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जादुई 100वां टेस्ट मैच एक चिंगारी है
अतिशय जैन
चौदह साल पहले, जब एक गोल-मटोल , दुस्साहसी किशोर ने पहली बार राष्ट्रीय टीम की जर्सी पहनी थी , तो कई पंडितों को संदेह था कि वो खेल के सबसे संभावित प्रारूप में सफल होगा भी या नहीं. जैसे-जैसे साल बीतते गए कोहली (Virat Kohli) की प्रतिभा और स्ट्रोकप्ले में निखार आता गया. तीनों फारमेट में उनके शॉट्स के प्रदर्शनों की इतिहासकारों ने सराहना की और प्रशंसकों ने उन्हें " क्रिकेट का राजा " (King of Cricket) घोषित कर दिया. अब एक दशक के बेहतरीन खेल के बाद , विराट कोहली उस शिखर पर खड़े हैं जिस पर अभी तक सिर्फ 11 भारतीय पहुंचे हैं.
पूर्व भारतीय कप्तान 4 मार्च से मोहाली में शुरू होने वाले श्रीलंका के खिलाफ अपना 100वां टेस्ट मैच खेलेंगे. 2011 में किंग्स्टन में वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट में विराट कोहली ने अपनी पारी की शुरूआत की थी. इसके बाद इस दाएं हाथ के करिश्माई बल्लेबाज ने अपने बल्ले से कई जादुई पारी खेली और बतौर कप्तान कई कीर्तिमान बनाए. कोहली 100 टेस्ट मैचों के मील के पत्थर तक पहुंचने वाले 12वें भारतीय (कुल मिलाकर 71वें) खिलाड़ी होंगे. कोहली के लिए यह ऐतिहासिक अवसर ऐसे समय में आया है जब वह बल्ले से अपने करियर के सबसे कमजोर दौर से गुजर रहे हैं.
विमर्श
कोहली मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं , उन्हें शानदार पारियों का दोहराने की जरूरत है , अतिशय जैन लिखते हैं.
टेस्ट क्रिकेट के 150 साल के इतिहास में किसी भी बल्लेबाज ने अपने करियर के पहले 10 वर्षों में विराट कोहली से ज्यादा शतक नहीं जड़े हैं. इस भारतीय रन-मशीन ने सुरूचिपूर्ण तरीके और मानसिक मजबूती से स्ट्रोक मेकिंग को और अधिक ऊंचाइयों तक पहुंचाया है. अपने चरम पर रहते हुए 33 साल के इस बल्लेबाज ने जिस तरह की बल्लेबाजी की वैसा किसी और ने अभी तक नहीं की है. लेकिन जैसा कि कई महान खिलाड़ियों के साथ होता आया है , कोहली का बल्ला भी अब खामोश हो गया है.
बहरहाल , हर महान बल्लेबाज को एक मुश्किल दौर से गुजरना पड़ा है और इस दौर से उबरने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत भी की है लेकिन रन के कॉलम में उनकी कड़ी मेहनत कभी नहीं दिखाई देती है . कोहली भी इस वक्त कुछ ऐसा ही अनुभव कर रहे हैं जब वे 8,000 रन से महज 38 रन दूर हैं . सिर्फ उन्होंने ही नहीं बल्कि किसी ने भी यह नहीं सोचा होगा कि रनों का ये आकाल इतना लम्बा खींच जाएगा , खास तौर पर लाल गेंद वाले क्रिकेट में.
नवंबर 2019 में बांग्लादेश के खिलाफ ईडन गार्डन्स में खेलते हुए उन्होंने शतक मारे थे. इसके बाद 15 मैचों में कोहली का औसत केवल 28.14 है . उस अवधि में उनका औसत उनके करियर के औसत (50.39) से लगभग आधा है . 2019 ईडन गार्डन टेस्ट के बाद, कोहली का रेड-बॉल क्रिकेट में कुल औसत 54.97 था, जो अब की तुलना में साढ़े चार रन अधिक है . रनों के मामले में ये भारी गिरावट अभी भी उनके कट्टर समर्थकों को चकित करता है.
