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सम्पादकीय
अपराधियों के प्रोफाइल वाला कानून पुलिस के लिए वरदान लेकिन इसके दुरुपयोग भी मुमकिन
Gulabi Jagat
6 April 2022 1:56 PM GMT
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अपराध की प्रवृत्तियों का अध्ययन करने और राज्य पुलिस को सलाह देने के लिए गृह मंत्रालय में एक मोडस ऑपरेंडी ब्यूरो स्थापित किया गया है
राकेश दीक्षित।
नई पीढ़ी के अपराधों (Crimes) को पुरानी तकनीकों से नहीं निपटा जा सकता है. कानून (Law) पर अमल कराने वाली जांच एजेंसियों को आपराधिक न्याय प्रणाली को नये युग में ले जाने की कोशिश करनी होगी. नये अधिनियम का उद्देश्य देश की कानून व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) को मजबूत करना है. इन प्रावधानों का उपयोग केवल जघन्य अपराधों के मामलों में ही किया जाएगा. विधेयक को अलग-थलग नहीं बल्कि समग्र दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए. केंद्र सरकार ने आपराधिक न्याय प्रणाली को मजबूत करने के लिए कई फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालयों की स्थापना की है क्योंकि पुरानी तकनीकों का उपयोग करके नई पीढ़ी के अपराधों की जांच नहीं की जा सकती.
अपराध की प्रवृत्तियों का अध्ययन करने और राज्य पुलिस को सलाह देने के लिए गृह मंत्रालय में एक मोडस ऑपरेंडी ब्यूरो स्थापित किया गया है. भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में संशोधन के लिए भी विचार-विमर्श चल रहा है. आज की तारीख में देश के लगभग 99 प्रतिशत पुलिस थानों को क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम्स से जोड़ दिया गया है. मानवाधिकारों का मुद्दा उठाने वाले विपक्षी सदस्यों को कानून का पालन करने वाले अपराध के शिकार लोगों के मानवाधिकारों की भी चिंता करनी चाहिए. विधेयक कानून का पालन करने वाले करोड़ों नागरिकों के मानवाधिकारों के रक्षक के रूप में काम करेगा.
डाटा की जानकारी लेने के लिए कई प्रश्नों से गुजरना होगा
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि बिल यह सुनिश्चित करेगा कि पुलिस और जांचकर्ता अपराधियों से दो कदम आगे रहें. प्रस्तावित कानून के तहत एकत्रित आंकड़ों के दुरुपयोग पर कुछ विपक्षी सदस्यों की चिंता बेबुनियाद है. पूरी दुनिया एक डेटाबेस का उपयोग कर रही है और हमें भी समय के साथ आगे बढ़ते हुए इसका उपयोग करना होगा. वैसे भी, ऑटोमोबाइल चोरी सहित अपराधों को सुलझाने के लिए डाटाबेस का उपयोग ढाई साल से किया जा रहा है.
विपक्ष की सुझाई गई कुछ चिंता वैध है और नियम बनाते समय उनका समाधान किया जाएगा. गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, 'यदि आवश्यकता पड़ी तो मैं खुद संशोधन लाऊंगा.' किसी भी सुरक्षात्मक (निवारक) कानून के तहत हिरासत में लिए गए लोगों को नमूना देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता था. हालांकि, वे खुद अपनी तरफ से नमूनों की पेशकश कर सकते थे. किसी व्यक्ति की सहमति के बिना कोई भी नार्को-टेस्ट या ब्रेन मैपिंग टेस्ट नहीं किया जाएगा.
जमा किए गए डाटा को सुरक्षित हार्डवेयर में स्टोर किया जाएगा और सैंपल भेजने वालों (मिलान के लिए) को नतीजे के बारे में बताया जाएगा. यह डाटा किसी से साझा नहीं किया जाएगा. किसी भी डाटा लीक या दुरुपयोग को रोकने के लिए एक अत्याधुनिक तकनीक से संचालित फुलप्रूफ तंत्र स्थापित किया जाएगा. डाटा की जानकारी लेने के लिए कई प्रश्नों से गुजरना होगा. यह बिल इसलिए लाया गया है ताकि पुलिस और जांचकर्ता अपराधियों से दो कदम आगे रहें. कोई आशंका नहीं होनी चाहिए. अमित शाह ने कहा कि बीजेपी वोट बैंक की राजनीति नहीं करती. आतंकवाद रोकथाम अधिनियम (पोटा) राष्ट्रीय हित में एक अच्छा कानून था मगर "तुष्टिकरण" के लिए इसे निरस्त कर दिया गया.
