सम्पादकीय

एक नई मुद्रा की बढ़ती घुसपैठ

Rani Sahu
21 Nov 2021 6:42 PM GMT
एक नई मुद्रा की बढ़ती घुसपैठ
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पिछले दिनों हुए ट्वंटी-20 विश्व कप में भारत बहुत शुरुआती मैचों में ही हार गया था

हरजिंदर पिछले दिनों हुए ट्वंटी-20 विश्व कप में भारत बहुत शुरुआती मैचों में ही हार गया था। यह विश्व कप किसने जीता? अगर आप ऑस्ट्रेलिया का नाम लेते हैं, तो तथ्यात्मक दृष्टि से आप सही हैं, लेकिन इस विश्व कप का एक दूसरा सच भी है। अगर आप उन मैचों के प्रसारण को फिर से देखें, तो अच्छे खेल से भी ज्यादा जो चीज वहां आपको दिखाई देगी, वह है क्रिप्टोकरेंसी। विश्व कप वह पहला मौका था, जब इस डिजिटल मुद्रा के विज्ञापनों की अचानक ही बरसात हो गई थी। क्रिकेट में दिलचस्पी रखने वाली पीढ़ी को डिजिटल करेंसी के फेरे में लेने की इतनी बड़ी कोशिश पहले कभी नहीं हुई।

