सम्पादकीय

तीसरी खुराक भी मुफ्त होने के मायने

Rani Sahu
15 July 2022 10:30 AM GMT
तीसरी खुराक भी मुफ्त होने के मायने
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केंद्र सरकार एक विशेष अभियान के तहत 18 से 59 साल की आबादी को कोरोना की तीसरी खुराक मुफ्त देने जा रही है

चंद्रकांत लहारिया,

केंद्र सरकार एक विशेष अभियान के तहत 18 से 59 साल की आबादी को कोरोना की तीसरी खुराक मुफ्त देने जा रही है। अपने देश में 'बूस्टर डोज' की शुरुआत 10 जनवरी, 2022 को 60 वर्ष से अधिक उम्र वाली आबादी और स्वास्थ्य व अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं को तीसरी खुराक देने के साथ हुई थी। 10 अप्रैल से इसे 18 से 59 उम्र वाले लोगों के लिए भी उपलब्ध करा दिया गया। मगर पिछले छह महीने में महज पांच फीसदी वयस्कों ने ही एहतियाती खुराक मतलब बूस्टर डोज ली है। बीते तीन महीनों में तो 18-59 आयु वर्ग के सिर्फ 1.3 प्रतिशत लोगों ने बूस्टर डोज ली।
इस कम 'कवरेज' का एक बड़ा कारण था, दूसरी और तीसरी खुराक के बीच नौ महीने का अंतर। जून के आखिर तक सिर्फ 24 करोड़ वयस्क तीसरी खुराक के पात्र थे, जिनमें से पांच करोड़ ने टीके लगवाए। इससे निपटने के लिए जुलाई के पहले सप्ताह में सरकार ने तीसरी खुराक की पात्रता के लिए अंतर को घटाकर छह महीने कर दिया। इस निर्णय से एहतियाती खुराक के लिए योग्य वयस्कों की संख्या लगभग 65 करोड़ हो गई। फिर भी, तीसरी खुराक के लिए आने वाले लोगों की संख्या स्थिर बनी हुई है।
यह शोचनीय है कि विशेषकर 18-59 आयु-वर्ग के लोग एहतियाती खुराक की तरफ क्यों नहीं आकर्षित हो रहे हैं, जबकि इस आयु-वर्ग के लिए बूस्टर खुलने से पहले ऐसा लग रहा था कि इसमें तीसरी खुराक की भारी मांग है। इसकी एक वजह यह समझ आती है कि बुजुर्गों व अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं के लिए एहतियाती खुराक को लेकर पूर्ण सहमति व स्पष्ट सिफारिश है, पर 18-59 वर्ष के लिए सरकार ने निजी क्षेत्र की मदद ली, जिसमें भुगतान के बाद टीके का प्रावधान किया गया। पैसे देकर टीका लेना कई लोगों को अरुचिकर लगा। फिर, सरकार की तरफ से यह कभी नहीं कहा गया कि तीसरी खुराक सबको दी जानी चाहिए। कई विशेषज्ञों के तर्क हैं कि भारत की परिस्थिति और संक्रमण की उच्च प्राकृतिक दर को देखते हुए यहां तीसरी खुराक के फायदे स्पष्ट नहीं हैं। संभवत: इन्हीं तथ्यों के संदर्भ में सरकार 75 दिनों का यह विशेष अभियान शुरू करने जा रही है।
यह स्वागतयोग्य फैसला है। मगर इसके साथ कुछ सवाल भी उठते हैं। जैसे, 18-59 साल के लिए यदि वास्तव में तीसरी खुराक की सिफारिश की जाती है, तो अब तक इसकी मुफ्त व्यवस्था क्यों नहीं की गई थी? अगर यह खुराक जरूरी है, तो विशेष अभियान 75 दिनों का ही क्यों? देखा जाए, तो अपने देश में सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर सेवाएं व टीके अमूमन नि:शुल्क रहे हैं। फिर, कोविड से जनता को बचाने की जिम्मेदारी सरकारों की है। ऐसे में, यदि वैज्ञानिक अथवा विशेषज्ञों ने इसकी सिफारिश की है, तो कोरोना-रोधी टीके और इससे जुड़े इलाज मुफ्त होने चाहिए।
