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राजनीति चुनाव जीतने की गारंटी नहीं
देश में इस वक्त राजनीतिक माहौल बहुत ज्यादा गर्म है. हर जगह उठापटक की सियासत चल रही है. कहीं मुख्यमंत्री बदले जा रहे हैं, तो कहीं मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए चुनाव हो रहा है. तमाम सियासी गणित सेट किए जा रहे हैं. ताकि 2022 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर फिर विराजमान हुआ जाए. लेकिन इन सबके बीच जो मूल सवाल है, वह यह है कि क्या इन राज्यों की मौजूदा सरकारों ने अपने यहां इतना बेहतर काम किया है कि उन्हें जनता दोबारा मौका देगी? अब बेहतर काम का आकलन कैसे हो, तो इसका आकलन आज हम प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद के आंकड़ों के अनुसार देखेंगे. और समझेंगे कि आखिर बीते 5 वर्षों में इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपने राज्य के प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद में कितनी बढ़ोतरी की है और कितना काम अपने सूबे में किया है.
सबसे पहले बात पंजाब की कर लेते हैं. पंजाब में इन दिनों खूब सियासी धमाचौकड़ी मची है. नवजोत सिंह सिद्धू, कैप्टन अमरिंदर सिंह और कांग्रेस पार्टी के बीच ऐसी सियासी हलचल हुई कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपने पद से इस्तीफा तक देना पड़ा. और उनकी जगह मुख्यमंत्री बन गए चरणजीत सिंह चन्नी, जो पंजाब के सिख दलित समाज से आते हैं. सवाल उठता है कि अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह ही पंजाब के मुख्यमंत्री होते तो वह जनता से क्या कह कर वोट मांगते. बीते लगभग 4 वर्षों में उन्होंने पंजाब में कितना काम किया है. अगर हम प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद के मामले में पंजाब के आंकड़े को देखें तो राज्य के एक औसत निवासी की बीते 4 वर्षों में राज्य आउटपुट में हिस्सेदारी सिर्फ 3.8 फ़ीसदी ही बढ़ी है. इसी तरह सालाना वृद्धि 1 फ़ीसदी से भी कम रही. चलिए मान लेते हैं कि बीते 2 वर्षों से देश कोरोनावायरस से जूझ रहा है और इससे भारत के प्रदर्शन पर भी फर्क पड़ा है. लेकिन क्या यह फर्क कुछ ही राज्यों पर पड़ा है. क्योंकि कुछ राज्यों ने महामारी के दौरान भी बेहतर प्रदर्शन किया है.
पश्चिम बंगाल ने किया है बेहतर प्रदर्शन
आंकड़ों पर नजर डालें तो ममता बनर्जी की अगुवाई वाली टीएमसी सरकार ने पश्चिम बंगाल में अच्छा काम किया है. प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद के मामले में पश्चिम बंगाल ने अप्रैल 2017 से मार्च 2021 तक की अवधि में 19.1 फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज की है. जबकि वहीं अगर हम इसकी तुलना देश के सबसे बड़े राजनीतिक सूबे उत्तर प्रदेश से करें तो आंकड़ों के बीच बहुत लंबा गैप दिखाई देता है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जो हमेशा उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश कहते हैं और अपनी सरकार में किए गए विकास कार्यों की खूब प्रशंसा करते हैं, वहां पिछले 4 वर्षों में प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद में सिर्फ 0.4 फ़ीसदी की ही बढ़ोतरी हुई है. हां यह जरूर कहा जा सकता है कि राज्य में शौचालयों और एक्सप्रेस-वे के निर्माण में थोड़ी तेजी आई है और इन सेक्टर्स में बेहतर काम हुआ है. उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार हुआ है.
दक्षिण के राज्यों ने कमाल की वृद्धि दर्ज की है
भारत के उत्तर के राज्यों के मुकाबले अगर दक्षिण के राज्यों के आंकड़ों पर नजर डालें तो उनके प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद में वृद्धि अच्छी खासी संख्या में दिखाई देती है. तेलंगाना का प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद बीते 4 वर्षों में 26.2 फ़ीसदी की दर से बढ़ी है. वहीं तमिलनाडु ने भी 22.2 फ़ीसदी की दर से बढ़ोतरी हासिल की है. बाकी के तीन अन्य राज्यों में भी प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद में औसतन 15 फ़ीसदी की दर से बढ़ोतरी हुई है. महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों की भी हालत बेहतर हुई है. महाराष्ट्र में जहां प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद में 14.1 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है. वहीं गुजरात में यह बढ़ोतरी 26.7 फीसदी दर्ज की गई है.
देश के पूर्वी राज्यों ने भी ठीक-ठाक प्रदर्शन किया. पश्चिम बंगाल में प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद में जहां 19.1 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है. वहीं बिहार में भी 21.8 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है. उड़ीसा में भी प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद में 16.7 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की है. लेकिन हिंदुस्तान के सेंटर स्टेट्स के प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद के आंकड़े निराशाजनक रहे. यहां जहां बीते 4 वर्षों में यूपी में केवल 0.4 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई, वहीं राजस्थान में मात्र 1.3 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई. बाकी के अन्य राज्यों की भी स्थिति 10 फीसदी के आसपास ही रही.
क्या इन प्रदर्शनों से चुनाव पर असर पड़ता है?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इन प्रदर्शनों से चुनावों पर भी असर पड़ता है. उत्तर है बिल्कुल नहीं. क्योंकि जहां पंजाब और उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद में बेहद कम बढ़ोतरी हुई है, वहां चुनावी पंडितों का मानना है कि मौजूदा सरकार फिर से सत्ता में वापस आएंगी. जबकि तमिलनाडु की पूर्व की एआईडीएमके सरकार ने प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद में अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में एआईडीएमके सत्ता से बाहर हो गई और डीएमके सत्ता में आ गई. दरअसल राज्य में जब भी चुनाव होता है तो इन आंकड़ों पर ना राजनीतिक पार्टियां चुनाव लड़ती हैं ना जनता वोट देती है. वह सिर्फ उन्हीं मुद्दों को वोट देने के लिए चुनती है जो कहीं ना कहीं उसकी भावना से जुड़े होते हैं या फिर सीधे तौर पर उसे प्रभावित करते हैं. जातिवाद और धर्म वाद से जब तक जनता ऊपर नहीं उठती तब तक इन आंकड़ों का चुनावों में कोई असर नहीं दिखेगा.
पहले भी ऐसा होता रहा है
देश पर सबसे अधिक समय तक राज करने का श्रेय कांग्रेस को जाता है. उल्लेखनीय है कि देश की विकास दर इतनी कम थी कि इसको हिंदू विकास दर से संबोधित किया गया. पूरी दुनिया में विशेषकर मध्य एशिया, दक्षिण एशिया और चीन जब विकास की रणभेरी रहे थे तो भारत सुषुप्ता अवस्था में था पर सरकार हमेशा कांग्रेस की ही बनती थी. आपको याद होगा कि आंध्रप्रदेश में साइबरा बाद की स्थापना कर के देश में आईटी सेक्टर में लीड लेने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को भी जनता ने नकार दिया था.
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