सम्पादकीय

कांग्रेस पार्टी का भविष्य अब 'प्रियंका परिवार' पर टिका है, शायद इसीलिए रॉबर्ट वाड्रा लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं?

Gulabi
10 March 2022 6:22 AM GMT
कांग्रेस पार्टी का भविष्य अब प्रियंका परिवार पर टिका है, शायद इसीलिए रॉबर्ट वाड्रा लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं?
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कांग्रेस पार्टी का भविष्य अब ‘प्रियंका परिवार’ पर टिका है
अजय झा.
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव (Assembly Election) के बीच रॉबर्ट वाड्रा (Robert Vadra) का नाम एक बार फिर से सुर्ख़ियों में आ ही गया. इसलिए नहीं कि भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर से चुनावों में 'दामाद जी' का नाम ले कर कांग्रेस पार्टी (Congress Party) पर भ्रष्ट्राचार का आरोप लगा रही थी, इसलिए भी नहीं कि कल ही यह खबर आई कि आयकर विभाग ने वाड्रा पर 106 करोड़ रुपयों की आय की जानकारी छुपाने का आरोप लगाया है, बल्कि इस लिए कि वाड्रा ने इस बीच घोषणा की कि वह 2024 में होने वाले संसदीय चुनाव में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर अपने शहर मुरादाबाद से या फिर उत्तर प्रदेश के 'किसी अन्य क्षेत्र' से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे.
आयकर विभाग से उन्हें नोटिस मिलना या फिर छापा मारना अब कोई नयी बात नहीं है, क्योंकि यह तो पिछले कई वर्षों से चलता ही रहा है. किसी को नहीं पता कि कैसे कांग्रेस पार्टी के 10 वर्षों के शासनकाल में वह धनाढ्य बन गए. गांधी परिवार के दामाद होने का इतना तो फायदा बनता ही था कि उन्हें इस बात की अग्रिम जानकारी होती थी कि किस राज्य में और कब राज्य सरकार किसी नई परियोजना की घोषणा करने वाली है. कौड़ी के दाम पर किसानों से जमीन खरीदना और परियोजना की घोषणा के बाद उसे अधिक मूल्य पर बेच कर उन्होंने अरबों रूपये बनाए. वाड्रा की खासियत है कि उन पर आरोप लगता रहा, सरकारें बदल गईं, उनके विरुद्ध जांच चलती रही, छापेमारी भी हुई, पर कोई उनका बाल बांका नहीं कर पाया.
उत्तर प्रदेश की किस सीट से चुनाव लड़ेंगे रॉबर्ट वाड्रा
एक स्वतंत्र और जनतांत्रिक देश के नागरिक होने के नाते वाड्रा को चुनाव लड़ने से कोई नहीं रोक सकता. वह पागल या दिवालिया कतई नहीं हैं कि उन पर चुनाव लड़ने की कोई पाबन्दी हो. अपराधी तो अभी तक बिल्कुल नहीं हैं क्योंकि उनके खिलाफ कोई भी आरोप साबित नहीं हुआ है, यानि चुनाव लड़ने के लिए जो योग्यता भारतीय संविधान में मुकर्रर हैं, उस पर वाड्रा पूरी तरह खरे उतरते हैं. इस खबर को आए हुए कई दिन गुजर गए. खबर उनके हवाले से ही आयी थी. चूंकि ना तो वाड्रा ने और ना ही कांग्रेस पार्टी ने अभी तक इस खबर का खंडन किया है, मान कर चलना चाहिए कि खबर सही है. पर लगता है कि गांधी परिवार के दामाद होने का फायदा उन्हें यहां भी मिल रहा है. गांधी परिवार के सदस्यों के सिवा अभी कौन सा नेता ताल ठोक कर कह सकता है कि वह चुनाव लड़ेगा और किस क्षेत्र से लड़ेगा? अभी इस बात का खुलासा नही हुआ है कि क्या वाड्रा ने विधिवत तौर पर कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण भी की है, पर जब गांधी परिवार के दामाद ने घोषणा कर दी कि वह चुनाव लड़ेंगे तो मान कर चलिए कि वह चुनाव लड़ेंगे ही.
वैसे रॉबर्ट वाड्रा के हिम्मत और हौसले की दाद देनी चाहिए. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की हैसियत क्या है वह किसी से छुपा नहीं है. 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के 80 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस पार्टी मात्र दो सीटें ही जीत पाई थी – वाड्रा की सासूजी सोनिया गांधी राय बरेली से और साले साहिब राहुल गांधी अमेठी से चुनाव जीते थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गए और सोनिया गांधी उत्तर प्रदेश से कांग्रेस की एकलौती सांसद चुन कर आईं. अगर वाड्रा चाहते तो किसी अन्य राज्य से और किसी सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने की भी बात कर सकते थे, पर उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ने की उनकी घोषणा काबिले तारीफ कही जा सकती है.
