- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- तालिबान की अंतरिम...
x
अफगानिस्तान में परंपरा सरकार से ज्यादा महत्व रखती है
ज्योतिर्मय रॉय.
अफगानिस्तान (Afghanistan) के हेरात (Herat) में कई महिलाएं अपने शिक्षा, सुरक्षा और काम के अधिकारों की रक्षा के लिए सड़कों पर विरोधी प्रदर्शन कर रही थीं. इसे रोकने के लिए तालिबान (Taliban) ने फायरिंग की, जिसमें दो लोगों की मौत हो गई और 8 जख्मी हो गए. वे कई संघर्षों के बाद पिछले 20 वर्षों में प्राप्त अपने अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठा रही थीं. प्रदर्शनकारियों की नेता, फ्रिबा काब्रजानी ने मांग की कि नई सरकार में, मंत्रालयों और सलाहकार परिषदों में महिलाओं को प्रतिनिधित्व दिया जाए. इससे पहले, काबुल में निकाली जा रही पाकिस्तान विरोधी रैली में भी तालिबान ने हवाई फायरिंग की थी.
अफगानिस्तान में परंपरा सरकार से ज्यादा महत्व रखती है. अफगान जीवन में उनकी परंपरा किसी सरकार से ज्यादा महत्व रखती है. धार्मिक विद्वान जिस विचार को अच्छा सोचते हैं, वही विचार कानून बन जाता है. अफगानिस्तान के लोग उसका अनुसरण करते हैं. आज भी ग्रामीण अफगानिस्तान का यही रूप है. अफगानिस्तान में असली समस्या ग्रामीण क्षेत्र को लेकर नहीं बल्कि शहरी इलाकों को लेकर है. पिछले 20 वर्षों में पश्चिमी विचारधारा से प्रभावित होकर काबुल और देश के अन्य प्रमुख शहरों के लोगों ने अपनी जीवन शैली बदल ली है, जो तालिबानी वि
चारधारा से बिलकुल विपरीत है.
दुनिया के अन्य देशों की तरह, अफगान युवाओं को संगीत, कंप्यूटर गेम, फुटबॉल खेलना पसंद है. उन्हे किताबें पढ़ना, दोस्तों के साथ कॉफी शॉप में बैठकर कॉफी पीना पसंद है. तालिबान के सत्ता में आते ही अब उनके जीवन का अर्थ बदल जाएगा. इसी विचार से आज के अफगान शहरी युवाओं का मन विचलित है.
तालिबान अगर पहले की तरह रूढ़िवादी ना हो तो देश में शांति आ सकती है
अल जजीरा से बात करते हुए अफगानिस्तान के 25 वर्षीय चित्रकार महदी जाहक का मानना है कि तालिबान के दौर में भी शांति की संभावना है, अगर तालिबान पिछले 20 वर्षों में अफगानिस्तान ने जो हासिल किया है उसे स्वीकार कर ले. ईरान में पले-बढ़े 19 साल के हुसैन नाई हैं, उसका कहना है कि अगर तालिबान पहले की तरह रूढ़िवादी ना हो तो देश में शांति आ सकती है. अफगान नेशनल म्यूजिक इंस्टीट्यूट की 18 साल की छात्रा मरम अतैया पियानो बजाती हैं. फिलहाल उन्हें यह नहीं पता कि वह फिर से पियानो बजा पाएंगी या नहीं. अतैया का मानना है कि संगीत की शिक्षा में पुरुषों और महिलाओं दोनों का समान अधिकार है.
24 वर्षीय अहमद दाऊद पेशे से दर्जी हैं. अब अपने घर से बाहर नहीं जाते हैं, क्योंकि तालिबान लड़ाकों ने काबुल में घुसने के दो दिन बाद ही दाऊद को सिलाई का काम बंद करने को कहा था. उनका कहना है कि महिलाओं के कपड़े सिलना पुरुषों का काम नहीं है. अब दाऊद का कारोबार खतरे में है, क्योंकि उनकी ज्यादातर ग्राहक महिलाएं हैं. दाऊद अपने पिता, दो भाइयों और दो बहनों में कमाने वाले एकमात्र व्यक्ति हैं.
छात्र-छात्राओं का भविष्य
25 साल के बशीर फारोग काबुल में स्कूल टीचर हैं. तालिबान के आदेश से अब स्कूल अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं. उन्हें इस बात की चिंता है कि तालिबान के शासन में शिक्षा का क्या होगा. जिस दिन तालिबान ने काबुल में प्रवेश किया, उसी दिन स्कूल बंद कर दिया गया था. बशीर चाहते हैं कि स्कूल खुल जाए. अगर रूढ़िवादी ड्रेस कोड का पालन करना ही है तो उसका पालन करते हुए भी स्कूल शुरू किए जा सकते हैं.
