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सम्पादकीय
The Kashmir Files : बेजुबान लोगों को उनकी आवाज़ लौटाती है यह फिल्म, दबे मुद्दों को फिर से वापस ला दिया
Gulabi Jagat
24 March 2022 4:53 AM GMT
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इस फिल्म के जरिए, इन लोगों को यह पता चल पाया कि वास्तव में क्या हुआ था
टी वी मोहन दास पई.
द कश्मीर फाइल्स (The Kashmir Files) ने उन पुराने मुद्दों को फिर से सामने ला दिया है जिसे लुटियंस की दिल्ली (Delhi) ने अपने पसंद के लिहाज से दबा कर रख दिया था. आज जब कोई इस फिल्म को देखने जाता है और नब्बे के दशक में कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) के साथ हुए नरसंहार के आंकड़ों को देखता है, तो वह उस क्रूरता और अत्याचार के बारे में सोचकर ही भयभीत हो जाता है. उनके कस्बों पर कब्जा करना, उनके खिलाफ जूनुनी नफरत, हिंदुओं को निशाना बनाना, निर्मम हत्या और कश्मीरी पंडितों का नरसंहार करना और, उन्हें उनके उन इलाकों से भगाना, जहां वे सदियों से रह रहे थे, ये वे घटनाएं हैं जिनके बारे में बहुत से भारतीय को जानकारी नहीं होगी.
इस फिल्म के जरिए, इन लोगों को यह पता चल पाया कि वास्तव में क्या हुआ था. कई-कई वर्षों तक लुटियंस की दिल्ली और तब की सरकारें जमीनी हकीकत को दबाए रखने के प्रयास करती रहीं, उनका मानना था कि इन्हें जाहिर करने से सांप्रदायिक तनाव के स्थिति पैदा हो सकती है. हालांकि, कश्मीरी पंडितों ने जिन पीड़ाओं और क्रूरता को सहा है, उसके बारे में देश को जानने की जरूरत थी ताकि उनकी पीड़ाओं पर मरहम लगाने के लिए कुछ किया जा सके. घटना के बाद आई सरकारों की वजह से 7 लाख से अधिक कश्मीरी पंडित गरीब के जाल में फंस गए, इन सरकारों ने उनकी जरूरतों को पूरा करने की दिशा में कुछ नहीं किया.
आज हर कोई दुखी महसूस कर रहा है
आजाद भारत में ऐसा पहली बार हुआ था जब भारतीयों को उनकी जन्मभूमि से ही निकाल दिया गया और उन्हें अपने ही देश में रिफ्यूजी बनना पड़ा. यह घटना और अधिक दुखदायक इसलिए हो जाती है क्योंकि तब भारत को आजाद हुए 40 वर्ष हो गए थे. The Kashmir Files यह दिखाती है कि कैसे भारत की सरकार अपने ही नागरिकों के जीवन, आजादी और संपत्ति की रक्षा करने में नाकाम रही थी. यह ऐसी कमजोर सरकार थी जिसने सांप्रदायिक राजनीति के आगे घुटने टेक दिए और मानवता व कश्मीरी पंडितों के खिलाफ हुए इन जघन्य अपराधों पर पर्दा डालने का प्रयास किया.
जैसा कि कहानी कहती है, आज हर कोई दुखी महसूस कर रहा है, वे कश्मीरी पंडितों के दर्द का अहसास कर पा रहे हैं. हमने देखा कि प्रधानमंत्री अपनी ही पार्टी से बात करते हैं और बताते हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उनकी आलोचना हो रही है, लोग कह रहे हैं कि उनकी स्वतंत्रता बाधित हो रही है, उसी देश में बॉलीवुड, फिल्म बिरादरी और लुटियंस दिल्ली के कई लोगों ने कश्मीरी पंडितों का सच दबाने की कोशिश की. हमें देश में हुई विभिन्न घटनाओं के बारे में जानने की जरूरत है, किसी समस्या के हल के लिए सत्य को दबाना कोई समाधान नहीं है. सत्य के उजागर होने से किसी समुदाय के खिलाफ कोई भावना नहीं भड़केगी क्योंकि सभी यह समझते हैं कि वह दौर अलग था जब ऐसी क्रूरताएं हुई थीं और अब हमें सुधार के लिए कदम उठाने होंगे.
