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- भुखमरी की बढ़ती

उद्भव शांडिल्य: वर्तमान परिदृश्य में भारत अपनी पूरी जनसंख्या को अनाज उपलब्ध कराने में सक्षम है, पर समस्या की जड़ है अक्षम आपूर्ति चक्र, अवैज्ञानिक अनाज भंडारण, किसानों को बिचौलियों से बचा कर उनकी फसल का समुचित मूल्य प्रदान न करा पाना और अनाज की बर्बादी को न रोक पाना। आंकड़े बताते हैं कि भारत में पैदा होने वाले अनाज का पांचवां हिस्सा बर्बाद हो जाता है।
कोरोना महामारी के पहले ही शुरू हो गई भुखमरी की समस्या ने अब और चिंताजनक रूप ले लिया है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक 2019 तक पूरे विश्व में भुखमरी से जूझ रहे लोगों की तादाद लगभग 85.4 करोड़ थी। कोविड के कारण इस संख्या में और दस करोड़ की वृद्धि होने का अनुमान है। इसका कारण कोरोना के दिनों में वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी, लोगों का अपनी नौकरी और रोजगार से हाथ धो बैठना आदि है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक वैश्विक स्तर पर भुखमरी और इससे संबंधित होने वाली बीमारियों के कारण प्रतिदिन पच्चीस हजार लोगों की मृत्यु होती है, जिसमें बच्चों की संख्या दस हजार से ज्यादा है।
यह समस्या भारत में और ज्यादा गहरी जड़ें जमाई हुई है। खाद्य एवं कृषि संगठन का मूल्यांकन बताता है कि पूरे विश्व में भुखमरी और इससे संबंधित बीमारियों से पीड़ित देशों की सूची में भारत शीर्ष स्थान पर है। यहां 18.92 करोड़ लोग यानी कुल जनसंख्या का चौदह फीसद भाग भुखमरी से जूझ रहा है। आंकड़े इसलिए और भयावह हैं कि इसमें 51.4 फीसद प्रजनन योग्य महिलाएं (15-49 साल) खून की कमी से पीड़ित हैं, पांच साल से कम उम्र के 34.6 फीसद बच्चे कुपोषण का शिकार हैं तथा चौदह फीसद ऐसे हैं, जिनका वजन अपनी उम्र के अनुकूल नहीं है।
'चाइल्ड स्टंटिंग', बाल मृत्यु-दर, अल्पपोषण तथा 'चाइल्ड वेस्टिंग' को आधार बनाकर आयरलैंड की एजेंसी कंसर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी का संगठन वेल्ट हंगर हिल्फ द्वारा जारी किए जाने वाले 'वैश्विक भुखमरी सूचकांक' के 2021 के आंकड़े में एक सौ सोलह देशों की सूची में भारत 27.2 अंकों के साथ एक सौ एकवें स्थान पर है, जो कि गंभीर श्रेणी है। 2020 में भारत एक सौ सात देशों की सूची में चौरानबेवें स्थान पर था। इस सूचकांक में हमसे बेहतर हमारे पड़ोसी देश- नेपाल, बंग्लादेश और पाकिस्तान हैं। यह आंकड़ा भुखमरी से निजात पाने संबंधी हमारी सुस्त नीतियों का परिचायक है।
भारत में भुखमरी की समस्या का एक मुख्य कारण यह भी है कि यहां विकसित देशों की तुलना में प्रति हेक्टेयर फसल उत्पादन कम है। एक तरफ जहां अमेरिका, जापान और ब्राजील जैसे देशों में प्रति हेक्टेयर धान, गेहूं का उत्पादन 3,500 किलो से ज्यादा है, वहीं भारत में बमुश्किल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 2000 किलो तक हो पाता है। हरित क्रांति के पश्चात चकबंदी और भूमि संबंधी सुधारों के बाद भारत में अनाज उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि हुई, तो वहीं दूसरी तरफ जनसंख्या में भी अनपेक्षित वृद्धि हुई है, जो आज से कुछ ही सालों के बाद भविष्य में भोजनापूर्ति के संदर्भ में साधारण जनमानस तथा सरकारी तंत्र के लिए चुनौती बनता दिखाई पड़ रहा है।
भारत में हरित क्रांति का प्रभाव सीमित क्षेत्रों- मसलन, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों में रहा। समकालीन परिदृश्य में भले इस क्रांति ने हमें अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बना दिया हो, पर लंबी अवधि के संदर्भ में यह क्रांति हर मायने में घातक ही रही है। भले हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई, लेकिन कीटनाशकों और रसायनिक खाद के अंधाधुंध प्रयोग ने यहां सबसे ज्यादा कैंसर के मरीजों को भी जन्म दिया है।
वर्तमान परिदृश्य में भारत अपनी पूरी जनसंख्या को अनाज उपलब्ध कराने में सक्षम है, पर समस्या की जड़ है अक्षम आपूर्ति चक्र, अवैज्ञानिक अनाज भंडारण, किसानों को बिचौलियों से बचा कर उनकी फसल का समुचित मूल्य प्रदान न करा पाना और अनाज की बर्बादी को न रोक पाना। आंकड़े बताते हैं कि भारत में पैदा होने वाले अनाज का पांचवां हिस्सा बर्बाद हो जाता है। प्रति वर्ष 6.7-7 करोड़ टन फसल की बर्बादी होती है, जिसका राजस्व लगभग पंचानबे हजार करोड़ है। 2019-20 में सरकार ने 7.517 करोड़ टन अनाज की खरीदारी की, जिसमें से 1930 टन अनाज बर्बाद हो गया। उपभोक्ता मामले विभाग के आंकड़ों के अनुसार भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में सिर्फ बंदी के कारण डेढ़ हजार टन से अधिक फसलों की बर्बादी हुई।
