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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जम्मू-कश्मीर में रोशनी एक्ट की आड़ में 25 हजार करोड़ का घोटाला सामने आया है। रोशनी एक्ट या रोशनी स्कीम का नाम सुनकर तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह बिजली से जुड़ी कोई योजना होगी, लेकिन यह कानून जम्मू-कश्मीर के अंधेरगर्दी से जुड़े एक घोटाले का नाम है। हाईकोर्ट ने भी इसे गैर कानूनी करार दिया था। अब इस भूमि घोटाले के तहत तमाम आवंटन और प्रक्रियाएं रद्द कर दी गई हैं और सीबीआई ने इस घोटाले की जांच भी शुरू कर दी है।
इस योजना का अाधिकारिक नाम जम्मू और कश्मीर राज्य भूमि एक्ट 2001 था। इसके तहत राज्य सरकार ने मामूली कीमतें तय कर उन लोगों को उन जमीनों पर स्थायी कब्जे देने की बात कही, जिन्होंने सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर रखा था। यानी सरकारी जमीनों पर गैर कानूनी कब्जों को कानूनी तौर पर मालिकाना हक देने की कवायद की गई। यह स्कीम 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला की सरकार द्वारा लाई गई थी।
इस स्कीम के तहत 1990 से हुए अतिक्रमणों को इस एक्ट के दायरे में कट ऑफ़ सैट किया गया था। उस दौरान राज्य सरकार ने किसानों को मुफ्त में उस कृषि भूमि के पट्टे दे दिए थे, जिन पर किसानों ने कब्जे किये हुए थे। अब्दुल्ला सरकार ने इस एक्ट को बनाते समय कहा कि जमीनों के कब्जों को कानूनी किए जाने से जो फंड जुटेगा, उससे राज्य में पावर प्रोजैक्टों का काम किया जाएगा, इसलिए इस कानून का नाम रोशनी रखा गया जो मार्च 2002 से लागू हुआ। एक एकड़ में 8 कनाल होते हैं और इस लिहाज से ढाई लाख एकड़ से ज्यादा अवैध कब्जे वाली जमीन हस्तांतरित करने की योजना बनाई गई। अंधेरगर्दी यह थी कि भूमि को मार्केट वैल्यू की सिर्फ 20 फीसदी दर पर सरकार ने कब्जेदारों को सौंपा। अब्दुल्ला सरकार के बाद की सरकारों ने भी इसका फायदा उठाया। 2005 में सत्ता में आई मुफ्ती सरकार ने कट आफ सैट को 2004 तक बढ़ा दिया और फिर गुलाम नबी आजाद सरकार ने 2007 तक बढ़ाया। इस रोशनी एक्ट का फायदा नेताओं, अफसरों, व्यापारियों आैर स्थानीय स्तर पर प्रभावशाली नेततों ने उठाया।
अब पूर्व वित्त मंत्री हसीब द्राबू, पूर्व गृह मंत्री सज्जाद किचलू, पूर्व मंत्री अब्दुल मजीद वानी, असलम गोनी, नेशनल कांफ्रैंस के नेता सईद आखून और पूर्व बैंक चेयरमैन एम.वाई. खान समेत कई लोगों के नाम सामने आए हैं। इन लोगों ने रोशनी एक्ट का फायदा उठाते हुए अपने या रिश्तेदारों के नाम जमीन कब्जा ली। इस घोटाले की गहराई का अंदाजा इस बात से लगता है कि श्रीनगर शहर के बीचोंबीच खिदमत ट्रस्ट के नाम से कांग्रेस के पास कीमती जमीन का मालिकाना हक पहुंचा तो नेशनल कांफ्रैंस का भव्य मुख्यालय तक ऐसी ही जमीन पर बना हुआ, जो इस भूमि घोटाले से तकरीबन मुफ्त के दाम हथियाई गई।
जब सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बनाए गए तो उनकी अगुवाई वाली राज्य प्रशासनिक परिषद ने रोशनी एक्ट को रद्द कर दिया। कहा तो यह भी जा रहा है कि इस एक्ट की आड़ में जम्मू-कश्मीर से पलायन कर गए कश्मीरी पंडितों के खाली पड़े मकानों और दुकानों को भी हड़पा गया। इस घोटाले में जम्मू-कश्मीर के सभी राजनीतिक दलों के लोग शामिल रहे।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद नेशनल कांफ्रैंस के नेता फारूक अब्दुल्ला, पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती और अन्य नेताओं की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं और उन्होंने कश्मीरियों के अधिकारों के लिए लड़ने और अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए गुपकर संगठन बना लिया है।
फारूक अब्दुल्ला अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए चीन की मदद लेने की बात करते हैं तो महबूबा तिरंगे का अपमान करती हैं। अनुच्छेद 370 के चलते आज तक केन्द्र की सरकारों ने जम्मू-कश्मीर में इतना धन बहाया है कि उसका कोई हिसाब-किताब नहीं। अलगाववादियों ने पाकिस्तान और खाड़ी देशों के धन से देश-विदेश में अकूत सम्पत्तियां बना लीं जबकि कश्मीरी बच्चों के हाथों में पत्थर और हथियार पकड़वा दिए।
जम्मू-कश्मीर को केन्द्र शासित प्रदेश बनाए जाने से इन सबकी दुकानें बंद हो चुकी हैं। जम्मू-कश्मीर देश का शायद एक मात्र ऐसा राज्य होगा जहां सरकारी जमीन पर धड़ल्ले से कब्जा हुआ।
20 साल पहले हुए सर्वे के अनुसार जम्मू-कश्मीर की 20,64792 कनाल भूमि पर लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा था। सरकारों ने अवैध कब्जे हटाने की बजाय लोगों को इन जमीनों का मालिकाना हक देने के लिए कानून बना दिया।
केन्द्र शासित जम्मू-कश्मीर में यह उम्मीद जगी है कि न्यायपालिका के दबाव में ही सरकारी जमीन पर हुए इन अवैध कब्जों को हटाया जाएगा और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी। सीबीआई जांच में और परतें खुलेंगी आैर लाभार्थियों का कच्चा चिट्ठाि सामने आएगा।