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- अमीर-गरीब की बढ़ती
आदित्य नारायण चोपड़ा: भारत में 2021 में तीन करोड़ अमेरिकी डालर यानि करीब 226 करोड़ रुपए या इससे अधिक सम्पत्ति वाले अत्यधिक धनी लोगों की संख्या में 11 फीसदी की बढ़ौतरी हुई है। भारत के लोगों का अरबपति या खरबपति होना खुशी की बात है। रियल एस्टेट के बारे में परामर्श देने वाली नाइट फ्रेंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत विश्व स्तर पर अरबपतियों की आबादी में तीसरे स्थान पर है। अमेरिका 748 अरबपतियों के साथ पहले स्थान पर है, जिसके बाद 554 अरबपतियों के साथ चीन का स्थान है। भारत 145 अरबपतियों के साथ तीसरे स्थान पर है। भारत में अधिक नेटवर्थ वाले अमीरों की संख्या 2020 में 12,287 थी जो कि 2021 में बढ़कर 13,637 हो गई। अत्यधिक धनी लाेगों की संख्या में सर्वाधिक वृद्धि बेंगलुरु में देखी गई। वहां इनकी संख्या 17.1 फीसदी बढ़कर 352 हो गई। उसके बाद दिल्ली का नम्बर रहा, जहां 12.4 फीसदी बढ़कर 210 हुई, जबकि मुम्बई में 9 फीसदी बढ़कर 1596 हुई।रिपोर्ट का दूसरा पहलू यह है कि कोरोना काल में मध्यम और निम्न वर्ग के अधिकतर लोगों की आमदनी घटी है। गरीब आदमी और गरीब हो गया। कोरोना महामारी के दौरान 4 करोड़ 60 लाख लोग गरीबी के दायरे में आए और करीब 84 फीसदी भारतीय परिवारों की आय कम हो गई। देश के सबसे अमीर दस फीसदी लोगों के पास देश की 45 फीसदी सम्पत्ति है। अगर गरीबों की बात की जाए तो देश की 50 फीसदी गरीब आबादी के पास सिर्फ 6 फीसदी सम्पत्ति है। अमीर और गरीब में खाई तो हमेशा से रही है लेकिन अगर वर्तमान अंतर को देखा जाए तो हैरानी होती है कि क्या कोरोना से संबंधित वित्तीय परेशानियों ने केवल आम आदमी को ही प्रभावित किया है। महामारी ने देश के अति समृद्ध लोगों को प्रभावित नहीं किया। 1990 के दशक में पैदा हुए 13 स्वःनिर्मित अरबपतियों की सूची में जिस तरह से फार्मा, टैक्नोलोजी और वित्तीय सेवा जैसे क्षेत्रों के लोग भी शामिल हो रहे हैं। भारत में द्विविभाजन उन लोगों में भी है जो गरीबी रेखा के नीचे की सूची में शामिल हो चुके हैं। करीब 21.8 कराेड़ लोग जिनमें अनुमानतः पांच करोड़ लोग शहरी क्षेत्र के हैं, गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिए गए हैं। जिन लोगों की सम्पत्ति बढ़ी, उसके पीछे कई कारण हैं। सर्वे बताता है कि इक्विटी बाजार और डिजिटलाइजेशन इनकी आमदनी बढ़ाने में सहायक रहा है। यही वजह है कि भारत में अल्ट्रा हाई नेटवर्क इंडिविजुअल की तेजी से वृद्धि हुई है। तीन करोड़ डालर यानी 226 करोड़ रुपए या इससे अधिक की सम्पत्ति वाले लोग अल्ट्रा हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल की श्रेणी में आते हैं। रिपोर्ट बताती है कि लगभग 20 फीसदी भारतीय अल्ट्रा नेटवर्थ इंडिविजुअल ने क्रिप्टो और नॉन फंजिबल टोकन या एनएफटी में निवेश किया है। इनमें से क्रिप्टो में पैसे लगाने वाले 11 फीसदी और एनएफटी में पैसे लगाने वाले 8 फीसदी हैं। वर्तमान में धन सृजन के तरीकों में भी बदलाव आया है। अब कमाई और बचत में संघर्ष नहीं रह गया। अमीरों की सूची में कई लोग ऐसे भी हैं जो बड़े निवेशक हैं। तथ्य यह भी है कि कोरोना की पृष्ठभूमि में 2020 के निचले स्तर के बाद बाजारों ने एक शानदार पलटा खाया था, जिसमें अनेक लोगों को काफी फायदा पहुंचा। इसमें कोई संदेह नहीं कि अमीर लोग ही निवेश करके लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं। करों का भुगतान करते हैं, सामाजिक दायित्व निभाते हुए समाज की मदद भी करते हैं। छोटे निवेशक जो हाल ही में उभरे हैं और कई स्टार्ट-अप संस्थापक छोटी मोटी नौकरियां पेश कर रहे हैं जो एक सकारात्मक परिणाम है। दुनिया के अति समृद्ध लोगों ने स्वयं कोरोना काल में काफी जिम्मेदारियों का निर्वाह किया है। उन्होंने अपने संसाधनों को भविष्य में कोविड जैसी स्वास्थ्य समस्या से निपटने के लिए खर्च करने का ऐलान किया है।संपादकीय :रूस के ऊपर थोपा हुआ युद्धसस्ती हो मेडिकल शिक्षासत्यम् शिवम् सुन्दरम्उत्तर प्रदेश में कम मतदाननाटो की जरूरत क्यों है ?मणिपुर चुनाव का राजनीतिक परिदृश्य18 जनवरी को वर्ल्ड इकोनामिक फोरम के पहले दिन आक्सफैम इंडिया की तरफ से वार्षिक असमानता सर्वे रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी। इस रिपोर्ट में अमीर-गरीब के अंतर को इस तरह समझाया गया था।-अगर भारत के टॉप दस फीसदी अमीर लोगों पर एक प्रतिशत अतिरिक्त टैक्स लगाया जाए तो उस पैसे से देश को करीब 18 लाख अतिरिक्त आक्सीजन सिलैंडर मिल सकते हैं। इसके अलावा 98 अमीर परिवारों पर एक प्रतिशत कर लगाया जाए तो उस पैसे से आयुष्मान भारत कार्यक्रम को अगले 7 वर्षों तक चलाया जा सकता है। अगर टॉप-10 परिवार रोजाना एक मिलियन डालर यानी 7 करोड़ 40 लाख भी खर्च करें तो भी उनकी दौलत खर्च होने में 84 साल लग जाएंगे। अमीर-गरीब की खाई को पाटना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। स्थिति को सम्भालने के लिए बड़े पैमाने पर सरकार के दखल की जरूरत है। असमानता की वजह से असंतोष बढ़ता है। सरकार को ऐसी नीतियां और कार्यक्रम अपनाने होंगे जिसमें गरीबों को ज्यादा फायदा मिले। भारत में समृद्ध लोग अगर एक फीसदी भी खर्च करेंगे तो लोगों का कल्याण हो सकता है। अन्यथा अमीर-गरीब की खाई पाटने में बरसों लग जाएंगे।