सम्पादकीय

जिस जाटलैंड से उम्मीद थी उसी ने अखिलेश यादव के सपने पर पानी फेर दिया

Rani Sahu
11 March 2022 4:21 PM GMT
जिस जाटलैंड से उम्मीद थी उसी ने अखिलेश यादव के सपने पर पानी फेर दिया
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उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election) में बीजेपी ने धमाकेदार तरीके से सत्ता में वापसी की है

यूसुफ़ अंसारी

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election) में बीजेपी ने धमाकेदार तरीके से सत्ता में वापसी की है. तमाम कोशिशों के बावजूद अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) योगी सरकार को सत्ता से बाहर करने में नाकाम रहे. कहा जा रहा है कि अखिलेश के लिए उनके सहयोगी दल पनौती साबित हुए हैं. समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) की सबसे बड़ी सहयोगी आरएलडी थी. गठबंधन में इसने ही सपा के बाद सबसे ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा था. ऐसे में ये विश्लेषण करना ज़रूरी है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ये सपा-आरएलडी गठबंधन कितना कामयाब रहा? इसने बीजेपी को नुकसान पहुंचाया या फिर जयंत चौधरी अखिलेश यादव के लिए पनौती साबित हुए?
सपा-आरएलडी गठबंधन के तहत आरएलडी को कुल 33 सीटें मिली थीं. इनमें से भी दो सीटों पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार आरएलडी के चुनाव निशान पर लड़े थे. आरएलडी ने इनमें से 8 सीटों पर जीत दर्ज की है. 19 सीटों पर वो दूसरे स्थान पर रही. पांच सीटों पर आरएलडी तीसरे स्थान पर रही है. इन पांचों सीटों पर उसे बीएसपी ने तीसरे स्थान पर धकेला है. खैरगढ़ की सीट पर वो चौथे स्थान पर खिसक गई. इस सीट पर उसे महज़ 14,133 वोट मिले हैं. इस सीट पर बीजेपी जीती है. कांग्रेस दूसरे और बीएसपी तीसरे स्थान पर रही है. इस हिसाब से देखें तो आरएलडी का प्रदर्शन ठीक-ठाक रहा है. इसे बहुत ज़्यादा उत्साहवर्धक या निराशाजनक नहीं कहा जा सकता.
छपरौली सीट आरएलडी ने 30 हज़ार से ज़्यादा वोटों से जीती है
जाट-मुस्लिम समीकरण के आधार पर चुनाव में उतरी आरएलडी के दो मुस्लिम विधायक जीते हैं. उसने कुल 4 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. शामली ज़िले की थाना भवन सीट पर आरएलडी के ही अशरफ अली ने योगी सरकार के गन्ना मंत्री सुरेश राणा को 11 हज़ार से ज्यादा वोटों से हाराया है. मेरठ की सिवालखास से उसके उम्मीदवार गुलाम मोहम्मद ने बीजेपी के मनिंदर पाल को 9 हज़ार से ज्यादा वोटों से हराया है.
बागपत से आरएलडी के उम्मीदवार मोहम्मद अहमद हमीद बीजेपी के योगेश धामा से 6 हज़ार से ज़्यादा वोटों से हार गए वहीं बुलंदशहर से उसके उम्मीदवार हाजी यूनुस बीजेपी के प्रदीप कुमार चौधरी से 25 हज़ार से ज़्यादा वोटों से हारे हैं. बागपत में हार को लेकर जाटों पर जयंत की पकड़ पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं. जीत वाली आठ में से सात पर आरएलडी के उम्मीदवारों को एक लाख से ज़्यादा वोट मिले हैं. अपनी परंपरागत छपरौली सीट आरएलडी ने 30 हज़ार से ज़्यादा वोटों से जीती है. जबकि जीत का सबसे कम अंतर सादाबाद सीट पर रहा है. नीचे सभी सीटों के आंकड़े देख सकते हैं.