हमें अनाज उत्पादन से ज्यादा अनाज क्रय-विक्रय अनाज भंडारण तथा अनाज वितरण पर ध्यान देने की जरूरत है। कई कार्यक्रमों, जैसे प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, मिड डे मील, जन-वितरण प्रणाली, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना तथा आंगनबाड़ी केंद्र भुखमरी से पार पाने में अपना भरपूर सहयोग कर रहे हैं, बस आवश्यकता है इन योजनाओं को और पारदर्शी बनाने की। भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्त्व में कहा गया है कि नागरिकों के पोषाहार स्तर, जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक-स्वास्थ्य को सुधारने का कर्तव्य राज्य का होगा। हमारा भी यह नैतिक कर्तव्य है कि अपनी जीवनशैली को सुधारें, जो हमें भुखमरी जैसी वीभत्स समस्याओं से निजात दिला सकें।
वैश्विक भुखमरी सूचकांक- 2021 के आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि 2030 तक हमारा 'शून्य भुखमरी' के लक्ष्य को प्राप्त करना तो दूर, इस लक्ष्य के आसपास भी नहीं पहुंच सकते। अगर वैश्विक परिदृश्य में देखें तो सामान्यत: पूरा विश्व और खासकर सैंतालीस देश 2030 तक 'शून्य भुखमरी' के लक्ष्य तक पहुंचने में असमर्थ दिखाई पड़ रहे हैं। भुखमरी के प्रमुख कारक के रूप में देशों के बीच संघर्ष, कोविड और जलवायु परिवर्तन को माना जा रहा है। वैश्विक तापमान की बढ़ती तीव्रता, समुद्रों का बढ़ता जलस्तर बाध्य कर रहा है कि हम अपनी कृषि उत्पादन की नीतियों को परिष्कृत करें। कृषि में तकनीक का उपयोग कर बीजों को बदलती जलवायु के अनुरूप बनाना होगा।
आवश्यकता है सतत विकास के सत्रह लक्ष्यों में से दूसरे सबसे महत्त्वपूर्ण लक्ष्य 'शून्य भुखमरी' पर सबसे प्रभावशाली योजनाओं को अंतिम रूप देकर उन्हें समाज के सबसे शुरुआती स्तर से क्रियान्वित करने की। फसलों, फलों और सब्जियों की बर्बादी रोकने के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित 'किसान ट्रेन योजना' अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसके माध्यम से खाद्य आपूर्ति के लक्ष्य को निर्धारित समय में पूरा किया जा सकता है। 'किसान ट्रेन योजना' के पूर्व किसानों को बिचौलियों से बचाने के लिए और फसलों की खरीदारी के लिए आनलाइन प्लेटफार्म की घोषणा अभूतपूर्व है। बस आवश्यकता है इसके प्रचार-प्रसार को तेज करने की, ताकि साधारण से साधारण किसान भी इसका फायदा उठा सकें और खाद्योत्पादन में समर्पित भाव से लगें, जिससे भुखमरी को उखाड़ फेंकने में सहायता मिल सकती है।
भारत में भुखमरी की समस्या को सुलझाने के लिए कुछ गैर-सरकारी संगठन अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। ये संगठन किसी शादी समारोह या कारपोरेट आफिस में किसी आयोजन के दिन बचे खाने को लेकर जरूरतमंदों तक पहुंचाते हैं। तमिलनाडु में 'अम्मा किचन' की तर्ज पर पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा पांच रुपए में 'मां की रसोई' योजना के अंतर्गत भरपेट भोजन उपलब्ध करवाना, एक स्वागत योग्य कदम है। इस क्षेत्र में राजस्थान सरकार द्वारा 'इंदिरा रसोई योजना' जिसमें आठ रुपए में भरपेट भोजन तथा केंद्र सरकार द्वारा 'प्रधानमंत्री अन्नपूर्णा अक्षयपात्र योजना' के तहत दस रुपए में भोजन भी प्रशंसनीय प्रयास हैं।
भारतीय संसद द्वारा 2013 में पारित 'राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम' का उद्देश्य लोगों को वहनीय मूल्यों पर गुणवत्ता वाले खाद्यान्न की उपलब्धता तथा पौषणिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है। भुखमरी से बचाव और खाद्य सुरक्षा की निष्पत्ति के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण गैर-सरकारी संस्थाएं अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं। देश के स्तर पर भुखमरी को दूर भगाने के लिए हम सभी को मिलकर एकीकृत योजनाओं को जमीनी स्तर पर उतार कर लड़ाई लड़नी होगी, तभी हम सफल हो सकते हैं।