेना के आवश्यक संसाधन त्वरित एवं प्रभावी कार्रवाई के लिए उपलब्ध होंगे। भारत में जमीन पर दो से तीन इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड (आइटीसी), एक मैरीटाइम थिएटर कमांड (एमटीसी) और एक नेशनल इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस कमांड (एडीसी) हो सकती हैं। इनके अतिरिक्त साइबर, परमाणु, जैविक तथा अंतरिक्ष के मोर्चे पर संभावित खतरों से निपटने के लिए भी विशिष्ट एकीकृत कमान का गठन किया जाना आवश्यक है। इस बीच हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सरकार की कार्य आवंटन तथा निष्पादन नियमावली, 1961 में राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति से संबंधित दिशानिर्देशों में स्पष्टता का अभाव है। इसलिए सरकार को रक्षा सुधारों और रक्षा क्षेत्र में संभावित परिवर्तन के राष्ट्रीय मिशन को सटीक बनाने हेतु सीडीएस एवं सैन्य मामलों के विभाग की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में प्रमुख भूमिका को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना नितांत आवश्यक है। इससे सामरिक ढांचे को और सक्षम बनाने में सहायता मिलेगी।
रक्षा कवच में रणनीति की भी अहम भूमिका होती है। इसके लिए तीनों सेनाओं के अपने थिंक टैंक हैं। वहीं एकीकृत रक्षा स्टाफ (आइडीएस) में तीनों सेनाओं से संबंधित थिंक टैंक है। इसके अलावा, ऐसे कई समकालीन थिंक-टैंक हैं, जिनके पास जबरदस्त विश्लेषणात्मक क्षमता तथा अनुभव है, जिनका उपयोग समय-समय पर तीनों सेनाओं के सामूहिक संचालन की कार्यप्रणाली और एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए किया जाना चाहिए।
(लेखक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी हैं)
Gulabi Jagat
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