विधानसभा सीट आरएलडी प्रत्याशी वोट वोट बीजेपी प्रत्याशी वोट जीत का अंतर
बुढ़ाना राजपाल सिंह बालियान 1,31,093 उमेश मलिक 1,02,783 28,310
छपरौली अजय कुमार 1,11,880 सुरेश सिंह 81,357 30,523
मीरापुर चंदन चौहान 1,07,124 प्रशांत चौधरी 79,693 27,431
पुरकाज़ी अनिल कुमार 92,672 प्रमोद उटवाल 86,140 6,532
सादाबाद प्रदीप कुमार सिंह 1,04874 रामवीर उपाध्याय 98,437 6,437
सिवालखाल ग़ुलाम मोहम्मद 1,01,749 मनिंदर पाल 92,567 9,182
शामली प्रसन्न कुमार 1,03,070 तेजेंदर सिंह 95,963 7,107
थाना भवन अशरफ अली ख़ान 1,03,751 सुरेश खन्ना 9,2472 11,279
छह सीटों पर बुरी हार, दो पर अंतर मामूली
आरएलडी ने आठ सीटें जीती हैं और छह सीटों पर वो बहुत बुरी तरह हारी है. इन सीटों पर उसकी हार का अंतर 55 हज़ार से लेकर एक लाख 18 हज़ार तक है. ये सभी सीटें जाट बहुल मानी जाती है. इन सभी सीटों पर आरएलडी दूसरे स्थान पर रही है, लेकिन बड़े हार को देख कर लगता है कि वो इन सीटों पर बीजेपी के सामने बिल्कुल भी नहीं टिक पाई. इन सीटों पर उसका जाट-मुस्लिम समीकरण पूरी तरह धराशाई हो गया. इन सीटों में मेरठ कैंट सबसे अहम है.
यहां आरएलडी की उम्मीदवार मनीषा अहलावत बीजेपी के अमित अग्रवाल से 1,18,072 वोट से हारी हैं. अमित को कुल 1,62,032 वोट मिले हैं जबकि मनीषा महज़ 43,960 वोटों परह ही सिमट गईं. बीजेपी से पाला बदल कर आने वाले अवतार सिंह भड़ाना जेवर सीट पर 56 हज़ार से ज़्यादा वोटों से हारे हैं. भड़ाना दो बार सांदस और कई बार विधायक रह चुके हैं. वहीं पूर्व सांसद मुंशीरीम बिजनौर की नहटौर सीट से सिर्फ 258 वोटों से हारे हैं तो बरौट से जयवीर 315 वोटों से.
दूसरे स्थान वाली सीटों पर आरएलडी की हार का अंतर नीचे देखा जा सकता है
विधानसभा सीट आरएलडी उम्मीदवार हार का अंतर
मेरठ कैंट मनीषा अहलावत 1,18,072
मुरादनगर सुरेंद्र कुमार मुन्नी 97,095
स्याना दिलनवाज़ ख़ान 89,657
इगलास बीरपाल सिंह 59,163
जेवर अवतार सिंह भड़ाना 56,315
शिकारपुर किरनपाल 55,683
छाता तेजपाल सिंह 48,948
फतेहपुर सीकरी ब्रजेश कुमार 47,269
मोदीनगर सुदेश शर्मा 34,619
बुलंदशहर हाजी यूनुस 25,830
बलदेव बबिता देवी 25,255
मुज़फ्फरनगर सौरभ 18,694
खतौली राजपाल सैनी 16,345
लोनी मदन भैया 8,676
हापुड़ गजराज सिंह 7034
बागपत मोहम्मद अहमद हमीद 6,733
बिजनौर डॉ. नीरज चौधरी 1,455
बरौट जयवीर 315
नहटौर मुंशीराम 258
पांच सीटों पर तीसरे तो एक पर चौथे स्थान पर खिसकी
अपने ही गढ़ में आरएलडी पांच सीटों पर तीसरे स्थान पर खिसक गई. इन सभी सीटों पर आरएलडी को बीएसपी ने पछाड़ा है. जैसी की उम्मीद की जा रही थी कि कुछ सीटों बीएसपी का दलित मुस्लिम समीकरण प्रभावी हो सकता है. इन हालांकि सीटों बीएसपी जीत तो दर्ज नहीं कर सकी लेकिन उसने सपा गठबंधन को पछाड़ कर दूसरा स्थान ज़रूर हासिल कर लिया है. खैरगढ़ विधानसभा सीट पर आरएलडी चौथे स्थान पर सिमट कर रह गई. यहा उसे महज़ 14,133 वोट ही मिले हैं. जिन सीटों पर आरएलडी को तीसरे स्थान पर ही संतोष करना पड़ा उनकी लिस्ट नीचे दी गई है.