एहतियाती खुराक का कम कवरेज भारत के कोविड टीकाकरण अभियान और स्वास्थ्य सेवाओं के आत्मनिरीक्षण की मांग करता है। निस्संदेह, भारत ने टीकाकरण में कुछ विशेष उपलब्धियां हासिल की हैं। चंद दिनों में यहां 200 करोड़ खुराक लग जाएगी। देश की 97 प्रतिशत वयस्क आबादी को कम से कम एक खुराक और 87 फीसदी जनसंख्या को दोनों खुराक लग चुकी है, जो दुनिया भर में उच्चतम कोविड-19 कवरेज में से एक है। फिर भी, यह सफर चुनौतियों से खाली नहीं रहा है। टीकाकरण अभियान की शुरुआत में टीके को लेकर लोगों की हिचकिचाहट, टीकाकरण की धीमी गति और टीकों की कमी (अप्रैल से सितंबर, 2021) जैसी मुश्किलें इससे वाबस्ता रहीं।
जाहिर है, यह समय इन चुनौतियों से पार पाने और पीछे मुड़कर देखने व सबक लेने का है। सबसे पहले यह समझना होगा कि कोविड-19 एक महामारी है और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी। लिहाजा, कोविड-रोधी टीकों या बूस्टर खुराक की जरूरत जिस किसी आयु-वर्ग को है, उसके लिए टीके का भुगतान सरकार की तरफ से होना चाहिए। यह नीति सिर्फ कोरोना के लिए नहीं, भविष्य में किसी अन्य संक्रमण या बीमारी अथवा प्रकोप के लिए भी बननी चाहिए। दूसरी बात, 18-59 वर्ष के लोगों के लिए मुफ्त टीका का फैसला अपने आप में यह मौन स्वीकृति है कि अगर टीके के लिए लोगों को जेब ढीली करनी पड़े, तो टीकाकरण प्रभावित होता है। जब तक सरकारी केंद्र स्वास्थ्य सेवा प्रदान नहीं करते, तब तक टीका हाशिये के लोगों तक पहुंच नहीं सकता।
तीसरा सबक, किसी भी सरकारी पहल का उद्देश्य स्वास्थ्य सेवाओं के उपयोग में विषमताओं को कम करना होना चाहिए। भुगतान के आधार पर कोविड-19 टीके उपलब्ध करना अमीर व शहरी आबादी के लिए अधिक पहुंच के साथ-साथ वित्तीय व भौगोलिक असमानता बढ़ा रहा था। यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के समानता के सिद्धांत के विपरीत है।
चौथा, चेचक उन्मूलन के बाद से कोरोना-रोधी टीकाकरण पहला वयस्क टीकाकरण अभियान है। ऐसे कई टीके हैं, जिनसे वयस्क आबादी लाभान्वित हो सकती है। नीति-निर्माताओं को वयस्क टीकाकरण के साथ कवरेज बढ़ाने के लिए कदम उठाने चाहिए।
पांचवां सबक, उच्च कोविड-19 टीका कवरेज एक बड़ी उपलब्धि जरूर है और यह हमारे स्वास्थ्य सेवाओं की ताकत व क्षमता को दर्शाता है, पर भारत में बच्चों का पूर्ण टीकाकरण कवरेज कभी भी 80 प्रतिशत से अधिक नहीं हुआ है। इसके विपरीत, अधिकांश विकसित देशों में लगभग 99 फीसदी बच्चों का टीकाकरण कवरेज रहता है। यहां तक कि नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देश भी 95 प्रतिशत कवरेज प्राप्त करते हैं। कोरोना संक्रमण-काल में कई देशों ने बच्चों के टीकाकरण अभियान में गिरावट दर्ज की है। लिहाजा, यह समय है कि हम बच्चों के नियमित टीकाकरण पर भी पर्याप्त ध्यान दें। कोविड-19 टीकाकरण नीति और क्रियान्वयन में नियमित संशोधन यही बताते हैं कि रणनीतियों में नियमित सुधार करके ही कोई अभियान सफल बनाया जा सकता है।
और अंत में, भारत में कोरोना-रोधी टीका कवरेज सफलता की एक कहानी है। हमें इस उपलब्धि का जश्न जरूर मनाना चाहिए, पर विफलताओं को छिपाना भी नहीं चाहिए। यानी, सरकार व नीति-निर्माताओं को टीकाकरण अभियान से सीख लेने की भी जरूरत है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
सोर्स- Hindustan Opinion Column


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