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उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव अब कुछ ही महीनों दूर है, पर विपक्षी दलों की तैयारी देख कर ऐसा प्रतीत होता है जैसे चुनाव अभी बहुत दूर है
अजय झा। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव अब कुछ ही महीनों दूर है, पर विपक्षी दलों की तैयारी देख कर ऐसा प्रतीत होता है जैसे चुनाव अभी बहुत दूर है. ऐसा तो हो नहीं सकता कि विपक्ष ने चुनाव होने से पहले ही हथियार डाल दिया हो. पर चुनाव जीतने के लिए जिस जोश और लगन की जरूरत होती है वह फिलहाल कहीं दिख नहीं रहा है. कहीं ऐसा तो नहीं कि विपक्ष यह मान कर चल रही है कि चूंकि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को हराना मुश्किल साबित होगा तो अभी से समय, श्रम और धन की बर्बादी क्यों करें.
उत्तर प्रदेश राजनीतिक दृष्टि से भारत का सबसे महत्वपूर्ण राज्य है. इस बात का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि भारत के अब तक के बने 14 प्रधानमंत्रियों में से 8 उत्तर प्रदेश से ही थे, इस सूची में अगर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी शामिल कर दिया जाए तो यह संख्या 9 हो जाती है, क्योकि मोदी भले ही गुजराती हों पर लोकसभा चुनाव वह उत्तर प्रदेश से ही लड़ते हैं. यह मात्र संयोग नहीं हो सकता कि वर्तमान में भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों की ही तार उत्तर प्रदेश जुड़े हैं.
राष्ट्रपति कोविंद की यूपी यात्रा पर आरोप
यह बीजेपी की सोची समझी योजना का हिस्सा था कि 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी ने रामनाथ कोविंद को अपना प्रत्याशी बनाया जबकि कोविंद कभी भी बीजेपी के बड़े नेताओं में नहीं गिने जाते थे.
मोदी अपने चुनाव क्षेत्र बनारस आकर जाते रहते हैं और रानजीतिक हलकों में इन दिनों खलबली सी मची हुयी है कि क्यों राष्ट्रपति कोविंद दो महीनों में दूसरी बार अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश के दौरे पर गए हैं. अपने चार दिवसीय दौरे के अंतिम दिन आज वह अयोध्या पहुचेंगे. चूंकि कोविंद दलित जाति से हैं, उत्तर प्रदेश के विपक्ष का मानना है कि राष्ट्रपति के अयोध्या दौरे के मार्फ़त यह प्रदेश के दलितों को हिन्दू धर्म से जोड़ने की कोशिश है, जो शायद सही भी हो सकता है. पर जबतक राष्ट्रपति खुलेआम अपने पूर्व दल बीजेपी के लिए प्रचार नहीं कर रहे हैं या फिर उनके कार्यक्रमों में बीजेपी का झंडा और मंच का इस्तेमाल नहीं हो रहा है, इस आरोप को प्रमाणित नहीं किया जा सकता.
