- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस...

x
सुविधाएं एआइ द्वारा संभव हो रही हैं.
संपूर्ण विश्व आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) यानी कृत्रिम बुद्धि के बढ़ते विस्तार से अभिभूत और चमत्कृत है. हमारे जीवन का कोई ऐसा पहलू नहीं है, जो धीरे-धीरे एआइ से प्रभावित न होता जा रहा हो. गूगल पर रास्ते की खोज से लेकर फोन पर चेहरे की पहचान, ड्रोन द्वारा दवाएं पहाड़ी क्षेत्रों से मैदान तक ले जाने से लेकर अपराधियों की पहचान और पकड़, सागर क्षेत्र में शत्रुओं की आवाजाही पर नजर से लेकर दुर्गम क्षेत्रों में उन पर प्रहार, करोड़ों विद्यार्थियों के लिए परीक्षा केंद्र उनके घर तक मोबाइल एप या डीटीएच टेलीविजन कार्यक्रमों द्वारा पहुंचने जैसी सुविधाएं एआइ द्वारा संभव हो रही हैं.
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिक्षा विभाग की एक महत्वपूर्ण बैठक में थे, जहां आइआइटी कानपुर के निदेशक डॉ अभय करंदीकर ने एआइ द्वारा विभिन्न परीक्षाओं में बैठने वाले विद्यार्थियों के संबंध में बताया कि किस प्रकार भारतीय भाषाओं में नीट या जी की परीक्षाओं में बहुत कम छात्र बैठ रहे हैं- यदि अंग्रेजी में परीक्षा देने वाले 80-90 प्रतिशत होते हैं, तो हिंदी में 10-14 प्रतिशत और शेष 12 भारतीय भाषाओं में मात्र तीन प्रतिशत.
यदि अंग्रेजी और हिंदी के अलावा बांग्ला, तमिल, तेलुगु भाषाओं में भी विद्यार्थियों को उच्च ज्ञानसंपन्न क्षेत्रों में आने की सुविधा मिल जाये, तो एक शिक्षा क्रांति की शुरुआत हो सकती है. स्वतंत्रता से लेकर अभी तक ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अंग्रेजी का ताला बड़ी संख्या में भारतीय भाषा जानने वाले प्रतिभाशाली युवाओं की प्रगति के मार्ग में बाधा बना हुआ है. प्रधानमंत्री मोदी ने तुरंत इस विचार को पकड़ा और आइआइटी कानपुर को इस कार्य में आगे बढ़ने का निर्देश दिया.
यह एक परिवर्तनकारी कदम होगा कि वे छात्र जो अभी तक अंग्रेजी ज्ञान से दूर होने के कारण ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का उपयोग नहीं कर पा रहे थे, एआइ की सहायता से घर बैठे अपना योगदान अपनी भाषा में कर परीक्षाएं दे सकेंगे. यह भारतीय मानस पर से उपनिवेशवादी शिकंजे को भी दूर करेगा.
एआइ संसार के सभी नये आविष्कारों में एक प्रमुख स्थान ले चुका है, जो मानवेतर बुद्धि के माध्यम से मानव के समस्त गतिविधियों को प्रभावित करने में समर्थ है. यह इतना विराट और विस्तृत है कि इसके मानवीय, दैवी और राक्षसी प्रभावों की कल्पना भी दहलाने वाली है. क्या मनुष्य के जीवन को मनुष्य के नियंत्रण से पृथक कर देना हितकारी हो सकता है?
क्या हम अपने समस्त क्रियाकलापों को ऐसी शक्ति के हवाले कर सकते हैं, जिसमें मानवीय संवेदना न हो, जिसके भीतर डाटा और यंत्रीकृत निर्णय लेने की क्षमता तो हो, लेकिन उसमें कोई हृदय न हो? क्या बिना दया ममता क्षमा और करुणा से युक्त एआइ बुद्धिसंपन्न अत्यंत मेधावी और तीक्ष्ण विवेचन क्षमता के रोबोटों को मनुष्य जाति के वर्तमान और भविष्य को प्रभावित ही नहीं, बल्कि नियंत्रित करने की अनुमति दे सकते हैं?