विधानसभा सीट आरएलडी का उम्मीदवार आरएलडी को मिले वोट
रामपुर मनिहारान विवेक कांत 64,864
गोवरधन प्रीतम सिंह 55,679
आगरा ग्रामीण महेश कुमार 52,731
खैर भगवती प्रसाद 41,644
बरौली प्रमोद गौड़ 32,781
कितना असरदार रहा सपा-आरएलडी गठबंधन
अब सवाल पैदा होता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा-आरएलडी गठबंधन कितना असरदार रहा? चुनावी नतीजो के आंकड़े बताते है कि ये गठबंधन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जड़े तो नहीं खोद पाया लेकिन इसने बीजेपी की बुनियाद ज़रूर हिला दी है. हालांकि बीजेपी को कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ. 9 जिलों की 55 सीटों बीजेपी ने इस बार 31 सीटें जीती हैं. जबकि 2017 के चुनाव में उसने 38 सीट जीती थीं.
सपा-आरएलडी गठबंधन 24 सीटें जीतेने मेंं कामयाब रहा. पिछले चुनाव में उसने 15 सीटें जीती थी. कहा जा रहा था कि किसान आंदोलन के कारण बीजेपी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नाराजगी झेलनी पड़ सकती है. लेकिन किसी भी सीट पर कोई बड़ा मुद्दा मुखर होकर सामने नहीं आया. ध्रुवीकरण, सुरक्षा, कानून-व्यवस्था, केंद्र और राज्य की योजनाओं पर लोगों ने वोट डाला. हालांकि कुछ सीटों पर विधायकों से स्थानीय लोगों की नाराजगी दिखी. चुनाव में मुस्लिम जाट समीकरण के कारण कड़ा मुकाबला देखने को मिला.
तीन मंडलों में बीजेपी को नुकसान
सपा-आरएलडी गठबंधन ने तीन मंडलो में बीजेपी को भारी नुकसान पहुंचाया है. जाटलैंड कहे जाने वाले सहारनपुर, मेरठ और मुरादाबाद मंडल की 71 सीटों में से पिछली बार बीजेपी 51 सीट जीती थी. बाकी 20 सीट विपक्ष को मिली थीं. लेकिन इस बार 31 सीटें विपक्ष ने जीतीं. बीजेपी के हिस्से सिर्फ 40 सीटें ही आईं. सपा-आरएलडी गठबंधन ने सबसे ज्यादा मुरादाबाद मंडल में 17 सीटें जीतीं है. वहीं इस गठबंधन ने सहारनपुर में 9 और मेरठ मंडल में 5 सीटें जीतीं हैं. इन मंडलों में बीजेपी को काफी नुकसान हआ है.
योगी सरकार के मंत्री सुरेश राणा को आरएलडी ने और फायर ब्रांड नेता संगाीत को सरधना सीट से सपा ने हराया है. बरेली की बहेड़ी सीट से राजस्व राज्यमंत्री छत्रपाल गंगवार अपनी सीट नहीं बचा पाए. रामपुर के बिलासपुर से राज्यमंत्री बलदेव सिंह औलख महज़ 307 वोटों से ही अपनी सीट बचा पाए. मुरादाबाद शहर में रितेश गुप्ता तमाम उठा-पटक के बाद सिर्फ 782 वोटों से जीत पाए. रामपुर में आजम खान का जलवा कायम रहा. उनके बेटे अब्दुल्ला आज़म खान ने भी जीत हासिल की.
सपा का मददगार साबित हुआ आरएलडी
प्रदेश में बीजेपी की लहर के बावजूद मुजफ्फरनगर जिले में सपा-आरएलडी गठबंधन ने दमखम दिखाया है. 2017 में सभी छह सीटों पर एकतरफा जीत दर्ज करने वाली बीजेपी इस बार खतौली और सदर सीट तक सिमटकर रह गई. 2002 के बाद आरएलडी अपनी खोई राजनीतिक ताकत पाने में कामयाब रहा. बुढ़ाना, मीरापुर और पुरकाजी सीट पर 'हैंडपंप' मतदाताओं की पहली पसंद बना, जबकि चरथावल सीट पर अखिलेश की 'साइकिल'चल निकली. ज़िले की छह विधानसभा पर सपा-आरएलडी गठबंधन बीेजेपी पर भारी पड़ा. पिछले चुनाव में जीती हुई सीटों में भाजपा ने चार गंवा दीं.