और अब गौर से देखें, तो लगता है कि भारतीय टीम इस टूर्नामेंट में भले ही हार गई हो, लेकिन क्रिप्टोकरेंसी जीतती दिख रही है। पिछले कुछ दिनों में देश के नीति-नियामक इसमें सिर खपा रहे हैं कि इस डिजिटल करेंसी का किया क्या जाए? रिजर्व बैंक पहले ही चेतावनी दे चुका है कि अगर इसे मुल्क से बेदखल नहीं किया गया, तो अर्थव्यवस्था चौपट हो सकती है। इस महीने की शुरुआत में इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एक उच्च-स्तरीय बैठक भी हुई थी। रिजर्व बैंक की सारी आपत्तियां वहां भी मेज पर थीं, पर एक विचार यह भी था कि तमाम खामियों के बावजूद यह एक नई तकनीक है, जिसे सिरे से खारिज करना महंगा भी पड़ सकता है।
वैसे यह दुविधा भारत की ही नहीं, दुनिया के तकरीबन सभी देशों की है। कोई भी देश ऐसी किसी मुद्रा को हरी झंडी नहीं दिखाना चाहता, जिस पर उसका कोई नियंत्रण ही न हो। मुद्रा सरकार के लिए अर्थव्यवस्था पर लगाम कसने का एक जरिया भी होती है। इसके जरिये कभी महंगाई पर लगाम लगाने की कोशिश की जाती है, तो कभी विकास दर को नई दिशा देने की कोशिश। और फिर प्रधानमंत्री अगर चाहें, तो वह किसी भी शाम पुराने कुछ नोटों को बंद करके नए नोट जारी करने की घोषणा भी कर सकते हैं।
समस्या सिर्फ इतनी नहीं है। क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल नशीले पदार्थों की तस्करी और ऑनलाइन फिरौती वसूलने जैसे तमाम गैर-कानूनी कामों के लिए होने लगा है। या शायद इन्हीं के लिए सबसे ज्यादा होता है। इन समस्याओं को भी देश की सरकार अच्छी तरह समझती है, और शायद इसीलिए प्रधानमंत्री को कहना पड़ा है कि दुनिया को यह सुनिश्चित करना होगा कि क्रिप्टोकरेंसी गलत हाथों में न पड़ जाए। लेकिन गलत हाथों में तो वह पड़ चुकी है।
रिजर्व बैंक के बयान के बाद क्रिप्टोकरेंसी के कारोबार में लगी कंपनियों को यह डर सता रहा है कि कहीं इस कारोबार पर फिर से पाबंदी न लग जाए। भारत एक बार ऐसी पाबंदी लगा भी चुका है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे हटा दिया था। इसलिए ये सारी कंपनियां अब तेजी लॉबिंग करने में जुटी हैं। इस लॉबिंग के तर्क इस तरह से तैयार किए गए हैं कि क्रिप्टोकरेंसी रिजर्व बैंक के अधिकार क्षेत्र में बाधा बनती न दिखाई दे।
ये कंपनियां जानती हैं कि क्रिप्टोकरेंसी को किसी भी तरह से विनिमय की मुद्रा के रूप में भारत में स्वीकार नहीं किया जाएगा। इसलिए कहा जा रहा है कि क्रिप्टोकरेंसी को संपत्ति की रूप में जमा करने की इजाजत लोगों को दी जाए। ठीक वैसे ही, जैसे लोग सोने-चांदी में निवेश करके अपने पास रखते हैं। यह खबर भी समय-समय पर दिखाई दे जाती है कि सरकार क्रिप्टोकरेंसी को संपत्ति के रूप में मान्यता देने के लिए तैयार है। बेशक, इसके भी खतरे हैं। एक बार अगर क्रिप्टोकरेंसी ने अपनी जड़ें जमा लीं, तो वह आगे बढ़ने के अवसर तलाश करने लगेगी। शायद यही आशंका है, जो सरकार के कदम रोक रही है।
जहां तक डिजिटल करेंसी की नई तकनीक का मामला है, केंद्र सरकार ने इसके लिए अगस्त में ई-रूपी जारी किया था। यह काफी कुछ वैसे ही है, जैसे चीन ने ई-युआन जारी किया था। लेकिन दोनों में एक फर्क है। चीन ने ई-युआन जारी करने के साथ ही क्रिप्टोकरेंसी पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है। भारत ने पाबंदी तो नहीं लगाई, लेकिन ई-रूपी जरूर जारी कर दिया। एक दूसरा फर्क यह भी है कि ई-युआन का लेन-देन शुरू हो गया है, ई-रूपी के बारे में अभी ऐसी खबर नहीं है।
उधर भारत में क्रिप्टोकरेंसी लगातार अपने पांव पसार रही है। डिजिटल करेंसी का अध्ययन करने वाली एक संस्था के अनुसार, अप्रैल 2020 में भारतीयों ने इसमें 92 करोड़ डॉलर का निवेश किया था, जो इस साल मई में बढ़कर 6.6 अरब डॉलर तक पहंुच गया है। इसी के साथ क्रिप्टोकरेंसी से जुड़ी बुराइयों ने कितने पांव पसारे होंगे, इसे हम नहीं जानते, लेकिन यह मानने का कोई कारण नहीं है कि इसकी अंगुली पकड़कर वे नहीं आई होंगी। यह बाजार जिस तेजी से फैल रहा है, कई टीवी चैनलों ने इस पर कार्यक्रम भी पेश करने शुरू कर दिए हैं। ऐसे कार्यक्रमों के लिए प्रायोजक भी खूब मिल रहे हैं। जाहिर है, कारोबार भी फैल रहा है, और इसे हर तरह से बढ़ावा देने वाली ताकतें भी सक्रिय हो चुकी हैं।
एक बात तय है कि चीन की तरह भारत सीधे तौर पर पाबंदी नहीं लगा सकता। एक पाबंदी का हश्र हम देख चुके हैं, जो अदालत में ज्यादा टिक ही नहीं सकी। सरकार कुछ नहीं करेगी, यह मानने का भी कोई कारण नहीं है। इसे लेकर उच्च स्तरीय बैठकें की जा रही हैं और बैंकिंग मामलों की संसदीय समिति भी इसे लेकर सक्रिय हुई है। लेकिन डर यह है कि यह पूरी प्रक्रिया जब तक किसी अंजाम पर पहुंचेगी, तब तक क्रिप्टोकरेंसी अपने पांव काफी ज्यादा पसार सकती है। डिजिटल इंस्ट्रूमेंट हमारे परंपरागत तरीकों को किस तरह से फिसड्डी बना देते हैं, इसे हम पहले भी कई बार देख चुके हैं। क्रिप्टोकरेंसी एक और कारण है, जो बताता है कि हमें राजनीति और नियमन के बहुत से लेट-लतीफ तरीके अब बदल देने चाहिए।
क्रिप्टोकरेंसी की समस्या सिर्फ भारत की नहीं है। पूरी दुनिया ही किसी न किसी रूप से इससे जूझ रही है। भारत के लिए जरूरी है कि वह इससे निपटने की अंतरराष्ट्रीय कोशिशों का हिस्सा बने। अच्छी बात यह है कि प्रधानमंत्री ने इसे स्वीकार भी किया है।


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