सम्पादकीय

सुधारों के विरोध की आदत, खुद के गिरेबां में झांके कांग्रेस

Gulabi Jagat
20 Jun 2022 5:21 PM GMT
सुधारों के विरोध की आदत, खुद के गिरेबां में झांके कांग्रेस
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सम्पादकीय
अग्निपथ योजना का उल्लेख किए बिना प्रधानमंत्री ने यह जो कहा कि भले ही प्रथमदृष्टया कुछ सुधार गलत लगें, लेकिन आगे चल कर वे सही सिद्ध होते हैं, उस पर अन्य विपक्षी दलों न सही, कांग्रेस को तो गंभीरता से ध्यान देना ही चाहिए। इसलिए देना चाहिए, क्योंकि उसने देश पर लंबे समय तक शासन किया है और इस अवधि में कई ऐसे फैसले लिए हैं, जो पहले तो लोगों को अप्रिय लगे, लेकिन बाद में उनसे उनका भला हुआ। यह देखना दयनीय है कि कांग्रेस विरोध के लिए विरोध वाली राजनीति पर इतना अधिक आगे बढ़ गई है कि उन क्षेत्रीय दलों को भी मात करती दिख रही है, जो बड़े सुधारों एवं राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर संकुचित दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं और यह मानकर चलते हैं कि सब कुछ सरकार को ही करना चाहिए।
कम से कम कांग्रेस को तो यह अच्छे से पता होना ही चाहिए कि यह वही समाजवादी सोच है, जिसने कई देशों का बेड़ा गर्क किया। यदि नरसिंह राव सरकार के समय इस समाजवादी सोच का परित्याग नहीं किया गया होता तो देश का कितना बुरा हाल होता, इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं। कांग्रेस किस तरह देशहित की अनदेखी कर अंध विरोध की राजनीति कर रही है, इसे प्रियंका गांधी के उस बयान से समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने अग्निपथ योजना का विरोध करने वालों को उकसाते हुए कहा कि इस सरकार को खत्म कीजिए- गिराइए।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने कुछ ऐसा ही घोर नकारात्मक रवैया नागरिकता संशोधन कानून को लेकर भी अपनाया था और कृषि कानूनों को लेकर भी। इन कानूनों का विरोध करने के क्रम में उसने उन तत्वों का समर्थन भी किया, जो अराजकता का सहारा ले रहे थे। वास्तव में विपक्ष की इसी गैर जिम्मेदाराना राजनीति के कारण कथित किसान आंदोलन करीब एक साल तक आम लोगों की नाक में दम किए रहा। यह अच्छा हुआ कि सरकार ने सेना के माध्यम से यह स्पष्ट संदेश देने में कोई संकोच नहीं किया कि अग्निपथ योजना वापस नहीं होगी।
जब सुधारवादी फैसलों के विरोध के नाम पर अराजकता का सहारा लिया जाने लगे, तब फिर शासन-प्रशासन को ऐसी ही दृढ़ता दिखानी चाहिए। इससे ही अराजक तत्वों और उन्हें सहयोग-समर्थन देने वालों के हौसले पस्त होते हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि अग्निपथ योजना के विरोध में बुलाया गया भारत बंद चंद स्थानों को छोड़कर बेअसर ही रहा। इसका अर्थ है कि आम जनता समझ रही है कि यह योजना वैसी नहीं, जैसी विपक्षी दल छल-छद्म का सहारा लेकर बताने में लगे हुए हैं। यदि विपक्ष अपनी विश्वसनीयता बनाए रखना चाहता है तो उसे सुधारों के अंध विरोध की अपनी आदत छोड़नी होगी।

दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
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