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एक राहगीर ने देखा कि दस साल का एक बौद्ध भिक्षु, पांच वर्षीय भिक्षुओं के समूह से बात कर रहा है
एन. रघुरामन का कॉलम:
एक राहगीर ने देखा कि दस साल का एक बौद्ध भिक्षु, पांच वर्षीय भिक्षुओं के समूह से बात कर रहा है। ज्यों ही वह बाल भिक्षु कक्षा से बाहर आया, राहगीर ने पूछा, 'तुम वहां क्या कर रहे थे?' उस सबसे कम उम्र के शिक्षक ने कहा, 'मैंने बस उनकी पहली क्लास ली।' राहगीर ने पूछा, 'क्या सिखाया उन्हें?'
उस भिक्षु ने जवाब देने के बजाय उससे ही एक सवाल पूछा, 'आपने स्कूल में पहले दिन क्या सीखा?' राहगीर ने कहा 'शायद अक्षर।' उस छोटे भिक्षु ने बड़ों जैसे आत्मविश्वास से कहा, 'हम यहां उन्हें जो पहली चीज सिखाते हैं, वो है सांस कैसे लें' और आगे बढ़ गया। भौंचक राहगीर ने पूछा 'क्यों?'
भिक्षु रुका, पीछे मुड़ा और बोला, 'क्योंकि सिर्फ एक ही चीज जन्म से लेकर मृत्यु तक आपके साथ रहती है, वो है श्वास। सारे मित्र, परिवार, जहां रह रहे हैं, वो देश सब बदल सकता है, पर एक चीज जो कभी नहीं बदलती और साथ रहती है वो है आपकी सांसें।' प्रश्नोत्तर के लहज़े में उसने कहना जारी रखा, 'जब आप तनाव में होते हैं, गुस्सा होते हैं, तो क्या बदलता है? ये आपकी सांस है। सांसें बदलते ही हम हर भाव महसूस करते हैं। जब आप अपनी सांसें लेना और नियंत्रित करना सीख जाते हैं, तो जीवन के किसी भी हालात में आगे बढ़ सकते हैं।'
पिछले हफ्ते अपने डॉक्टर मित्र के चैंबर में इंतजार करते हुए मुझे ये कहानी याद आई, सामान्य सर्दी-खांसी के कारण मैं उनसे मिलने गया था। वहां मुझे उनकी टेबल पर डॉ. मीलान हान की एक किताब 'ब्रीदिंग गाइड: ए डॉक्टर्स गाइड टू लंग हेल्थ' दिखी। मैंने पन्ने पलटना शुरू किए और ये लाइन देखी, 'मायने नहीं रखता कि आपकी जीवनशैली कितनी अच्छी है, आपके फेफड़े 25 की उम्र के बाद कमजोर होने लगते हैं।' बीपी-कोलेस्ट्रॉल जैसी चीजों से उलट डॉक्टर अमूमन फेफड़े टेस्ट नहीं करते, जबकि इनका टेस्ट सच में बहुत आसान है।
और मुझे लगा कि उस छोटे भिक्षु की कहानी कितनी सही थी। सांसें अंदर से बाहर, बाहर से अंदर, चिंता की कोई बात नहीं। आपने फेफड़ों के बारे में आखिरी बार कब सोचा? औसत निकालें तो पूरी उम्र में हम 600 मिलियन सांसें लेते हैं। हमारे फेफड़े हर दिन 11 हजार लीटर हवा सर्कुलेट करते हैं। अस्थमा रोगी व योगियों को छोड़ दें, तो अधिकांश लोग फेफड़ों को हल्के में लेते हैं। और अचानक कोविड आया और उसने बता दिया कि हम अनजाने में अपने वायुमार्ग को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं। अब लगता है हमें इस बारे में कुछ करने की जरूरत है।
एक मरीज़ देखने के बाद मेरा मित्र आया और मजाक में कहा, 'अरे, हम कोविड के बाद नहीं मिले, पता है क्यों? अपने मास्क को थैंक्यू कहेंं। वह सिर्फ कोविड नहीं रोकता, बल्कि वातावरण में मौजूद सूक्ष्म ठोस कणों व तरल बूंदों के जरिए फैलने वाले तमाम श्वसन संबंधी वायरस रोकते हैं, जाहिर है मेरी फीस भी!' मैं मुस्कुराया और कहा, 'आपका मतलब है कि महामारी कम होने के बाद भी अगर हम मास्क पहनें, तो आपके पास कम आना पड़ेगा?' उन्होंने तपाक से कहा, 'ये अच्छा आइडिया है, कम से कम 40 साल से ऊपर के उन सबके लिए, जिनके फेफड़े ज्यादा कमजोर हो रहे हैं।'
किताब की ओर इशारा करते हुए मैंने पूछा, 'अपने फेफड़ों की देखभाल के लिए क्या आप दो सलाह दे सकते हैं?' उन्होंने कहा, 'धूम्रपान करने वालों को मेरी सलाह है कि तुरंत इसे बंद कर दें। और आप जैसे गोल-मटोल लोगों को कहूंगा कि अपना वजन कम करें, क्योंकि अगर चर्बी ज्यादा होगी, तो फेफड़ों को उसके विरुद्ध दबाव डालना पड़ेगा, जिसका मतलब वे ज्यादा काम कर रहे हैं।'
फंडा यह है कि कोविड का अगर कोई अच्छा पहलू है, तो वो ये कि इसने हमें अपने फेफड़ों की देखभाल करने की याद दिलाई है।
Gulabi
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