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एक व्यक्ति ब्याज पर धन उधार नहीं देता गोया कि वह महाजन नहीं है
जयप्रकाश चौकसे। एक व्यक्ति ब्याज पर धन उधार नहीं देता गोया कि वह महाजन नहीं है। वह सोने का व्यापार भी नहीं करता। गौरतलब है कि उस व्यक्ति ने महामारी के समय साधनहीन लोगों को आश्रय, भोजन-पानी दिया। बीमारों को अस्पताल में भर्ती करवा कर इलाज करवाया। प्राय: आशा की जाती है कि व्यवस्था ऐसे व्यक्ति को सम्मान देगी या कम से कम अनुशंसा पत्र जारी करेगी। लेकिन यथार्थ यह है कि अभी वे जांच के दायरे में हैं।
दरअसल, वे अभिनेता हैं और उन्होंने प्राय: दक्षिण भाषा में बनी फिल्मों में खलनायक की भूमिकाएं अभिनीत की हैं। उनकी अपनी जीवनशैली है। सोनू सूद ने अंतरराष्ट्रीय अभिनेता जैकी चैन के साथ 'कुंग फू और योगा' नामक फिल्म अभिनीत की है। फिल्म 'एक विवाह ऐसा भी' व 'सिंबा' में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिकाएं अभिनीत की हैं। कुछ दिन पूर्व दिल्ली के मुख्यमंत्री ने उन्हें चाय पर बुलाया था और सम्मानित करने का इरादा भी व्यक्त किया था।
ज्ञातव्य है कि कुछ वर्ष पूर्व महानगर मुंबई में सड़क पर भिक्षा मांगने वाले व्यक्ति की मृत्यु के बाद पता चला कि उसके बैंक खाते में मोटी रकम जमा है। भीख मांगना जिस समाज में जायज व्यवस्था है, वहां भिखारी के पास धन जमा होता है। फिल्मों पर गंभीर विचार करने वाली त्रिशा गुप्ता ने राज कपूर की 'बूट पॉलिश' पर लिखे लेख में विवरण दिया कि प्राय: भिक्षा मांगने वाले इस तरह की धमकियां देते हैं कि 'बाबा एक पैसा दे दे वरना तेरी नानी मरेगी और श्राद्ध करने में तेरे हजारों रुपए खर्च होंगे।
एक कथा वाचक कहता है कि 'फलां महिला ने यह अनुष्ठान नहीं कराया तो उसके व्यापारी पति के सामान से लदा जहाज पानी में डूब गया और अनुष्ठान कराने पर वह जहाज जस का तस जल के ऊपर आ गया और किसी का एक वस्त्र भी नहीं भीगा।' टाइटैनिक फिल्म के फिल्मकार से बड़ी चूक हो गई फिर तो। त्रिशा गुप्ता ने अपने लेख में विवरण दिया कि तमिल भाषा में दो बच्चों को लेकर 'बूट पॉलिश नुमा फिल्म 'काका मुतई' बनी है।
गोया कि विगत दशकों में भी भिक्षा मांगने का दयनीय कार्य समाप्त नहीं हुआ है। फिल्म 'श्री 420' में फुटपाथ पर खड़ा एक व्यक्ति भिक्षा मांग रहा है। इलाहाबाद से पढ़ा-लिखा नायक मुंबई में काम की तलाश में आया है। वह भिखारी से कुछ पूछता है। भिखारी कहता है, 'परे हट यह मेरे व्यवसाय का समय है' अत: भिक्षा मांगने को एक व्यवसाय कहा गया है। मधुर भंडारकर की फिल्म 'ट्रैफिक सिग्नल' में भिक्षा मांगने के व्यवसाय की भीतरी कहानी प्रस्तुत की गई है।
डैनी बॉयल की फिल्म 'स्लमडॉग मिलेनियर' में प्रस्तुत किया गया है कि संगठित अपराध दल मासूम और अनाथ बच्चों की आंखों में एसिड डालकर उन्हें दृष्टिहीन करते हैं, ताकि उनसे भीख मंगवा कर पैसा कमाएं। बहरहाल, त्रिशा गुप्ता फिल्म समीक्षा में सामाजिक सोद्देश्यता को बनाए रखती हैं। भारत का राजनीतिक और सामाजिक इतिहास लेखन कार्य में फिल्मों का संक्षिप्त विवरण भी दिया जा सकता है।
शांताराम की 'दहेज' के प्रदर्शन के बाद गुजरात प्रांत ने दहेज विरोधी कानून केंद्र सरकार के पहले विधानसभा में पारित कराया था। सोनू प्रकरण से एक कथा याद आती है कि 'एक राजा ने विद्वान व्यक्ति को अपना सलाहकार नियुक्त किया और सुसज्जित घर रहने के लिए दिया। दरबार में उसकी बुद्धिमानी के चर्चे से ईर्ष्या रखने वालों ने जासूस तैनात किया। जानकारी मिली कि वह विद्वान हर रविवार अपने पुराने टूटे-फूटे मकान पर जाता है।
राजा को शिकायत की गई कि वह विद्वान सरकारी खजाने से माल चुरा कर अपने पुराने मकान में छुपाता है। राजा विद्वान के पुराने मकान गए, जहां गुरबत के दिनों में उसके पहने गए फटे वस्त्र, टूटे हुए बर्तन, मुट्ठी भर अनाज पाया गया। राजा ने विद्वान से पूछा कि यह सब अटाला उसने क्यों सहेज कर रखा है? विनम्र विद्वान ने बताया कि वह सप्ताह में एक बार यहां आता है ताकि अपनी औकात का उसे स्मरण रहे। क्योंकि राजा की कृपा कभी भी क्रोध में बदल सकती है अतः अपने अतीत को नहीं भूलना चाहिए।
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