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- अंध-विरोध की 'जहनियत'
आदित्य चोपड़ा; सेना में भर्ती की अग्निपथ योजना का जिस तरह अंध विरोध विपक्ष के कुछ राजनैतिक दल कर रहे हैं उससे यही सन्देश जा रहा है कि इन्हें देश की सेना के समर्पित नेतृत्व पर भरोसा नहीं है। मगर राष्ट्र सुरक्षा के प्रति पूरी तरह कटिबद्ध हमारी सेनाओं को अपने विवेक और शौर्य पर पूरी तरह भरोसा है, इसीलिए उसने कह दिया है कि जो फैसला हो चुका है उस पर अमल होगा और भर्ती के इच्छुक प्रार्थियों को अब परीक्षा की तैयारी करनी चाहिए। अग्निवीरों को प्रशिक्षित करने की समय सारिणी की घोषणा के साथ सेना के उस दृढ़ निश्चय के जज्बे से देशवासियों का परिचय हो चुका है जिसके साथ वह राष्ट्र की सुरक्षा के काम में लगी रहती हैं। अग्निवीरों की पद्धति से ही अब भविष्य में सेनिकों की भर्ती होगी, यह भी हमारी फौज के जांबाज कमांडरों ने साफ कर दिया है। मगर आलोचक राजनैतिक दल इस मुद्दे पर जिस तरह बौखला रहे हैं उससे उनकी हताशा और निराशा का पता चलता है। इसकी वजह यह है कि इस मुद्दे पर वह जिस तरह का राजनीतिक खेल खेलना चाहते थे, वह मौका उनके हाथ से निकल गया है।अग्निपथ योजना की घोषणा के बाद जिस तरह की आगजनी व तोड़फोड़ कुछ उपद्रवी तत्वों की मदद से बिहार में कराई गई उसका पर्दाफाश होने में भी ज्यादा समय नहीं लगेगा क्योंकि इसके बाद जिन अन्य राज्यों में तोड़फोड़ या आगजनी हुई उसकी तर्ज भी बिहार जैसी ही थी। अग्निवीर प्रणाली की शुरुआत ऐसा दूरदर्शी निर्णय है जिसका सुफल देश की आने वाली पीढि़यों को मिलेगा। लोकतन्त्र में राजनीति का अर्थ केवल सत्ता कब्जाना नहीं होता है बल्कि आने वाली पीढि़यों के लिए ऐसे रास्ते बनाने का होता है जिन पर चल कर वे सुख-चैन महसूस कर सकें। युवा पीढ़ी भी यह जानती है कि आज का युग प्रथम या द्वितीय विश्व युद्ध की तर्ज पर लड़ी जाने वाली लड़ाइयों का नहीं है। जिस तरह समाज का विकास विज्ञान के विकास के साथ होता है उसी प्रकार युद्ध कला का विकास भी इसके समानान्तर होता है। अंग्रेजों ने फौज का जो ढांचा स्वतन्त्र भारत को सौंपा था उसे हमने पिछले 75 वर्षों में परिमार्जित किया है परन्तु 21वीं सदी के अनुसार संशोधित नहीं किया है। अतः एेसा करना बहुत आवश्यक है। अग्निवीर उसी दिशा में दूरगामी कदम है। मगर इस मुद्दे पर पिछले चार दिन हुई तोड़फोड़ या हिंसा व आगजनी से वे लोग बहुत खुश नजर आ रहे थे जिनका लक्ष्य अपनी सियासी रोटियां सेंकना होता है। यही वजह है कि उनकी भाषा जहरीली हो रही है और वे काट खाने के लिए आते दिखाई पड़ रहे हैं। यदि सार्वजनिक सभाओं में किसी देश के प्रधानमन्त्री की मृत्यु की कामना प्रकट की जाने लगेगी तो समझना चाहिए कि ऐसे लोग दिमागी तौर पर दिवालिया हो चुके हैं और उनकी मानसिकता व्यक्तिगत रंजिश से भरी हुई है।लोकतन्त्र में कभी भी व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं होती। बल्कि हकीकत तो यह है कि दुश्मनी तो होती ही नहीं। बड़े से बड़ा राजनैतिक विरोधी भी अपने प्रतिद्वन्द्वी की दीर्घ आयु की कामना करता है। मगर क्या कयामत है कि कांग्रेस के वरिष्ठ कहे जाने वाले नेता सुबोधकान्त सहाय भरे मंच से श्री नरेन्द्र मोदी की मृत्यु की कामना करते हैं। इससे लगता है कि कांग्रेस पार्टी को खुद को खत्म करने के लिए किसी दूसरी पार्टी की जरूरत नहीं है। इसे समाप्त करने की तकनीक स्वयं इसके नेता ही ईजाद किये बैठे हैं। मगर देखिये कैसी-कैसी जहनियत के लोग इस हिन्दोस्तान की फिजां में जहर घोलने के लिए तैयार बैठे हुए हैं।संपादकीय :मानवता के लिए योगकाबुल में गुरुधाम पर हमलासैनिक भर्तीः सेना का ही हकआज फिर जरूरत है संयुक्त परिवारों कीकश्मीर में चुनावों की सुगबुगाहटधूर्त चीन का पाखंडबरेली के एक मौलाना हैं तौफीक रजा। वे इस गम में दुबले हुए जा रहे हैं कि काश नूपुर शर्मा के मुद्दे पर आगजनी और तोड़फोड़ का कोई असर न हुआ। उन्हें गम है कि मुसलमान इस मामले में ऐतराज जाहिर करते समय शान्त क्यों रहे? जनाब फरमाते हैं कि अगर मुसलमानों का ऐतराज भी कुछ अग्निवीर की तर्ज पर हुआ होता तो उनकी भी मांग मान ली गई होती। अग्निवीर मुद्दे पर सरकार ने भर्ती के लिए इस साल के लिए नौजवानों को उम्र में दो साल की छूट दी और चार साल बाद फौज से लौटने पर उनके लिए केन्द्रीय पुलिस बल व कुछ अन्य सरकारी उपक्रमों में दस प्रतिशत का आरक्षण देने की घोषणा की। जनाब तौफीक रजा की मुराद क्या थी कि नूपुर शर्मा को गिरफ्तार कर लिया जाये। जनाबे वाला अभी भी मांझी (अतीत) के तस्सवुर में इस तरह खोये हुए हैं कि इन्हें सावन में हरा-हरा ही नजर आ रहा है।सनद रहना चाहिए कि पाकिस्तान के निर्माण में इस्लाम के बरेली स्कूल के मौलानाओं का ही बहुत बड़ा हाथ रहा है जिन्होंने मुहम्मद अली जिन्ना के फलसफे की बढ़-चढ़कर तस्दीक की थी। मगर यह आजाद हिन्दोस्तान है और यहां कानून के मुताबिक वही होता है जिसकी इजाजत संविधान देता है और संविधान के मुताबिक नूपुर शर्मा के खिलाफ कानून अपना काम कर चुका है जिसका फैसला अदालत से होगा। इसलिए तौकीर रजा को सबसे पहले अपना रास्ता ही ठीक करना होगा और भारत के मुसलमानों को बरगलाना बन्द करना होगा। जनाब यह 1947 नहीं बल्कि 2022 है जिसमें आदमी चांद पर बस्तियां बसाने का ख्वाहिशमन्द है। मौलाना जरा गौर करें आज का 'भारत बन्द' क्यों असफल रहा।