तालिबान ने कहा है कि उन्होंने लड़कियों की शिक्षा या महिलाओं के काम पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है, बल्कि इस्लामिक कपड़े पहनकर कोई भी स्कूल जा सकता है या काम कर सकता है. लेकिन इस घोषणा पर लोगों को विश्वास नहीं है. अभी तक स्कूल नहीं खुले हैं, महिलाओं में काम पर जाने का आत्मविश्वास नहीं है. कई छात्र पहले ही अफगानिस्तान छोड़ चुके हैं. उम्मीद है कि तालिबान शिक्षा के प्रति अपना नजरिया बदलेगा. इधर तालिबान के एक प्रवक्ता ने महिलाओं के अधिकारों और संस्कृति पर पश्चिमी देशों को हस्तक्षेप ना करने की सलाह दी है.
कैसा रहेगा देश
तालिबान युवाओं को निराश कर रहा है. राइमा साद यूनिवर्सिटी में पढ़ रही हैं. दो महीने पहले भी वह तालिबान को लेकर आशावादी थीं, उनको लगा कि तालिबान बदल गया है. उन्होंने कहा कि वह आशावादी थीं कि वह सामान्य रूप से अध्ययन करने में सक्षम होंगी. लेकिन पिछले दो हफ्तों में उन्हें निराशा ही हाथ लगी है. उन्होंने कहा कि कई छात्र पहले ही अफगानिस्तान छोड़ चुके हैं. साद अभी भी काबुल में है. उम्मीद है कि तालिबान शिक्षा के प्रति अपना नजरिया बदलेगा.
मानव संसाधनों के उपयोग में रूढ़िवादी विचारधाराओं का संकट
तालिबान खुद अफगानिस्तान में सबसे बड़ा संकट पैदा कर सकता है, जो सामान्य तौर पर पिछले 20 वर्षों में नहीं रहा है. संकट मानव संसाधनों के उपयोग में रूढ़िवाद सबसे बड़ी रुकावट है. अब देश में लाखों महिलाओं को घर पर रखा जाएगा, जो शिक्षण, चिकित्सा सेवाओं, पुलिस सेवाओं और विभिन्न स्थानों पर काम कर रही थीं. अगर देश के आधे लोगों को सामाजिक जीवन से सिर्फ इसलिए निकाल दिया जाए क्योंकि वे महिलाएं हैं, तो देश का क्या होगा?
काबुल के दो दवा भंडार के मालिक मोहम्मद शकूर का कहना है कि पैसा ही सब कुछ नहीं है. जरूरत है आजादी की. बचपन में मैने बहुत कष्ट झेला. मैं भूखा भी रहा. लेकिन तब मुझे कभी ऐसी असुरक्षा का सामना नहीं करना पड़ा. अभी यह स्पष्ट नहीं है कि अफगानिस्तान संकट से उबरने की कोशिश कर रहा है या नहीं. हम सभी चाहते हैं कि अफगान लोग युद्ध के बदले शांति देखें।
अफगानिस्तान में मंगलवार को तालिबान की अंतरिम सरकार के गठन के बाद संगठन के सुप्रीम लीडर हैबतुल्लाह अखुंदाजादा ने अपने युद्धग्रस्त देश का पुन:निर्माण करने की अपनी नीति स्पष्ट करते हुए कहा कि तालिबान उन सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों, संधियों और प्रतिबद्धताओं को मानेगा, जो इस्लामी कानून (शरीया) के विपरीत नहीं हैं. मैं सभी देशवासियों को आश्वासन देता हूं कि नया नेतृत्व स्थायी शांति, समृद्धि और विकास सुनिश्चित करेगा. तालिबान प्रमुख ने कहा, लोगों को अपने देश को छोड़ने का प्रयास नहीं करना चाहिए. इस्लामी अमीरात को किसी से कोई समस्या नहीं है. सभी व्यवस्था और अफगानिस्तान को मजबूत करने में शिरकत करेंगे और इस तरह हम अपने युद्धग्रस्त देश का पुनर्निर्माण करेंगे. अब देखना ये है कि तालिबान का अगला कदम क्या है. क्या तालिबान बदल गया है? क्या अफगानिस्तान में युद्ध के बदले अमन चैन देखने को मिलेगा? केवल अफगानिस्तान ही नहीं, विश्व भी अफगानिस्तान में युद्ध के बदले विकास, शांति और विश्वास का वातावरण देखना चाहता है.
Next Story