चार सीटों पर गठबंधन की जीत आरएलडी के लिए संजीवनी साबित हुई. बुढ़ाना, मीरापुर, पुरकाजी, खतौली और सदर सीटों पर हैंडपंप के सिंबल पर चुनाव लड़े गए, जिसमें तीन सीटों पर आरएलडी ने भाजपा को शिकस्त दी. साइकिल के चुनाव चिन्ह पर चरथावल से लड़े पंकज मलिक ने भाजपा की सपना कश्यप को हराया. इस सीट पर पहली बार सपा का खाता खुला है. ज़ाहिर है यहां जयंत अखिलेश को जाटों के वोट ट्रांसफर कराने में कामयाब रहे.
बीस साल बाद आरएलडी जीता यहां
चुनावी रण में बीस साल बाद आरएलडी के हक में ऐसी जीत आई है. मुज़फ़्फरनगर जिले में 2002 में खतौली से राजपाल बालियान, जानसठ सुरक्षित सीट से डॉ. यशवंत और बघरा सीट से अनुराधा चौधरी जीती थीं. साल 2007 में मोरना से सिर्फ कादिर राना आरएलडी के विधायक बने थे. उपचुनाव में भी मिथलेश पाल की जीत आरएलडी के हिस्से में आई थी. नए परिसीमन के बाद हुए 2012 के चुनाव में खतौली से करतार सिंह भड़ाना ही आरएलडी के टिकट पर जीत सके थे. 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों ने आरएलडी के सियासी गणित को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया था. जाट-मुस्लिम समीकरण बिखर गया था. इसकी वजह से 2014 और 2019 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया था. यहां तक की आरएलडी के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह 2014 में बागपत से तो 2019 के लोकसभा चुनाव में खुद अपना चुनाव तक हार गए थे. इस बार गठबंधन की जिले में मिली बंपर जीत से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में लुप्त होते आरएलडी और इसके मुखिया जयंत चौधरी के सियासी वजूद को नई ताकत मिल गई है.
हालांकि आरएलडी सिर्फ 8 सीटें जाीत पाई है. उसे कुल 2.85 फीसदी वोट मिले हैं. अभी भी राज्य स्तर पर उसकी मान्यता पर तलवार लटकी हुई है. 2017 के विधानसभा चुनाव में आरएलडी ने 277 सीटों पर चुनाव लड़ा था. तब वो सिर्फ छपरौली की ही एक मात्र सीट जीत पाई थी. 266 सीटों पर उसके उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई थी. उसे सिर्फ 1.87 फीसदी थे. इस वजह से आरएलडी उसकी क्षेत्रीय पार्टी की भी मान्यता ख़त्म हो गई थी. दरअसल दो लोकसभा चुनावों और एक विधानसभा चुनाव में लगातार हार के बाद आरएलडी का वजूद पूरी तरह ख़तरे में है. इस चुनाव में आठ सीटें जीतने के बावजूद ये खतरा टला नहीं है.
दरअसल क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने या इसे बनाए रखने के लिए किसी पार्टी को कुल विधानसभा सीटों की 3 प्रतिशत सीटें जीतना जरूरी है. कोई सीट नहीं जीतने की स्थिति में 8 प्रतिशत वोट हासिल करना ज़रूरी है. इसके अलावा तीन सीटें और 6 फीसदी वोट हासिल करने पर भी क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा मिल सकता है. फिलहाल इनमें से एक भी शर्त आरएलडी पूरी करती नहीं दिखती. इस हिसाब से देखेे तो अखिलेश का साथ पाकर जयंत के डूबते आरएलडी को तिनके का ही सहारा मिल पाया है. इसकी मान्यता बचाने और उसे मज़बूत करने के लिए उन्हें लोकसभा चुनाव में और बेहतर प्रदर्शन करना होगा.


Rani Sahu

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