नया आइडेंटिफिकेशन बिल यूएपीए जैसे मौजूदा कठोर कानूनों के दायरे को बढ़ाता है
विपक्ष का तर्क है कि नया आईडेंटिफिकेशन बिल संविधान में गारंटी किए गए 'कठोर और नागरिक स्वतंत्रता' के खिलाफ' है. क्रिमिनल क्रिमिनल प्रोसीजर (आइडेंटिफिकेशन) बिल, 2022 के संभावित दुरुपयोग पर विपक्ष की चिंता विशेष रूप से दिल्ली और 2019-20 में उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ शांतिपूर्वक विरोध करने वाली भीड़ पर आधारित है. कानून पर अमल कराने वाली एजेंसियों ने इस दौरान बायोमेट्रिक डाटा का उपयोग किया. नया आइडेंटिफिकेशन बिल यूएपीए जैसे मौजूदा कठोर कानूनों के दायरे को बढ़ाता है. इससे पुलिस को कमोबेश किसी भी व्यक्ति से व्यक्तिगत डाटा एकत्र करने की छूट मिलती है. ऐसे में विपक्ष का डर निराधार नहीं है.
भारत में कमजोर गोपनीयता नियमों ने नए पहचान विधेयक के दुरुपयोग को लेकर चिंता को और बढ़ा दिया है. आधार कार्ड में सुरक्षा उपायों की कमी के साथ आरोग्य सेतु कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग ऐप की कई विफलताओं के विवाद के कारण मोदी सरकार के डेटा संग्रह के दुरुपयोग की आशंका को बढ़ा दिया है. हालांकि 2017 में पुट्टास्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने निजता को मौलिक संवैधानिक अधिकार के रूप में स्थापित किया. मगर राष्ट्रीय डाटा संरक्षण कानून का मसौदा तैयार करने और पेश करने की प्रक्रिया वर्षों से लटकी चली आ रही है.
लोकसभा में विपक्षी सदस्यों के कुछ तर्क यहां दिए जा रहे हैं.
मनीष तिवारी (कांग्रेस)
"बिल कठोर और नागरिक स्वतंत्रता के खिलाफ है. यह संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 20 (3) और 21 का उल्लंघन करता है. नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों पर इसका बड़ा असर होगा जिसके दूरगामी परिणाम होंगे. चूंकि विधेयक में आपराधिक मामलों में पहचान और जांच और रिकॉर्ड को संरक्षित करने के लिए दोषियों और दूसरे लोगों की माप लेने का प्रावधान है, यह मानवाधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता से संबंधित संविधान की भावना के खिलाफ है.
महुआ मोइत्रा (टीएमसी)
विधेयक आइडेंटिफिकेशन ऑफ प्रिज़नर्स एक्ट,1920 की जगह लेता है मगर प्रस्तावित कानून में ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के बनाए गए कानून की तुलना में कम सुरक्षा उपाय हैं. डेटा संरक्षण कानून के अभाव में इस बिल से उस व्यक्ति की गोपनीयता का उल्लंघन हो सकता है जिसे दोषी नहीं ठहराया गया है. इसमें एकत्र की गई जानकारी को सुरक्षित रखने संबंधी सुरक्षा उपायों का अभाव है.
दयानिधि मारन (डीएमके)
यह बिल जनविरोधी है और संघवाद यानी केंद्र और राज्यों की भावना के खिलाफ है. सरकार ऐसा कानून लाकर एक निगरानी वाला राज्य स्थापित करने की कोशिश कर रही है. यह ओपन एंडेड है और व्यक्तियों की निजता का उल्लंघन करता है.
विनायक राउत (शिवसेना)
विधेयक मानवता पर एक क्रूर मजाक है क्योंकि यह लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन करता है और इसके दुरुपयोग की भी आशंका है.
दानिश अली (बीएसपी)
विधेयक "भारत को एक पुलिस तंत्र राज्य में परिवर्तित कर सकता है और राजनीतिक बदला लेने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है."
भ्रातृहरि महताब (बीजेडी)
आइडेंटिफिकेशन बिल ब्रिटेन उपनिवेशवादों के बनाए अपने पूर्ववर्ती कानून की तुलना में आधुनिक है मगर इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए मजबूत सुरक्षा उपायों की जरूरत है. इसमें हर नागरिक का व्यापक प्रोफाइल तैयार करने की क्षमता है. यदि डाटा संरक्षण कानून और डीएनए प्रोफाइलिंग कानून भी साथ में होता तो इस विधेयक के प्रावधानों को स्वीकार करना ज्यादा आसान होता.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
Gulabi Jagat
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