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- सेक्युलरिज्म के ताबूत...
किसी कांटेदार झाड़ का नाम बरगद रख देने से वह बरगद नहीं हो जाता, लेकिन राजनीति में इसी तरह के काम किए जाते हैं। हैरत यह है कि कुछ लोग ऐसा प्रचारित करने के लिए आगे भी आ जाते हैं कि हां जी, वह झाड़ ही बरगद है। पश्चिम बंगाल में यह तबसे देखने को मिल रहा है, जबसे हुगली स्थित फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने इंडियन सेक्युलर फ्रंट नामक राजनीतिक दल का गठन किया है। सबसे पहले अब्बास सिद्दीकी पर असदुद्दीन ओवैसी ने डोरे डाले। वही ओवैसी जो मीडिया के एक हिस्से और खासकर अंग्रेजी मीडिया की नजर में सेक्युलर लीडर हैं। हालांकि उनके दल का नाम ही मजहबी तेवर वाला यानी ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन है, फिर भी वह अपने सीने पर सेक्युलर होने का तमगा लगाए घूमते हैं। उनकी खासियत यह है कि वह देश के उन्हीं इलाकों से चुनाव लड़ते हैं, जहां मुस्लिम आबादी अधिक होती है। किसी कारण उनकी अब्बास सिद्दीकी से बात नहीं बनी। माना जाता है कि इसके बाद अब्बास सिद्दीकी को अपने पाले में लाने की कोशिश ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने भी की, लेकिन ज्यादा सीटें मांगने के कारण बात नहीं बनी।