सम्पादकीय

आम बजट ने न केवल नए टैक्स की आशंका को दूर किया, बल्कि कई सुधारों की राह भी खोली

Gulabi
2 Feb 2021 4:41 AM GMT
आम बजट ने न केवल नए टैक्स की आशंका को दूर किया, बल्कि कई सुधारों की राह भी खोली
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अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार देने वाली महामारी के बीच आए आम बजट ने केवल नए टैक्स की आशंका को ही दूर नहीं किया, बल्कि

अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार देने वाली महामारी के बीच आए आम बजट ने केवल नए टैक्स की आशंका को ही दूर नहीं किया, बल्कि ऐसे कई सुधारों की राह भी खोली, जिनकी प्रतीक्षा एक अर्से से की जा रही थी। सबसे उल्लेखनीय यह है कि विनिवेश के लक्ष्य को हासिल करने के उपाय तय करके यह स्पष्ट करने की भी कोशिश की गई कि सरकार का काम उद्योग चलाना नहीं है। यह विचित्र है कि जब न्यूनतम सरकार-अधिकतम क्षमता की अवधारणा को साकार करने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं, तब विपक्षी दल यह शोर मचाने में लगे हुए हैं कि सरकारी कंपनियों को बेचा जा रहा है। हास्यास्पद यह है कि इनमें वह कांग्रेस भी शामिल है, जिसने अपने समय में विनिवेश नीति को आगे बढ़ाया। विपक्ष के रवैये से तो यही लगता है कि वह समाजवादी सोच वाली अर्थव्यवस्था के नाकाम हो जाने के बाद भी यह मानकर चल रहा है कि सब कुछ सरकार को ही करना चाहिए और उससे ही लोगों में खुशहाली आएगी। सात दशक बाद भी यह सोच राजनीतिक दीवालियेपन का परिचायक है। यदि भारत के साथ स्वतंत्र हुए अन्य देश आर्थिक प्रगति में आगे निकल गए तो इसी कारण कि वहां की सरकारों ने सब कुछ खुद करने की नीति नहीं अपनाई।



नि:संदेह बजट के हरेक प्रविधानों पर विपक्ष का सहमत होना आवश्यक नहीं। किसी को ऐसी अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए, लेकिन उसका यह समवेत स्वर उसकी अगंभीरता को ही बयान करता है कि गरीबों, किसानों के लिए बजट में कुछ भी नहीं है और उसमें केवल पूंजीपतियों का ध्यान रखा गया है। इस तरह की घिसी-पिटी और उबाऊ बातें करके विपक्ष केवल लोगों को गुमराह ही नहीं करता, बल्कि उपहास का पात्र भी बनता है। कोई भी बजट हो, उसमें केवल खामी उसे ही दिख सकती है, जो घोर नकारात्मकता में आकंठ डूबा हो। क्या स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च बढ़ाए जाने, आधारभूत ढांचे को मजबूत करने, नए स्कूल खोलने, कृषि उपकर का बोझ आम आदमी पर न पड़ने देने जैसी घोषणाएं भी विपक्ष को नजर नहीं आईं? यह सही है कि आयकरदाताओं को कोई राहत नहीं मिली, लेकिन क्या यह महत्वपूर्ण नहीं कि महामारी के चलते अर्थव्यवस्था के पस्त होने के बाद भी कोई नया टैक्स नहीं लगाया गया? इसकी भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि बजट के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी खत्म करने की किसानों को बरगलाने वाली बातों को अफवाह साबित किया गया है। उचित यही है कि बजट पर व्यर्थ की आलोचना की परवाह किए बिना सरकार उसमें की गई घोषणाओं पर अमल के लिए अपनी प्रतिबद्धता का परिचय दे।


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