यूपी में विपक्ष बैकफुट पर
चुनाव बेशक फरवरी-मार्च में होगा और उत्तर प्रदेश के संग अन्य चार राज्यों में चुनाव की विधिवत घोषणा चुनाव आयोग दिसम्बर के आखिरी सप्ताह या जनवरी के पहले सप्ताह में कर सकती है, पर बीजेपी अभी से पूरे जोर शोर से चुनाव की तैयारी की जुट गयी है. पार्टी के बड़े नेता प्रदेश में व्यस्त हैं, बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा इन दिनों दिल्ली में कम और उत्तर प्रदेश में ज्यादा दिखते हैं. और खबर है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अगले कुछ दिनों में अपने मंत्रिमंडल का विस्तार चुनाव के मद्देनजर करने वाले हैं. वहीं दूसरी तरफ विपक्ष की तैयारी नगण्य है. कांग्रेस पार्टी में जोश तब ही आता है जबकि प्रियंका गांधी प्रदेश का दौरा करती हैं जो यदाकदा ही होता है. उसके बाद पार्टी स्लीप मोड के चली जाती है. राहुल गांधी का उत्तर प्रदेश से मोह भंग हो गया है. और हो भी क्यों नहीं जबकि उनके अथक प्रयासों का नतीजा 2017 के चुनाव में सिर्फ 7 सीटों में जीत पर ही सिमट गया और 2019 लोकसभा चुनाव में वह उत्तर प्रदेश के अमेठी सीट से पराजित हो गए. अब वह उत्तर प्रदेश से दूर ही रहते हैं और जीत की जिम्मेदारी प्रियंका गांधी को सुपुर्द कर दिया है. और प्रियंका हैं कि साल में सिर्फ एक या दो बार ही उन्हें उत्तर प्रदेश की याद आती है. बहुजन समाज पार्टी की भी तैयारी अभी तक सिर्फ इतनी ही दिखी है कि एक बार फिर से पार्टी सोशल इंजीनियरिंग के प्रयास में जुटी है और ब्राह्मण जाति को रिझाने की कोशिश कर रही हैं. मायावती का दौरा अभी शुरू नहीं हुआ है. बीच बीच में उनका वक्तव्य आ जाता है, जैसे की जब तक वह स्वस्थ्य हैं उन्हें अपने उत्तराधिकारी को मनोनीत करने की जरूरत नहीं है या फिर कि कांग्रेस पार्टी पैसे देकर गरीबों को अपनी सभाओं में लाती है.
बस थोड़ी सी तैयारी प्रदेश के सबसे बड़े विपक्षी दल समाजवादी पार्टी में दिख रही है. पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव साइकिल चला कर अपनी सेहत का ख्याल रह रहे हैं और जनता के बीच जाने की कोशिश कर रहे हैं. पर अखिलेश के साथ एक समस्या है. उन्हें दूसरों पर भरोसा कम है और वह नहीं चाहते कि पार्टी के किसी दूसरे नेता को उनसे आगे बढने का मौका मिल जाए. लिहाजा प्रचार प्रसार समाजवादी पार्टी का ना हो कर सिर्फ अखिलेश यादव का प्रमोशन बन गया है. उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में चुनाव जीतने के लिए संगठन की आवश्यकता होती है जिसकी कमी साफ़ दिख रही है.
उत्तर प्रदेश बड़े बड़े मठों के लिए जाना जाता है.
इसी तरह के एक मठ से योगी आदित्यनाथ का भी संबंध है. विपक्ष भी मानो मठ खोल कर बैठ गया है और उनके नेता मठाधीशी कर रहे हैं, जिन्हें उनके पास आना हो आ जाए, वह कहीं नहीं जाएंगे. कहीं ना कहीं विपक्ष की सोच यही है कि शायद जनता को बीजेपी से नाराजगी हो सकती है और नेगेटिव वोटिंग द्वारा वह चुनाव जीत जाएंगे. इसलिए विपक्ष का काम सिर्फ बीजेपी, मोदी और योगी सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काने का रह गया है ना कि वह जनता के बीच अपना एजेंडा ले कर जाएं. वैसे नेगेटिव वोटिंग का बड़े पैमाने पर असर कभी कभी ही होता है. 2004 के लोकसभा चुनाव में नेगेटिव वोटिंग के कारण ही कांगेस पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी और सरकार भी बनाया था, ना कि कांग्रेस पार्टी अपने एजेंडा पर पॉजिटिव वोट से चुनाव जीती थी .लोगों का गुस्सा बीजेपी के एक गलत इंडिया शाइनिंग नारे पर फूट पड़ा था जिसके कारण बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. पर ऐसा बार बार नहीं होता. अगर आगामी चुनाव में बीजेपी के खिलाफ नेगेटिव और टैक्टिकल वोटिंग नहीं होती है तो बीजेपी की जीत सुनिश्चित है, क्योंकि विपक्ष उसे चुनौती देती दिख नहीं रही है.
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