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- भुलाए न भूलेगी वह...
अगले चंद दिनों में कोरोना महामारी के मद्देनजर देश भर में लगाए गए लॉकडाउन को एक साल पूरा होने जा रहा है। इसके संताप से हुए खट्टे-मीठे अनुभव अभी तरोताजा हैं। यह व्यापक जनहानि बचाने के उद्देश्य से उठाया गया एक सरकारी अस्त्र था। आमजन को हुई तमाम दुश्वारियों के बावजूद यह काफी हद तक सफल भी रहा। भय और भूख मानव स्वभाव के लक्षण हैं। ये दोनों ही ऊर्जा व नए-नए आविष्कार करने हेतु प्रेरित करते रहे हैं। लॉकडाउन एक त्रासदी टालने के लिए लागू हुआ, लेकिन इसने अनगिनत कठिनाइयां आमजन के लिए खड़ी कर दी थीं। हालांकि, यह सब जगह कड़ाई से लागू किया भी नहीं जा सकता था।
आबादी की लगभग 60 फीसदी संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। इस आबादी के कमोबेश सक्रिय बने रहने से एक और बड़ी त्रासदी टल गई। जब लॉकडाउन लगा, तब गेहूं की फसल कटाई के चरण पर आ गई थी। भारतीय किसानों ने वैसे भी आपदाओं से दो-दो हाथ नियमित अंतराल पर करने की आदत डाल रखी है। ज्यादातर किसान निडरता से खेतों में जुटे रहे और लॉकडाउन समाप्त होने तक गल्ला मंडियों, गोदामों और अपने घरों तक में खूब भंडारण कर दिया। सकल घरेलू उत्पाद में भले ही कृषि क्षेत्र का अंशदान घट गया हो, पर कृषि का यह योगदान देश में अन्न के लिए मचने वाले भावी उपद्रव व अशांति को टालने में कामयाब रहा।