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- उस पार की रोशनी
स्वरांगी साने; जितने दुख हैं वे एक प्रक्रिया हैं, जैसे सोने के तपने, हीरे के तराशने या किसी मूर्ति के निखारने की होती है। जो घाव सह सकता है, वही संपदा और आने वाले समय में अतीत की विरासत कहलाने के लिए तैयार हो रहा होता है। यह बात सबको पता है, लेकिन अमल में लाने से हम डर जाते हैं, पीछे हट जाते हैं।
अंधेरी सुरंग को पार किए बिना उस पार की रोशनी नहीं मिल सकती, लेकिन हम सुरंग में आगे बढ़ने से डरते हैं। ऐसा करते हुए हम अपनी यात्रा को और लंबी कर देते हैं, हम अपने उजले भविष्य से दूरी को और अधिक बढ़ा देते हैं। हमें अपने जीवन में आगे बढ़ते रहना होगा तभी जाते-जाते पार जाया जा सकेगा। नई चीजों के लिए, बदलाव के लिए खुद को हमेशा तैयार भी रखना होगा। अगर अब तक आप यह मान कर चल रहे हैं कि बुरे लोग, बुरा समय बता कर नहीं आता तो यह भी मान लीजिए कि अच्छे लोग, अच्छा समय भी बता कर नहीं आता। समझ लीजिए कि अच्छा समय आने को है, तो क्या आप उसके लिए तैयार हैं?
अपने को मानसिक और भावनात्मक दुष्चक्र, चिंताओं से दूर कर सहिष्णुता, दया और करुणा से भर दीजिए। दूसरों का भला करने पर ही अपना भला होगा, इसे हमेशा याद रखिए। हो सकता है इस समय आप खुद को हारा हुआ, पस्त और चिंता में पा रहे हों, लेकिन इन सबके अलावा शांति पाने का रास्ता भी होता है, जिसे खुद चुनना पड़ता है। वर्तमान जैसा भी हो, लेकिन उसमें भी शांति और सुकून पा सकते हैं, कोशिश तो कीजिए।
जीवन का कोई ऐसा दुख, कोई ऐसी पीड़ा या ऐसा कोई त्रासद हादसा है, जिसे बदला नहीं जा सकता तो उसे स्वीकार कर लीजिए। त्रासद समय, परिस्थिति, व्यक्ति, घटना या नुकसान को पूर्ण विराम लगाइए, क्योंकि आप उसे बदल नहीं सकते तो उस पर सोचते मत रहिए, उससे आगे बढ़िए। यह विश्वास रखिए कि आपसे बढ़ कर कुछ नहीं है और कुछ भी आपकी स्वीकारोक्ति के बिना आप पर हावी नहीं हो सकता। नकारात्मकता को खुद पर हावी होने की अनुमति ही मत दीजिए।
शोक मत मनाइए। शोकगीत गाने की आदत मत बनाइए। आपकी नौकरी चली गई, पद छीन लिया गया, करिअर चला गया, सेहत खराब हो गई, हालात बदतर हो गए या अवसर चूक गए, दुख को किसी भी रूप में अपने ऊपर हावी मत होने दीजिए। दुख एक प्रक्रिया है, हम कब तक उस प्रक्रिया में खुद को अटकाए रखेंगे? आपको कब और किस रूप में हानि हुई, उस बात को कितने साल हो गए, कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क तब पड़ता है जब आप उस बोझ को सहते चले जाते हैं। दुख मनाते रहने से दुख खत्म नहीं होता, और बढ़ता चला जाता है। जितना आप रोएंगे, उतने अधिक आंसू बहते चले जाएंगे। इस दुष्चक्र को रोकना हो तो रोना छोड़ दीजिए।
ऐसे भी लोग होते हैं, जिनके जीवन के हर पक्ष में अंधकार भरा होता है, उनका कामकाज अच्छा नहीं चलता, उनका स्वास्थ्य खराब होता है और उनके रिश्तों में टूटन होती है। अगर उससे उबरना हो तो सब खत्म हो गया के भाव से खुद को निकालना होगा। कभी कुछ भी खत्म नहीं होता है। गांठ बांध लीजिए, जब तक आप खत्म नहीं होते, कुछ भी खत्म नहीं होता। खुद को खत्म होने से बचाए रखिए। आप क्या हैं और आप क्या हो सकते हैं, इस पर ध्यान देते रहिए। आपको खुद को कीचड़ बनाना है या कीचड़ में खिले कमल-सा बनना है, तय कीजिए।
कुछ भी एक दिन में नहीं होता, न तो कीचड़ एक दिन में जमता है, न काई, न ही कमल एक दिन में खिलता है। प्रक्रिया का आनंद लीजिए। जिन वाकयात से आप गुजर रहे हैं, उनसे एक बार में गुजर जाइए, खुद को रोकिए नहीं और आगे जो भी अच्छा आने वाला है, उसका स्वागत कीजिए। जब आप किसी से बहुत अधिक लगाव रखते हैं तो उस व्यक्ति या वस्तु के चले जाने पर गहरी पीड़ा और टूटन का अनुभव होता है। मगर हर घाव आपको तराशने के लिए मिला होता है। हर पीड़ा आपको कुछ सिखा कर जाती है, हर दुख आपको बेहतर बनाता है। जितना अधिक दुख आपके हिस्से आता है, उतने अधिक आप मानवीय होते चले जाते हैं, उतने अधिक आप दूसरों के दुख, दर्द, तकलीफ, पीड़ा को समझ पाते हैं।
आपने अब तक जितने लोगों को खोया या जितना नुकसान उठाया है, उसे सूचीबद्ध कीजिए। अब इसे किसी सुरक्षित जगह पर रख दीजिए और भूल जाइए। भूल जाइए कि आपको दुख हुआ था, आपको संत्रास झेलना पड़ा था। लिख लेने से आपके मन से वह एक बार में निकल जाएगा। अब शांति और सुकून की राह पर चल पड़िए। दुखों को नया करते रहने से बेहतर है, सुखों को ताजा करते चलें।