सम्पादकीय

कानून के हाथ लंबे होने चाहिए

Gulabi Jagat
18 April 2022 1:32 PM GMT
कानून के हाथ लंबे होने चाहिए
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पश्चिमी देशों में सैकड़ों खामियां हैं. उनकी औपनिवेशिक नीतियों ने दुनिया के सैकड़ों देशों और समाजों को तबाह कर दिया
By आशुतोष चतुर्वेदी।
पुरानी कहावत है कि कानून के हाथ लंबे होते हैं, लेकिन अपने देश के संदर्भ में कभी-कभी इस पर संशय होने लगता है. पश्चिमी देशों में सैकड़ों खामियां हैं. उनकी औपनिवेशिक नीतियों ने दुनिया के सैकड़ों देशों और समाजों को तबाह कर दिया. अनेक ऐसे विषय है, जिनको लेकर उनकी कटु आलोचना की जा सकती है, लेकिन नियम-कानून सबके लिए बराबर होता है, यह उनसे सीखा जा सकता है.
अगर कानून का पालन नहीं करेंगे, तो आप भले ही कितने खास हों, आपको कोई रियायत नहीं मिलेगी. कानून के आगे कोई पैरवी काम नहीं करेगी. इसकी तुलना में भारत में किसी कोने में किसी मंत्री अथवा सेलिब्रिटी के बेटे को हाथ लगाकर तो देखिए, किस तरह पूरे तंत्र पर हल्ला बोल दिया जाता है. अपने देश में नेता व अधिकारी-पुत्रों की दबंगई के मामले रोजाना सामने आते हैं.
यह बात छुपी हुई नहीं है कि भारत में प्रशासनिक कामकाज में भारी राजनीतिक हस्तक्षेप होता है. यहां नेता-अभिनेता को तो छोड़िए, उनके सगे संबंधी भी खुद को कानून से ऊपर मानते हैं. अधिकारियों की हिम्मत नहीं होती है कि कोई उनसे नियम-कानून का पालन करने की बात भी कह दे. सैकड़ों में एक मामला सामने आता है, जब कोई अधिकारी ऐसी हिम्मत दिखाता है.
हाल में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और भारतीय मूल के ब्रिटिश वित्त मंत्री ऋषि सुनक पर कोरोना नियमों के उल्लंघन के आरोप में लंदन पुलिस ने जुर्माना लगाया. दोनों नेताओं ने इसे अदा भी किया और माफी भी मांगी. कोरोना काल के दौरान प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने अपने जन्मदिन के मौके पर अपने आधिकारिक निवास में एक पार्टी का आयोजन किया था, जिसमें वित्त मंत्री ऋषि सुनक समेत चुनिंदा लोग शामिल हुए थे.
उस दौरान ब्रिटेन में लॉक डाउन के नियम लागू थे और पार्टियों के आयोजन पर प्रतिबंध था. ब्रिटेन में यह पूरा मामला सुर्खियों में रहा. जॉनसन ने कहा कि उन्होंने जुर्माना भर दिया है और वह माफी भी मांग रहे हैं. वे यह बताना चाहते हैं कि 10, डाउनिंग स्ट्रीट पर जन्मदिन मनाने के दौरान उन्हें नहीं लगा था कि वह किसी नियम का उल्लंघन कर रहे हैं. हालांकि पुलिस को ऐसा लगा और जुर्माना लगाया, तो उन्होंने वह अदा कर दिया है.
विपक्षी दल लेबर पार्टी ने इस मामले को उठाते हुए जॉनसन और सुनक के इस्तीफे की मांग की थी. सुनक ने भी माफी मांगी और जुर्माना भरा. उनका कसूर यह था कि वे भी पार्टी में शामिल हुए थे. सुनक ने कहा कि वे मानते हैं कि सार्वजनिक पदों पर आसीन लोगों के लिए नियमों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए, ताकि जन विश्वास कायम रहे. वे इस फैसले का सम्मान करते हैं.
भारतीय मूल के सुनक ब्रिटेन के महत्वपूर्ण नेता हैं और उन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखा जाता है. ब्रितानी पुलिस ने दोनों नेताओं को फिक्स्ड पेनल्टी नोटिस जारी किया था. इस नोटिस के तहत 28 दिनों के भीतर जुर्माना अदा करना होता है. यदि कोई जुर्माना लगाये जाने का विरोध करता है, तो पुलिस मामले की समीक्षा करती है और तय करती है कि जुर्माना वापस लिया जाए अथवा मामले को अदालत में ले जाया जाए, लेकिन प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री ने जुर्माने को चुनौती देने के बजाय माफी मांगने और जुर्माना अदा करने का विकल्प चुना.
