सम्पादकीय

मंत्री ने घूस ली है इसलिए फाइल मंजूर...

Rani Sahu
31 May 2022 6:25 PM GMT
मंत्री ने घूस ली है इसलिए फाइल मंजूर...
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पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने जब रिश्वत लेने के आरोप में अपने स्वास्थ्य मंत्री विजय सिंगला को बर्खास्त किया और पुलिस को सौंप दिया तो मुझे अनायास करीब 55 साल पुरानी भ्रष्टाचार की एक दिलचस्प घटना याद आ गई

विजय दर्डा

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने जब रिश्वत लेने के आरोप में अपने स्वास्थ्य मंत्री विजय सिंगला को बर्खास्त किया और पुलिस को सौंप दिया तो मुझे अनायास करीब 55 साल पुरानी भ्रष्टाचार की एक दिलचस्प घटना याद आ गई. भगवंत मान ने राजनीति में ईमानदारी का जो पन्ना जोड़ा है उसकी चर्चा से पहले जरा वो कहानी सुन लीजिए..!
मध्य प्रदेश में गोविंद नारायण सिंह मुख्यमंत्री थे. संविद यानी संयुक्त विधायक दल की सरकार थी. मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के खूब आरोप लग रहे थे और गोविंद नारायण सिंह नियंत्रण नहीं कर पा रहे थे.
इसी बीच, उनके सिंचाई मंत्री बृजलाल वर्मा ने लिफ्ट इरिगेशन के लिए पंप सेट खरीदने का प्रस्ताव रखा. तत्कालीन मुख्य सचिव एस. पी. नरोन्हा और सिंचाई सचिव एस. बी. लाल इस खरीदी के खिलाफ थे.
इस बीच मुख्यमंत्री को जानकारी मिल चुकी थी कि मंत्री वर्मा ने इस मामले में ठेकेदार से 20 हजार रुपए की रिश्वत ली है और वह भी चेक से..! जब पंप खरीदी की फाइल मुख्यमंत्री के पास पहुंची तो उन्होंने उन पर लिखा कि मुख्य सचिव और सिंचाई सचिव की बात बिल्कुल सही है. यह प्रस्ताव अनैतिक है. इसे मंजूरी नहीं दी जा सकती लेकिन मंत्री ने इस मामले में 20 हजार रुपए की रिश्वत ली है. मंत्री ने मूर्खता दिखाते हुए चेक से रिश्वत ली है. इसलिए प्रस्ताव को मंजूरी देना आवश्यक है.
फाइल पर मुख्यमंत्री की इस टिप्पणी से हंगामा मच गया. मुख्य सचिव तत्काल गोविंद नारायण सिंह के पास पहुंचे और उन्हें कहा कि नई टिप्पणी लिखकर प्रस्ताव को नामंजूर कर दें. बड़ी मान-मनौवल के बाद वे तैयार हुए
नई टिप्पणी लिखकर प्रस्ताव को नामंजूर भी कर दिया लेकिन मंत्री के रिश्वत वाली पहली टिप्पणी को हटाने को वे तैयार नहीं हुए. मध्य प्रदेश सरकार के रिकॉर्ड में गोविंद नारायण सिंह की वो बेमिसाल टिप्पणी अभी भी मौजूद है. भारतीय राजनीति के इतिहास में इस तरह का कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता है.
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने डॉ. विजय सिंगला के खिलाफ जिस तरह से तत्काल और कठोर कार्रवाई की है, वैसा दूसरा कोई उदाहरण भारतीय राजनीति में नजर नहीं आता है.
भ्रष्टाचार के आरोप बहुत लगे हैं, लगते रहे हैं और कई मंत्रियों को पद भी छोड़ना पड़ा है लेकिन किसी मुख्यमंत्री ने खुद जांच-पड़ताल की हो और सबूत जुटाकर मंत्री को बर्खास्त कर दिया हो और पुलिस के हवाले भी कर दिया हो, ऐसी कोई दूसरी घटना याद नहीं आती. यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि भारतीय राजनीति में ईमानदारी का नया पन्ना उन्होंने जोड़ा है. राजनीति के प्रति एक विश्वास पैदा किया है. एक नई उम्मीद जगाई है.
दिलचस्प बात यह है कि पंजाब का स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद 28 मार्च को डॉ. विजय सिंगला ने कहा था कि वे किसी भी रूप में भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करेंगे. भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस के दावे के ठीक 57 दिन बाद वे भ्रष्टाचार के मामले में न केवल बर्खास्त हुए बल्कि जेल भी पहुंच गए.