कल्पना करिए, जब डॉक्टर रोबोट होंगे, न्यायाधीश रोबोट द्वारा संचालित होंगे, जो एक दिन में एक लाख मुकदमें निबटा सकेंगे, या अपराधियों की सुनवाई एआइ द्वारा संचालित ऐसी व्यवस्था करेगी, जिसमें दंड हेतु विधान की जानकारी होगी, लेकिन परिस्थिति और मानवीय पहलुओं को विचार में लेने की कोई क्षमता नहीं होगी, तो क्या एआइ के निर्णय सही होंगे? राजनीति और संसदीय व्यवस्था भी एआइ द्वारा प्रभावित होने वाली है.
हमारे नेताओं के पास जो जानकारियां आयेंगी, उनमें करोड़ों ऐसे डाटा भी आने लगे हैं, जिनकी विवेचना एआइ द्वारा अधिक त्वरा और विशेषज्ञता के साथ की गयी होगी, लेकिन उनमें मनुष्य की स्वाभाविक बुद्धि का कोई हाथ नहीं होगा. क्या वह जानकारी अधिक विश्वसनीय एवं हमारे निर्णयों हेतु उपयोगी मानी जायेगी?
उदाहरण के लिए गूगल द्वारा एआइ के उपयोग द्वारा विभिन्न भाषाओं के अनुवाद की जो त्वरित व्यवस्था की गयी है, उसमें बहुत बार हास्यास्पद एवं गलत अनुवाद मिलते हैं. हाल में अमरीकी उद्योगपति और टेस्ला के मालिक इलोन मस्क ने एक पत्र द्वारा इन आशंकाओं को व्यक्त करते हुए विश्व्यापी बहस को आमंत्रित किया है. प्रधानमंत्री मोदी ने भी एक 'उत्तरदायी एआइ' की बात की है. वैज्ञानिक खोजों और विज्ञान के जन-जीवन पर प्रभाव के अनंत उपयोगों के संदर्भ में भी यही बात की जाती रही है.
विज्ञान ने जीवनरक्षक दवाएं भी दी है, तो परमाणु बम भी दिये है. यह दुधारी तलवार है. भारत आज एआइ के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ रहा है, सीबीएसई ने आठवीं कक्षा के अपने पाठ्यक्रम में एआइ को डाल दिया है, अर्थात अब देश भर में करोड़ों छात्र विद्यालय के स्तर से एआइ के क्षेत्र में ज्ञान लेना प्रारंभ कर रहे हैं. देश भर के शैक्षिक संस्थानों में एआइ प्रयोगशालाएं स्थापित हो रही हैं. जैसे गुफा युग से मनुष्य पहिये के युग में आते ही बदलने लगा और नवीन आविष्कारों की शृंखला ने मनुष्य जाति को ही बदल दिया, उसी प्रकार एआइ हमें बदलने जा रहा है. इससे बचना संभव नहीं है, लेकिन इसके राक्षसी प्रभावों को नियंत्रित करने हेतु अभी से सोचना बेहद जरूरी है.
SORCE: prabhatkhabar
Tagsआर्टिफिशियल इंटेलिजेंसबढ़ता प्रभावक्षेत्रArtificial intelligenceincreasing sphere of influenceदिन की बड़ी ख़बरजनता से रिश्ता खबरदेशभर की बड़ी खबरताज़ा समाचारआज की बड़ी खबरआज की महत्वपूर्ण खबरहिंदी खबरजनता से रिश्ताबड़ी खबरदेश-दुनिया की खबरराज्यवार खबरहिंदी समाचारआज का समाचारबड़ा समाचारनया समाचारदैनिक समाचारब्रेकिंग न्यूजBig news of the dayrelationship with the publicbig news across the countrylatest newstoday

Triveni
Next Story