सम्पादकीय

सबसे खुश लोग वे नहीं हैं, जो ज्यादा पा रहे हैं, बल्कि वे हैं जो ज्यादा दे रहे हैं!

Gulabi Jagat
10 April 2022 8:41 AM GMT
सबसे खुश लोग वे नहीं हैं, जो ज्यादा पा रहे हैं, बल्कि वे हैं जो ज्यादा दे रहे हैं!
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नियति जितना संयोग का विषय है, उतना ही चयन का भी है। जहां हम मानते हैं कि नियति हाथों की हथेलियों में लिखी होती है
एन. रघुरामन का कॉलम:
नियति जितना संयोग का विषय है, उतना ही चयन का भी है। जहां हम मानते हैं कि नियति हाथों की हथेलियों में लिखी होती है, वहीं अपनी नियति बनाना भी हमारे हाथ में है। चाट बेचने वाले पटियाला के एक 22 साल के नौजवान की जीवन-यात्रा युवाओं को मेहनत और लगन से अपनी तकदीर खुद बनाने के लिए प्रेरित करेगी। देश के कोने-कोने में ऐसी गलियां हैं, जो खाने के शौकीन लोगों की पसंदीदा होती हैं।
ऐसे में अगर किसी कोने में एक और फूड-स्टॉल बन जाए तो किसी को फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मनजिंदर सिंह की कहानी अलग है। उनके वीडियो वायरल हो गए हैं। उन्होंने ऐसा क्या किया? उन्होंने अपने भाई के साथ एक चाट-कारोबार खोला, जबकि उनके पास नौकरी का विकल्प भी था। दोनों भाइयों ने बचत से ढाई लाख रुपयों का निवेश किया। स्टॉल का नामकरण किया गया- 'आई लव पंजाब।'
यह मोहाली, फेज 11 में गुरुद्वारा सिंह सभा के निकट है। मनजिंदर दूसरों से अलग नहीं होते तो उनकी कहानी भुला दी गई होती। लेकिन उन्होंने स्ट्रीट-फूड बनाने और परोसते समय बिजनेस सूट पहनने का निर्णय लिया, जिसने उन्हें आकर्षण का केंद्र बना दिया। उनका आउटलेट सबसे हटकर माना जाने लगा। अपनी अच्छी शिक्षा के चलते वे अच्छे-से कम्युनिकेट भी कर पाते थे।
अगर आप सोच रहे हैं कि उन्होंने सूट पहनने के अलावा और क्या अलग किया, क्योंकि फूड-बिजनेस में सबसे ज्यादा महत्व तो स्वादिष्ट भोजन का ही होता है, तो मुझे आपको अगली स्टेप पर ले जाने दीजिए। मनजिंदर हास्पिटैलिटी डिग्रीधारक हैं। वे जो आलू टिक्की और अन्य डिशेस बनाते हैं, वे दूसरे रोड-साइड स्टॉल के उलट तेल के बजाय देसी घी में पकाई जाती हैं।
वे तांबे के जिस चमचमाते तवे पर इसे पकाते हैं, उसे भी लखनऊ से विशेष रूप से ऑर्डर देकर बुलाया गया था। वे अनेक कलर और फ्लैवर्स में समर ड्रिंक्स भी सर्व करते हैं, जो फूड-लवर्स को लुभाती हैं। इसके अलावा ग्राहकों को मोइतो के विभिन्न प्रकारों के बारे में भी पता चलता है! उन्होंने अपने स्टॉल को शानदार लुक देने के लिए चार सदस्यों वाले क्रू को जोड़ा। अभी तक उनके परिवार को उनके मौजूदा स्ट्रीट बिजनेस के बारे में पता नहीं है।
दोनों भाइयों ने पास ही में एक दुकान भी खरीद ली है और ओपनिंग सेरेमनी के लिए उन्होंने अपने माता-पिता को निमंत्रित करने का निर्णय लिया है। यह उनके लिए एक सरप्राइज होगा। अचरज नहीं कि जब फूड ब्लॉगर हैरी उप्पल ने उनकी स्टोरी कवर की तो उसे लाखों दर्शकों ने देखा।
इस शुक्रवार भोपाल में सेज यूनिवर्सिटी के 1000 फर्स्ट-ईयर इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स को सम्बोधित करते हुए मुझे मनजिंदर की कहानी याद आई। विभिन्न राज्यों के छोटे कस्बों से आए स्टूडेंट्स जानना चाहते थे कि वे अपने सीमित ज्ञान और एक्सपोजर के बावजूद अच्छे मुकाम पर कैसे पहुंच सकते हैं।
मैंने उत्तर दिया- 'मैं कुछ जानने से बुद्धिमान नहीं हो जाता और आप कुछ नहीं जानने से नासमझ नहीं कहला सकते। लेकिन जब आप कुछ जानते हों, उसके भले-बुरे को समझते हों और उसे जीवन या बिजनेस में लागू करने को तैयार हों, तब आप दूसरों से अलग बनते हैं- मनजिंदर की तरह। उनके पास भी सूट, तवा और घी का खर्च बचाने का विकल्प था, लेकिन उन्होंने अपने कस्टमर्स को लुक और टेस्ट में बेस्ट देने का निर्णय लिया।'
फंडा यह है कि याद रखें सबसे खुश लोग वे नहीं हैं, जो ज्यादा पा रहे हैं, बल्कि वे हैं जो ज्यादा दे रहे हैं! इसीलिए वे दूसरों से अलग भी होते हैं, जिससे उन्हें आगे बढ़ने में मदद मिलती है।
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