अपने विभाग के हर काम में वे एक प्रतिशत का कमीशन चाहते थे. जब मुख्यमंत्री भगवंत मान के पास यह जानकारी पहुंची तो उन्होंने संबंधित अधिकारी को विश्वास में लिया. सिंगला के साथ बातचीत की गुपचुप रिकॉर्डिंग की गई. सिंगला के सामने जब पूरे प्रमाण रखे गए तो उन्होंने रिश्वत मांगने की बात स्वीकार कर ली.
भगवंत मान चाहते तो इस बात को हजम कर जाते क्योंकि किसी को भी इस प्रसंग की कोई जानकारी नहीं थी. न मीडिया को और न ही सरकार के दूसरे मंत्रियों को लेकिन मान ने नई नजीर पेश करने का संकल्प लिया. भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन के वादे के कारण ही लोगों ने आम आदमी पार्टी को वोट दिया था. उन्होंने सिंगला को तत्काल बर्खास्त तो किया ही, पुलिस में रिपोर्ट भी करा दी.
स्वाभाविक तौर पर आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की आंखों में खुशी के आंसू आ गए. जिस विश्वास के साथ उन्होंने मान को मैदान में उतारा था, मान उन कसौटियों पर खरे उतरने की दिशा में आगे बढ़ चले हैं. पूरे देश ने मान के इस कदम को उम्मीद भरी नजरों से देखा है.
यह वास्तविकता भी है कि यदि ऊपर के स्तर पर शुचिता और सख्ती आ जाए तो नीचे के स्तर पर ईमानदारी का प्रसार स्वाभाविक तौर पर हो जाएगा. इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गजब का अनुशासन कायम किया है. उन्होंने अपने कार्यकाल के आठ साल पूरे किए हैं.
इन वर्षों में न किसी मंत्री की हिम्मत हुई है और न किसी अधिकारी की कि वह जरा सा ऊंच-नीच कर ले! इतना तय है कि जब तक हम भ्रष्टाचार का लीकेज रोकने में कामयाब नहीं होंगे तब तक दिल्ली की तरह अस्पताल और स्कूल को स्तरीय नहीं बना पाएंगे.
भ्रष्टाचार बहुत दुखदायी है. यह कितनी बड़ी विडंबना है कि जिन राजनेताओं को हम पूरे विश्वास के साथ सदनों में भेजते हैं वे अपने विकास में लग जाते हैं? जिन्हें आम आदमी का दर्द समझना चाहिए और सरकार की एक-एक पाई जनता की भलाई में खर्च करना चाहिए वे कमीशन मांगने लग जाते हैं?
अधिकारी देश सेवा का संकल्प लेकर नौकरी में आते हैं, लेकिन कुछ समय बाद ही उनके पास कुबेर आकर बैठ जाते हैं. इतनी नगद राशि मिलती है कि गिनने के लिए मशीन लगानी पड़े! आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल का मामला सामने है.
झारखंड मे पदस्थ रहीं पूजा के ठिकानों से 19 करोड़ रुपए की नगद राशि मिली है. किसी महिला अधिकारी के भ्रष्टाचार का इतना बड़ा यह पहला मामला है. नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की पूर्व एमडी चित्रा रामकृष्ण का मामला हाल ही में सामने आया है. वे कहती रही हैं कि उन्होंने हिमालय के किसी योगी के कहने पर आनंद सुब्रमण्यम को ग्रुप ऑपरेटिंग ऑफिसर नियुक्त कर दिया था.
वाकई भ्रष्टाचार ने पूरे सिस्टम को खोखला कर दिया है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के आंकड़ों के अनुसार भ्रष्टाचार के मामले में दुनिया के 180 देशों की सूची में भारत 85 वें स्थान पर है.
इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे राजनेता यदि ठान लें तो भ्रष्टाचार पर निश्चित ही काबू पाया जा सकता है. पूजा जैसी भ्रष्ट अधिकारियों पर नकेल के लिए राजनीतिक दम खम चाहिए. हालात में परिवर्तन आ रहे हैं लेकिन लोगों के इस सवाल का क्या जवाब है कि कोई व्यक्ति नेता बनते ही कैसे धनवान होने लगता है?
ऐसे में यदि राजनेताओं को लोग शंका की नजर से देखते हैं तो इसमें क्या गलत है? राजनीति की प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों के प्रमोटर कैसे हजारों करोड़ के मालिक बन जाते हैं? यह सवाल हिंदुस्तान के आर्थिक स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है. देश जवाब चाहता है.

सोर्स- lokmatnews

Rani Sahu

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