सम्पादकीय

भाजपा का मालिक एक!

Gulabi
13 March 2021 7:43 AM GMT
भाजपा का मालिक एक!
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वक्त का कमाल है जो भाजपा को तनिक भी भान नहीं है कि वह अब क्या है? छह सालों में उसका क्या हो गया है

वक्त का कमाल है जो भाजपा को तनिक भी भान नहीं है कि वह अब क्या है? छह सालों में उसका क्या हो गया है। यों आजाद भारत के इतिहास में उत्तरोत्तर सत्ता और सत्ता के वैभव की चकाचौंध वाला वक्त बार-बार अनुभव हुआ है। नेहरू या इंदिरा राज का अनुभव कोई ज्यादा पुराना नहीं है। कांग्रेस जैसी सर्वव्यापी पार्टी का क्रमशः नेहरू और इंदिरा की एकल लीडरशीप में जैसे परिवर्तन हुआ था उसे जनसंघ और भाजपा नेताओं ने अपनी आंखों देखा है। तभी हैरानी वाली बात है जो संघ परिवार याकि हिंदुवादी राजनीति एक ही नेता याकि नरेंद्र मोदी की अकेली उंगली पर आश्रित हो जाने, बंध जाने पर भी इस अहसास में नहीं है कि छह सालों में पार्टी का क्या हुआ? और मोदी के बाद भाजपा का क्या होगा?


हां, इंदिरा गांधी के राज में भी मुख्यमंत्री बनते और हटते थे। लेकिन पार्टी, हाईकमान और पदाधिकारियों से सलाह-मशविरे के साथ। क्या वैसा कुछ उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह को बनाने, हटाने या तीरथ सिंह को सत्ता पर बैठाने जैसे फैसलों में था? उत्तराखंड के ही नारायण दत्त तिवारी का उदाहरण है। इंदिरा गांधी-संजय गांधी-राजीव गांधी, नरसिंह राव, मनमोहन सिंह के पचास-साठ साल के लंबे वक्त में नारायण दत्त तिवारी का ग्राफ बतौर नेता चढ़ा तो कई बार गिरा भी। लेकिन पार्टी में, कांग्रेस में उन्हें राजनीति का मौका लगातार मिला रहा। उनका कांग्रेस में वैसा हश्र सोचा भी नहीं जा सकता था जैसा गुजरात में नरेंद्र मोदी के राज के दौरान केशुभाई पटेल सहित तमाम बड़े भाजपा नेताओं के साथ हुआ या जैसा उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद आडवाणी, डॉ. जोशी आदि का हुआ है।


सवाल है नरेंद्र मोदी को जिस पार्टी ने बनाया उसका मोदीकरण करने से उन्हें क्या फायदा? क्या उन्हें यह समझ नहीं आया हुआ है कि गुजरात में ही जमीनी नेताओं को खत्म करने से हर चुनाव अकेले उन पर आश्रित हो गया है? क्या वहां विजय रूपाणी चुनाव जीता सकते हैं? ऐसे ही तमाम प्रदेशों का मामला है। असम में भाजपा अपने मुख्यमंत्री सोनोवाल को वापिस सीएम बनाने की घोषणा कर चुनाव नहीं लड़ रही है। तथ्य है कि भाजपा में आडवाणी काल के येदियुरप्पा, शिवराज सिंह, वसुंधरा राजे, रमन सिंह आज भी आधार लिए नेता है। इनके चेहरे से चुनाव लड़ा जा सकता है। मगर क्या सोनोवाल, मनोहर लाल खट्टर, जयराम ठाकुर, देवेंद्र फड़नवीस याकि नरेंद्र मोदी-अमित शाह के बैठाए मुख्यमंत्रियों में अपने बूते चुनाव जीतने की राजनीति, वोट जुटाने का भाजपा में फैसला संभव है?

तभी तय मानें पार्टी सौ टका नरेंद्र मोदी पर निर्भर है। वे ही मालिक हैं, कर्ता हैं और उन्हीं से भाजपा का भविष्य बंधा हुआ है। तभी भाजपा, संघ, हिंदुवादी राजनीति का आने वाले सालों, दशकों में क्या हाल होगा, इसकी कल्पना मुश्किल नहीं है।


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