मुरादाबाद नहीं तो किसी अन्य सीट से, वह अमेठी, रायबरेली या सुल्तानपुर भी हो सकता है. राहुल गांधी अब शायद ही अमेठी से चुनाव लड़ेंगे और स्वास्थ्य कारणों के कारण शायद इस बार सोनिया गांधी भी चुनाव नहीं लड़ेंगी. तो फिर संभव है कि वाड्रा और उनकी पत्नी प्रियंका गांधी इन दोनों सीटों पर चुनाव लड़ते दिखें. इस लिस्ट में सुल्तानपुर का नाम इस लिए शामिल है क्योंकि इस बात की सम्भावना नगण्य है कि बीजेपी मेनका गांधी और उनके पुत्र वरुण गांधी को इस बार टिकट देगी भी. वरुण गांधी के आव-भाव से तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि चुनाव के ठीक पूर्व वह बाप-दादी की कांग्रेस पार्टी में शामिल हो जाएंगे. चूंकि पूर्व में वरुण गांधी सुल्तानपुर से सांसद रह चुके हैं, उन्हें अपने जीजाजी के लिए चुनाव प्रचार करने से कोई आपत्ति नहीं होगी.
कांग्रेस पार्टी को वाड्रा परिवार की जरूरत है
वैसे वाड्रा का राय बरेली से चुनाव लड़ने की स्थिति में एक रोचक इतिहास बन सकता है. प्रियंका गांधी के दादाजी फिरोज गांधी स्वतंत्र भारत के पहले दो चुनावों में राय बरेली से कांग्रेस पार्टी के सांसद चुने गए थे. राय बरेली सीट से बाद में इंदिरा गांधी चुनाव लड़तीं रहीं और पिछले 15 वर्षों से सोनिया गांधी वहां से सांसद हैं. अगर रॉबर्ट वाड्रा चुनाव लड़ते हैं तो वह गांधी-नेहरु परिवार के पहले दामाद नहीं होंगे जो कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे. उनमें और फिरोज गांधी में बस फर्क इतना है कि जहां फिरोज गांधी अपने दम पर नेता थे और चुनाव लड़ने तथा जीतने के लिए उन्हें अपने ससुर जवाहरलाल नेहरु या पत्नी इंदिरा गांधी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था, वाड्रा को अगर सोनिया गांधी के दामाद और प्रियंका गांधी के पति के रूप में जनता के सामने पेश नहीं किया गया तो फिर उनकी जमानत भी खतरे में पड़ सकती है.
जैसे भारत में कांग्रेस पार्टी है, ठीक इसी तरह पड़ोसी देश पाकिस्तान में पाकिस्तान पुपिल्स पार्टी (पीपीपी) है जहां सिर्फ भुट्टो परिवार की ही चलती है. जुल्फिकार अली भुट्टो को सैन्य प्रशासन ने फांसी पर लटका दिया जिसके बाद पार्टी चलाने की जिम्मेदारी भुट्टो की बेटी बेनजीर भुट्टो पर आ गयी, जिसका भरपूर फायदा उठाते हुए बेनजीर के पति आसिफ अली ज़रदारी भी राजनीति में आ गए. ज़रदारी पर भी वाड्रा की तरह भ्रष्टाचार का आरोप लगता रहा, पर वह सांसद बने, पत्नी बेनजीर की सरकार में मंत्री रहे और पत्नी की हत्या के बाद पार्टी चलाने की जिम्मेदारी ज़रदारी पर आ गयी क्योंकि उस समय उनका पुत्र बिलावल नाबालिग था. बेनजीर की हत्या के पश्चात पीपीपी सत्ता में आयी और ज़रदारी पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने.
चूंकि गांधी-नेहरु परिवार के वारिस राहुल गांधी अविवाहित हैं, परिवार और पार्टी चलाने के लिए कांग्रेस पार्टी को भी वाड्रा की भी उतनी ही जरूरत है जितनी कि पीपीपी को ज़रदारी की थी. प्रियंका और रॉबर्ट वाड्रा के पुत्र रेहान वाड्रा अभी मात्र 21 वर्ष के ही हैं, मतदान कर सकते हैं पर चुनाव 25 वर्ष के होने तक नहीं लड़ सकते, लिहाजा परिवार और पार्टी को चलाने के लिए और भविष्य में पार्टी पर परिवार का वर्चस्व बनाए रखने के लिए रॉबर्ट वाड्रा का सक्रिय राजनीति में आना और अपने पति का साथ देना जरूरी बन गया है. अतः वाड्रा की घोषणा कि वह अगला चुनाव लड़ेंगे, इसे उनकी "निस्वार्थ" भावना से कांग्रेस पार्टी के प्रति समर्पण और गांधी परिवार के राजनीतिक विरासत की रखवाली करने की अभिलाषा के रूप के देखा जाना चाहिए, ना कि इसे वाड्रा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा से जोड़ कर.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं.)
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