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नवाचार के लिए पहला कदम नियम तोड़ना
एन. रघुरामन का कॉलम:
'जो चल रहा है, उसे डिस्टर्ब मत करो।' सिर्फ मैं ही नहीं, नवाचार करने वाली पूरी दुनिया भी इस कथन पर भरोसा नहीं करती। मेरा तो पक्का भरोसा है कि अगर यही मानसिकता है, तो कोई कभी कुछ नया नहीं कर सकता। मुझे अपनी बात साबित करने दें।
कुछ समय पहले मैंने इसी स्तंभ में लिखा था कि जहां रेस्त्रां में ऑनलाइन ऑर्डर का ज्यादा ट्राफिक होता है, वहां लोग रेस्त्रां का बोर्ड टांगकर 'घोस्ट किचन' बना रहे हैं। ऐसे में जब आप पास का कोई रेस्त्रां खोजते हैं, तो 10 मिनट में ऑर्डर पहुंचाने का वादा करने वाले कई रेस्त्रां ऑनलाइन दिखते हैं।
हकीकत में ये पार्किंग या सड़क किनारे खड़ी कोई गाड़ी या ठेला होता है, जो उसी रसोई में सब पकाते हैं, लेकिन पैक उसी रेस्त्रां के लोगो लगे अलग बैग में करते हैं, जहां से आपने फोन से ऑर्डर किया था। इसलिए इन्हें घोस्ट किचन कहते हैं, जो किसी भी रेस्त्रां का खाना तैयार करतेे हैं। जहां रेस्त्रां के ज्यादा ऑर्डर आते हैं, वहां गाड़ी खड़ी करने का विचार अपराधी मानसिकता से आता है, जिसे चीटिंग कहते हैं।
जब से मैंने ये लेख लिखा, मैं सोच रहा था कि जब ये घोस्ट रेस्त्रां मालिक फोन से ही ट्राफिक का पता लगा लेते हैं और तय जगह पर गाड़ी खड़ी कर देते हैं, तो हम क्यों असली ट्राफिक सिग्नल पर अंतहीन इंतजार करते रहते हैं? क्यों हमारा सिस्टम घने ट्राफिक का अंदाजा नहीं लगा पाता? ऐसा इसलिए क्योंकि हम ऐसे सॉफ्टवेयर प्रयोग करते हैं, जो बैल/घोड़ागाड़ी, रिक्शा, ऑटोरिक्शा जैसे तिपहिया को वाहन ही नहीं मानते, जबकि अभी भी ये बड़ी संख्या में हैं।
जैसे गूगल मैप यात्रियों को रास्ता बदलने का सुझाव देता है, मुझे हमेशा आश्चर्य होता है कि क्यों हमारी ट्राफिक प्रणाली पहले से लगे ढेर सारे सीसीटीवी की मदद से वाहनों की भीड़ का आकलन नहीं कर पाती और जरूरत की जगहों पर ज्यादा सिपाही भेज नहीं सकती? क्यों सिग्नल के पास लगे सीसीटीवी रियल टाइम में सिग्नल तोड़ने वालों को पकड़ नहीं पाते? सिग्नल प्रणाली क्यों तय समय अंतराल पर काम करती है ना कि रियल टाइम ट्राफिक भीड़ पर?
यही कारण है कि लोग बेसब्र होकर सिग्नल तोड़ देते हैं। आप ये दिलचस्प बात जानते हैं कि देश में इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर को बिना हेलमेट के दोपहिया चालक पहचानने में दिक्कत होती है? इसका मुख्य कारण है पैदल यात्रियों और बिना हेलमेट की सवारियों के बीच भेद करने में सिस्टम की अक्षमता! हमारा सिस्टम सिर्फ तेज गाड़ी चलाने वालों का पता लगा पाता है। यही कारण है कि पुलिसकर्मी बिना हेलमेट पहने चालकों के स्थिर चित्र ही इस्तेमाल करते हैं और उन्हें डराते हैं।
इन सब सवालों के जवाब पाने के लिए हमारा सिस्टम पूरे देश में हर जगह ट्राफिक के तरीके का रियल टाइम डाटा आधारित होना चाहिए। अगर आपको लगता है कि इसमें सालों लगेंगे, तो बेंगलुरु में स्वागत है, जहां के 'ईफ्लैग' स्टार्टअप ने सिग्नल पर वाहनों की रियल टाइम भीड़ाभाड़ी के आधार पर रियल टाइम में इंतजार करने के समय की गणना करने में काफी प्रगति दिखाई है।
ये प्रणाली वाहनों की गणना के लिए हमारे विशेष वाहन जैसे दोपहिया, ऑटोरिक्शा, तांगे को वर्गीकृत करती है। यह प्रणाली पिछले दो महीनों से शहर के पांच जंक्शन में 27 प्रमुख सड़कों को संभाल रही है। ऊपर उठाए अधिकांश सवालों के जवाब देने के अलावा ये प्रौद्योगिकी दूसरे उपयोगी टेक माध्यमों से और भी कई डाटा जैसे वायु गुणवत्ता आदि दिखा सकती है और यातायात विभाग को शहर बेहतर बनाने में मदद कर सकती है, जहां रोज ट्राफिक कई गुना बढ़ रहा है।
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