सम्पादकीय

विश्व सिनेमा की जादुई दुनिया: जर्मन सिनेमा का उतार-चढ़ाव

Neha Dani
21 Oct 2022 1:39 AM GMT
विश्व सिनेमा की जादुई दुनिया: जर्मन सिनेमा का उतार-चढ़ाव
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लुपिटा टोवर ने तरह-तरह से सहायता की और कई लोगों को अमेरिका लेकर आए।
दर्शकों से पैसे लेकर सर्वप्रथम सिनेमा दिखाने का श्रेय लुमियर भाइयों को दिया जाता है। उन्होंने दिसम्बर 1895 में सर्वप्रथम यह करिश्मा किया। पर इससे करीब दो महीने पहले बर्लिन में यह किया जा चुका था। जर्मनी के 'बायोस्कोप' के अन्वेषक मैक्स स्क्लाडनोस्की को यह श्रेय नहीं मिलने का प्रमुख कारण है कि यह बायोस्कोप बड़े पैमाने पर प्रयोग के लिए व्यावहारिक नहीं था। इसके बावजूद जल्द ही बर्लिन फ़िल्म उद्योग का केंद्र बन गया। 1905 में बर्लिन शहर में 16 फ़िल्म थियेटर थे।
प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जर्मन सिनेमा ने खूब तरक्की की और विश्व सिनेमा को परिवर्तित कर दिया। एक सूत्र के अनुसार 27 फ़रवरी 1920 को जर्मन सिनेमा का प्रारंभ माना जाता है, उस दिन रोबर्ट वीनि के दु:स्वप्न जैसी मूक फ़िल्म 'कैबिनेट ऑफ़ डॉक्टर कालिगारी' का प्रथम प्रदर्शन हुआ था। एफ़.ड्ब्ल्यू मुर्नाऊ की फ़िल्म 'द लास्ट लाफ़' ऐसी ही फ़िल्म है।
जर्मन फिल्मों की दो प्रमुख धाराएं
इस समय 'रोमांटिक' तथा मॉडर्न' दो धाराएं जर्मनी में पनपीं। रोमांटिक धारा की अधिकांश फ़िल्में रोमांटिक साहित्याधारित थीं। वे रोमांटिक चित्रकारों के कार्य का भी उपयोग करते थे। वे या तो खूबसूरत लोकेशन का उपयोग करते अथवा स्टूडियो में कलात्मक सेट बना कर शूटिंग करते। जैसे कान जैसी आकृति की सीढ़ियां या खूब झुकी हुई बिल्डिंग, छाया-प्रकाश में पेंट की हुई खिड़किया-दरवाजों आदि का प्रयोग करते। डबल एक्सपोजर आदि सिनेमा तकनीकि का भरपूर प्रयोग उनके यहां होता था। अक्सर वे भयंकर-डरावने तत्वों को सिनेमा में डालते थे।
दूसरी ओर मॉडर्न शाखा के फ़िल्मकार नए टॉपिक का उपयोग कर सफल फिल्में बना रहे थे। उनके यहां विकसित होते शहर पर फिल्में बन रही थीं, जैसे, 'जॉयलेस स्ट्रीट', लैंग की मूक फ़िल्म 'मेट्रोपोलिस', 'बर्लिन: सिम्फ़नी ऑफ़ ए ग्रेट सिटी' आदि।
जर्मनी में फ़ासिज्म अपना सिर उठा रहा था जिसने वहां के साहित्य और सिनेमा दोनों को प्रभावित किया। अत: प्रोपेगंडा फ़िल्में भी बनने लगी थीं। फिल्म में राजनीति की घुसपैठ हो रही थी। तकनीकि की प्रगति का असर भी फिल्मों पर था। इस बीच 'द गर्ल इन द मून' 1929 में बनी, इसी साल 'ऑल क्वाएट ऑन द वेस्टर्न फ़्रॉन्ट' भी आई। हालांकि उस समय 'मेट्रोपोलिस' अथा 'कैबिनेट ऑफ़ डॉक्टर कालिगारी' को बॉक्स ऑफ़िस पर बहुत सफ़लता नहीं मिली थी।
जल्द ही फ़िल्म उद्योग नाज़ी द्वारा हथिया लिया गया। पूरा सिने-उद्योग 'मिनिस्ट्री ऑफ़ पब्लिक एंटरटेंनमेंट एंड प्रोपगंडा' के कब्जे में था, जिसका प्रमुख कुख्यात जोसेफ़ गोइबेल्स था। इसका नतीजा हुआ अधिकांश जर्मन फिल्म निर्देशक जर्मनी छोड़ कर हॉलीवुड पलायन कर गए। करीब 800 अभिनेता, निर्देशक, संगीत बनाने वाले, स्क्रीनप्ले राइटर, आर्किटेक्ट, सिनेमाटोग्राफ़र एवं प्रड्यूसर अपना स्थान छोड़ कर अमेरिका भागे। वहां भी जीवन आसान नहीं था, भाषा की दिक्कत थी।
बिली विल्डर, लैंग, हेनरी कोस्टर, फ़्रेड ज़िनेमान, रॉबर्ट सिओडमैक ऐसे ही निर्देशक थे। बिली विल्डर की मां, सौतेला पिता, ग्रैंडमदर सब यातना शिविर की भट्टी में झोंक दिए गए। अभिनेता पॉल हेनरीड, लिओनिड किन्स्की, नार्शल डालिओ आदि जर्मनी से भाग कर अमेरिका पहुंचे। जर्मन होते हुए भी अपने अंतर की आवाज सुन कर मर्लिन डिट्रिच पहले ही हॉलीवुड पहुंच गई थी।
सेक्स सिंबल मर्लिन डिट्रिच ने 1939 में अमेरिकी नागरिकता ले ली और उसने नाज़ी जर्मनी से प्रलोभन मिलने पर भी नैतिकता के कारण लौटने से इंकार किया। कर्ट गेरोन, ओटो वालबर्ग, पॉल मोर्गन जैसे लोग भाग न सके और उनकी हत्या हुई। पॉल कोह्नर और उसकी पत्नी अभिनेत्री लुपिटा टोवर ने तरह-तरह से सहायता की और कई लोगों को अमेरिका लेकर आए।

सोर्स: अमर उजाला

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