मुझे याद है जब मैं बीबीसी लंदन में कार्यरत था, उस दौरान टोनी ब्लेयर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे. उनका 16 साल का बेटा इम्तिहान खत्म होने की खुशी में एक पब में दोस्तों के साथ पार्टी कर रहा था. इस दौरान उसे कुछ ज्यादा चढ़ गयी और पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया था. ब्लेयर की पत्नी शैरी ब्लेयर को थाने जाकर बेटे को छुड़ाना पड़ा था. टोनी ब्लेयर या फिर किसी अन्य ने उसके बचाव की कोई कोशिश नहीं की, बल्कि प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से एक बयान जारी कर इस घटना पर खेद प्रकट किया गया.
कोरोना काल की एक और मिसाल हमारे सामने है. ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने दुनिया के नंबर वन टेनिस खिलाड़ी सर्बिया के नोवाक जोकोविच का वीजा रद्द कर दिया था. जोकोविच नौ बार ऑस्ट्रेलियन ओपेन जीत चुके हैं और 10वीं बार इस ट्रॉफी को जीतना चाहते थे. जोकोविच पुरुषों की रैंकिंग में पहले स्थान पर हैं, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने सिर्फ उन्हीं खिलाड़ियों, अधिकारियों और दर्शकों को प्रवेश की अनुमति दी थी, जिन्हें कोरोना के दोनों टीके लग चुके थे.
जोकोविच ने वैक्सीन नहीं लगवायी थी और वे वैक्सीन के घोर विरोधी हैं. ऑस्ट्रेलिया में वैक्सीन को लेकर नियम सख्त हैं. जोकोविच ने मेडिकल परेशानी की हवाला देते हुए कहा कि वे फिलहाल वैक्सीन नहीं लगवा सकते हैं, पर सरकार ने उनकी दलील नहीं मानी. अगर आपको याद हो कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ब्राजील के राष्ट्रपति बोल्सोनारो को दो प्रसिद्ध फुटबॉल क्लबों सैंटोस और ग्रेमियो के बीच मुकाबला देखने की अनुमति नहीं दी गयी थी.
इसे देखने के लिए दिशा निर्देश तय कर दिये थे कि केवल टीका लगवाने वाले अथवा नेगेटिव आरटी पीसीआर परीक्षण वाले लोगों को ही स्टेडियम में मैच देखने की अनुमति मिलेगी. बोल्सोनारो ने कोरोना वायरस टीकों के प्रति संदेह व्यक्त किया था और खुद टीका नहीं लगवाया था, लेकिन वे यह दिलचस्प मुकाबला देखना चाहते थे, उन्हें अनुमति नहीं दी गयी.
कहने का आशय यह है कि संदेश साफ है कि भले ही आप आम हों या खास, लेकिन आप कानून से ऊपर नहीं हैं. भारत में नियम और कानून की अनदेखी जैसे हमारी प्रवृत्ति बन गयी है. मैं पहले भी कहता आया हूं कि उत्तर भारत में यह प्रवृत्ति अधिक है. इसकी एक वजह है कि आजादी के 75 वर्षों के दौरान अधिकांश समय सत्ता उत्तर भारतीयों के हाथों रही है. लोगों की सत्ता प्रतिष्ठान तक पहुंच बहुत आसान रही है. इसी वजह से नियम-कानूनों को तोड़ने का चलन बढ़ता गया है.
यही वजह है कि भारतीय व्यवस्था की शुचिता पर खतरा गहराता जा रहा है. आप गौर करें कि रेड लाइन उल्लंघन में फाइन देने के बजाय लोग पैरवी लगा कर छूटने की कोशिश करते हैं. हम लोग लाइन में खड़े होने को शान के खिलाफ मानते हैं. पिछले साल शादियों में शामिल होने की संख्या को लेकर राज्य सरकारों ने अनेक नियम बनाये थे, लेकिन लगातार उनकी अनदेखी की गयी. विवाह समारोहों की भीड़ ने कोरोना फैलाने में बड़ी भूमिका निभायी थी. हमें यह समझ लेना चाहिए कि नियम-कानूनों की अवहेलना की प्रवृत्ति सारी व्यवस्था को संकट में डाल सकती है.
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