हिटलर ने यहूदियों के साथ जो कि किया था उसके कारण होलोकॉस्ट (यहूदियों के खिलाफ नरसंहार) की घटना हुई थी. बाद में यहूदियों ने बर्लिन और दूसरे स्थानों में होलोकॉस्ट म्यूजियम बनाया था ताकि होलोकॉस्ट की यादों को कभी भुलाया न जा सके. वे स्थान जहां यहूदियों का संहार हुआ था, उनके शिविर लोगों के आने जाने के लिए आज भी संरक्षित हैं, ताकि लोग इस घटना की भयावहता को समझ सकें और यह सुनिश्चित करें कि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न होने पाएं. ऐसी घटनाओं की स्मृति को जीवित रखना किसी समुदाय के प्रति जनता के क्रोध को भड़काना नहीं है, बल्कि ये यादें बताती हैं कि मनुष्य क्रूरता की किस हद तक गिर सकता है.
बेजुबान लोगों को अपनी आवाज मिली है
अब बॉलीवुड भी पूरी तरह से बेनकाब हो चुका है. हमने कई फिल्मों में स्थानीय मुसलमानों, कट्टरवादियों और जिहादियों द्वारा कश्मीरी पंडितों के खिलाफ किए गए अत्याचार को दबाते हुए देखा है. हमने यह भी देखा है कि लुटियंस की दिल्ली ने इस हिंसा को यह कहते हुए सही ठहराने तक की कोशिश की है कि कश्मीरी पंडित, कश्मीरी समाज के संभ्रांत लोग थे और उन्होंने दूसरों का दमन किया था और इसके जवाब में पीड़ितों ने उनके साथ अत्याचार किया.
यह भी दुर्भाग्यजनक है कि कई पत्रकारों ने इन अपराधों को वाजिब ठहराने की कोशिशों का समर्थन किया. किसी भी अपराध को कभी सही नहीं ठहराया जा सकता. किसी भी सभ्य समाज में हिंसा को सही नहीं कहा जा सकता. हम सभी को अपराध, अपराधियों, और हिंसा के खिलाफ खड़े होना चाहिए, चाहे किसी के विरुद्ध हो. हम सभी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकार लोगों के जीवन, उनकी आजादी और उनकी संपत्ति की रक्षा करने की अपनी जिम्मेदारी को पूरा करे.
इस प्रकार द कश्मीर फाइल्स (The Kashmir Files), आजादी के बाद एक मोड़ लाने वाला बिंदु है. आज बेजुबान लोगों को अपनी आवाज मिली है. स्वतंत्र फिल्मकार ऐसी फिल्में बना रहे हैं जो सत्य को दिखाते हैं, ताकि हमें यह पता चल सके कि गलती कहां हुई थी. सत्य और वाजिब रिपोर्टिंग को व्यापक स्तर पर समर्थन प्राप्त होता है. कुछ आलोचकों का कहना है कि The Kashmir Files केवल हिंदुओं पर हुई क्रूरता को दिखाती है, न कि अन्य लोगों की. यह एक और शातिराना तर्क है. क्रूरता, निर्मम हत्याएं, लोगों और उनके घर को तबाह करने की वारदातों की कश्मीर में हुई अन्य घटनाओं से तुलना नहीं की जा सकती. क्या इस तरह की गैरवाजिब आलोचना करने वाले लोग कभी हमें कश्मीरी पंडितों की तकलीफों के बारे में बताते हैं और क्या वे यह बताते हैं कि इसका वैकल्पिक दृष्टिकोण क्या है?
(TV Mohandas Pai, Aarin Capital Partners के मौजूदा चेयरमैन हैं. यह लेख नेहा भान से उनकी हुई बातचीत पर आधारित है.)
Gulabi Jagat
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