सम्पादकीय

एक रिपोर्टर की नजर से सम्मेलन का असर; जलवायु सम्मेलन हो गया, अब मैं क्या कर सकता हूं?

Rani Sahu
13 Nov 2021 6:18 PM GMT
एक रिपोर्टर की नजर से सम्मेलन का असर; जलवायु सम्मेलन हो गया, अब मैं क्या कर सकता हूं?
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जलवायु सम्मेलन हो गया, अब मैं क्या कर सकता हूं?

थाॅमस एल. फ्रीडमैनमैंने पिछले कुछ दिन ग्लासगो में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में तमाम तरह के लोगों से बाचतीच करते हुए बिताए। इससे मैं कई तरह के भावों से भर गया। मैं युवाओं की ऊर्जा देख हैरान था, जो बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ सड़कों पर उतरे थे। मैंने पहली बार देखा कि सम्मेलन में अंदर मौजूद वयस्क, बाहर सड़क पर खड़े युवाओं से डरे हुए थे। खोजकर्ताओं और निवेशकों के तकनीक तथा बाजार से जुड़े नए समाधानों को देखकर भी मैं हैरान था।

लेकिन इस सम्मेलन से निकले तमाम वादों के बीच मेरे ज़ेहन में एक सवाल उमड़ता रहा: हमने देखा कि कोविड-19 महामारी के दौरान सरकारों के लिए नागरिकों को मास्क लगवाना या वैक्सीन लगाना कितना मुश्किल रहा, जबकि यह उनकी ही सुरक्षा का सवाल था, ऐसे में वे बड़ी संख्या में लोगों को अपनी जीवनशैली में परिवर्तन करने के लिए कैसे तैयार करेंगे, जिसके कारण ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है? इसका को कोई इलाज या टीका भी नहीं है। जेन ज़ी, यानी 1997 से 2012 के बीच जन्मे लोगों की संख्या करीब 2.5 अरब है।
उन्होंने सम्मेलन में अपनी अच्छी मौजूदगी दर्ज कराई। वे अब समझ चुके हैं कि अपने काम से काम रखने का वक्त निकल चुका है। कुछ न करने पर सदी के अंत तक धरती उतनी गर्म हो जाएगी, जितने तापमान पर कभी कोई होमो सैपियंस नहीं रहा। इस पीढ़ी के लिए अच्छी खबर यह है कि वह जलवायु परिवर्तन की बहस जीत गई है। सरकारें और बिजनेस दोनों कह रहे हैं, 'हां, हम इसपर काम कर रहे हैं।'
बुरी खबर यह है कि ग्लोबल वार्मिंग कम करने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा सुझाए गए कोयले, तेल और गैस के इस्तेमाल तुरंत कम करने के तरीकों और सरकारें तथा बिजनेस और हां, औसत नागरिक जो कदम उठाने तैयार हैं, दोनों के बीच अभी बड़ी खाई है। खासतौर पर बात जब ईंधन और भोजन के चुनाव की हो। जैसा कि ऊर्जा विशेषज्ञ कहते हैं कि जब तक दूसरे विकल्प तैयार न हों, पहलों को नहीं छोड़ना चाहिए।
सरकारें तब तक बुरे जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल बंद नहीं करेंगी, जब तक उनकी जगह लेने के लिए पर्याप्त स्वच्छ ऊर्जा न हो। और इसमें सम्मेलन की चर्चा से कहीं ज्यादा समय या त्याग की जरूरत होगी। ऊर्जा एक बड़े पैमाने की समस्या है। इसके लिए बदलने की जरूरी होती है। यानी सबसे गंदे जीवाश्म ईंधन से प्राकृतिक गैस या परमाणु जैसे स्वच्छ ईंधनों, फिर सौर तथा पवन ऊर्जा तक जाना और अंतत: ऐसे स्रोतों पर जाना, जो अभी हैं ही नहीं।
जो लोग इस बदलाव को नजरअंदाज करने कहते हैं, वे इस सर्दी के मौसम में पूरे हरित आंदोलन के खिलाफ प्रतिक्रिया का जोखिम ले रहे हैं, जो तब होगी जब लोग अपने घरों को गर्म नहीं कर पाएंगे या कारखाने नहीं चला पाएंगे। तो क्या कोई रास्ता नहीं है? ऐसा नहीं है, लेकिन यह प्रार्थना करने का समय है। प्रार्थना करें कि तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस मिलकर उस खाई को पाट दें, जो आज के इंसानों द्वारा ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ उठाए जा रहे कदमों और इसके लिए वास्तविक जरूरत के बीच है।
प्रार्थना करें कि इंसान यह समझ पाएं कि हमारे भविष्य के संरक्षण के लिए आज कुछ दर्द झेलना होगा। क्योंकि अभी सिर्फ तकनीकों को लागू करना ही एकमात्र उपाय है, जो साधारण लोगों को कुछ असाधारण करने में मदद कर सकती हैं। तो क्या कुछ ऐसा है जो मैं, एक अकेला व्यक्ति, कर सकता हूं? बिल्कुल है। एक पेड़ लगाइए या किसी पेड़ को कटने से बचाइए।
इसके लिए देशी या स्थानीय समुदायों की मदद कर सकते हैं, जिनके इलाके में दुनिया के बचे हुए जंगलों का 50 फीसदी और स्वस्थ इकोसिस्टम का 80 फीसदी आता है। ये इलाके धरती के जैव विविधता के खजाने हैं। अगर आप असाधारण असर लाने वाला कोई साधारण काम करना चाहते हैं तो जैव विविधता के रखवाले बन जाइए।
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