इस 33 वर्षीय बल्लेबाज ने अपने आखिरी टेस्ट शतक के बाद से न तो ODI या T20I में शतक बनाया है लेकिन फिर भी इस दौर में दोनों फारमेट में (ODI: 37.66, T20I: 56.40) उनका आंकड़ा एक स्वस्थ औसत का दंभ तो भरते ही है.
कोहली के सामने एक कड़ी चुनौती है – किस तरह अपने डूबते टेस्ट करियर को पुनर्जीवित किया जाए. वह अब कप्तान या 'देश के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी' नहीं हैं फिर भी प्लेइंग इलेवन में उनकी जगह अभी खतरे में नहीं है. लेकिन देखिए चेतेश्वर पुजारा और अजिंक्य रहाणे का क्या हुआ . ये दोनों ही अपने फॉर्म में नहीं आ पाए नतीजतन उन्हें टेस्ट टीम में जगह नहीं मिली. कोहली को अपनी फॉर्म में फिर से जान फूंकने की जरूरत है. और वो भी अभी.
क्या वह इन पिशाचों को एक तरफ धकेल सकते हैं , शोर बंद कर सकते हैं और एक बार फिर से शाही अंदाज में क्रिकेट खेल सकते हैं ? बहरहाल ये भी एक हकीकत है कि महान कोहली के खिलाफ कोई भी दांव नहीं लगा सकता है !
कोहली के मील के पत्थर के खेल की सेटिंग ठीक उसी तरह है जिस पर उनके जैसा व्यक्तित्व पनपता है. महान एथलीट हमेशा एक ब्लिप, हार की एक श्रृंखला या फॉर्म में गिरावट को सहन करने के बाद एक रास्ता खोजते हैं . उनके लिए, यह सिर्फ एक पारी की बात है, कभी-कभी एक-दो ओवर. मोहाली के 100वां टेस्ट में उनका खेलना और फिर लाखों समर्थकों द्वारा एक और मास्टरक्लास पारी खेलने के लिए प्रेरित करना शायद एक उत्प्रेरक का काम करे जो कोहली की बल्लेबाजी में चिंगारी वापस ला दे. साथ ही, पूर्व भारतीय कप्तान के पास अब केवल अपनी बल्लेबाजी पर ध्यान केंद्रित करने की आज़ादी है क्योंकि उन्हें अब मैदान पर अपने टीम के खिलाड़ियों को मार्शल करने की जरूरत नहीं है.
केवल नौ बल्लेबाजों ने अपने 100वें टेस्ट में शतक बनाया है और 100वें टेस्ट की दोनों पारियों में केवल एक (रिकी पोंटिंग) ने शतक बनाया है . दुनिया को उम्मीद है कि कोहली अपने मील के पत्थर के इस खेल में अपने शतक के सूखे को खत्म करेंगे और महान बलेलेबाजों की सूची में शामिल हो जाएंगे. इसमें कोई संदेह नहीं है कि कोहली, जो कि खुद एक गहन प्रतियोगी हैं , इस खेल के लिए पूरी तरह चार्ज हो जाएंगे. लेकिन क्या यह अवसर स्वयं 'राजा' के लिए भी बहुत अधिक होगा ?
डिबेट
कोहली अपने पुराने व्यक्तित्व की परछाई दिखते हैं , रमित चौहान लिखते हैं.
शायद बहुतों ने ये भविष्यवाणी नहीं कि होगी कि टेस्ट में कोहली का संघर्ष इतना लम्बा चलेगा. कोहली की खराब फॉर्म को सिर्फ आंकड़ों में नहीं आंका जा सकता है , भले ही वह अपनी पिछली आठ पारियों में तीन बार शून्य पर आउट हुए हों और पिछले पांच टेस्ट में उनका औसत 26 रहा हो.
इससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि कोहली में रन बनाने की भूख अब नहीं रही. लगातार असफलताओं ने "ओवरथिंकिंग " और " आत्म-संदेह " को जन्म दिया है . ये ऐसे दो शब्द हैं जो कभी भी कोहली के साथ नहीं जुड़ पाए. उदाहरण के लिए, कोहली ने कई मौकों पर आक्रामक और असामान्य रूप से निष्क्रिय पारी का अजीब मिश्रण खेल खेला है. वह क्रीज पर घबराए हुए दिख रहे थे और फॉर्म में वापस आने की कोशिश कर रहे हैं . शुद्ध क्रिकेट खेलने वाला ये बल्लेबाज अब जोखिम उठाने के लिए तैयार है.
जैसा कि पूर्व भारतीय क्रिकेटर से कमेंटेटर बने आकाश चोपड़ा ने हाल ही में कहा था कि कप्तानी की गड़बड़ी ने कोहली को मानसिक रूप से खराब कर दिया होगा. ऑन-फील्ड संघर्षों के साथ-साथ ऑफ-फील्ड विवादों ने आधुनिक समय के महानतम बल्लेबाज पर भारी असर डाला है.
कोहली अब 33 साल के हो चुके हैं .अब उनकी उम्र कम नहीं होगी. और अब एक शुद्ध बल्लेबाज के रूप में खेलते हुए, वह अवसरों को बर्बाद करने का जोखिम नहीं उठा सकते. कोहली के लिए आगे का रास्ता कठिन है और रनों की कमी के कारण अब उनकी मानसिक मजबूती की जांच की जा रही है.
विराट कोहली एक महान बल्लेबाज हैं , 100वाँ टेस्ट उनके लिए उत्प्रेरक का काम करेगा जिसकी उनको जरूरत है , निखिल नारायण लिखते हैं.
यह कभी भी बहस का मुद्दा नहीं हो सकता कि बल्ला उठाने वालों में विराट कोहली अभी तक के सबसे महान बल्लेबाज हैं. कोई भी अगर कुछ दूसरी बात करते हैं तो ये महज भ्रम ही होगा. 33 वर्षीय बल्लेबाज के लिए 100वां टेस्ट इससे बेहतर समय पर नहीं आ सकता था. यह सिर्फ उत्प्रेरक है. 'राजा' को अपना राज्य वापस लेने की जरूरत है.
इस स्टाइलिश दाएं हाथ के बल्लेबाज का टेस्ट क्रिकेट में 50 से अधिक का शानदार औसत है . 99 या इससे अधिक टेस्ट खेलने वाले बहुत से बल्लेबाजों का औसत कोहली से बेहतर नहीं है. साल 2013 में पूर्व भारतीय कप्तान ने इंग्लैंड में अपने करियर में इसी तरह की मंदी का अनुभव किया था , लेकिन इसके बाद दहाड़ मारते हुए पूरी दुनिया में रन बनाकर वापसी की.
कोहली ऑस्ट्रेलिया (13 टेस्ट में 54 से अधिक के औसत ) और दक्षिण अफ्रीका (सात मैचों में 51 से अधिक औसत) में हावी रहे और फिर 2018 में देश लौटने पर इंग्लैंड से मैच जीत लिया . इसलिए, वे जानते हैं कि इस तरह के पैच से कैसे बाहर आना है.
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वे अपने करियर के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं , लेकिन इस खराब दौड़ में बहुत बातों का योगदान रहा है . कामयाब होने का उनका मजबूत इरादा अभी कमजोर नहीं हुआ है और यह हमने विंडीज के खिलाफ उनके पिछले कुछ मैचों में देखा है.
अब जब उन पर कप्तानी का बोझ नहीं है , तो यह 100वां टेस्ट सिर्फ प्रेरणा ही नहीं बल्कि उन्हें शतक बनाने के लिए मोटिवेट भी करेगा और उनके पास दुनिया को दिखाने का एक मौका है कि विराट – बल्लेबाज अभी भी जिंदा है.
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