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- चांद पर ‘प्रथम’ भारत

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By: divyahimachal
वाह! कितने खूबसूरत और ऐतिहासिक लम्हे हैं ये!! अभूतपूर्व, अकल्पनीय, अनूठी, अप्रत्याशित और अविस्मरणीय उपलब्धि है कि भारत चांद पर पहुंच चुका है। अपने ही अनुसंधान और प्रयोगों के बल पर आज भारत चांद के उस हिस्से पर मौजूद है, जहां कोई भी देश पहुंच नहीं सका। ‘चंद्रयान-3’ बेहद सफल मिशन रहा है, क्योंकि उसके ‘विक्रम लैंडर’ ने चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर सफल लैंडिंग की है और अब ‘प्रज्ञान रोवर’ भी बाहर आकर, चांद के आंगन में ही, घुमक्कड़ी कर रहा है। भारत और इसरो ने ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किया है, क्योंकि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला प्रथम मिशन ‘भारतीय’ है। आज अमरीका, रूस, चीन और यूरोपीय देशों की आंखें फैल गई होंगी, क्योंकि भारत के ऐसे सामथ्र्य की कल्पना तक उन्होंने नहीं की थी। वे हमारी वैज्ञानिकता और मिशनों का उपहास उड़ाया करते थे। सिर्फ तीन दिन पहले ही रूस का ‘लूना-25’ मिशन दक्षिणी ध्रुव पर उतरने में नाकाम रहा और वह विनष्ट हो गया। अंतरिक्ष और चांद को खंगालने में सोवियत संघ (रूस) के मिशन सर्वप्रथम और अतुलनीय रहे हैं, लेकिन आज वह भी भारत से पिछड़ गया। भारत और इसरो के वैज्ञानिकों, इंजीनियरों ने वह उपलब्धि हासिल की है, जो अनन्य है। आज चांद तो क्या, आसमान भी हमारे लिए आंगन महसूस हो रहा है। वह असीम और अनंत नहीं रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने ठीक ही टिप्पणी की है कि अब चंदा मामा दूर के नहीं रहे, बल्कि वह टूर के हो गए हैं। यानी ऐसे दिन भी आने वाले हैं, जब लोगों के टूर चांद पर जाया करेंगे! इस चंद्रविजय के बाद कहानियों के तमाम पुराने मिथक और कथानक बदल जाएंगे। नए भारत की नई पीढ़ी नई कहावतें पढ़ेगी। हम चांद को सपनों, कल्पनाओं और रूपक-उपमाओं में ही जीते थे अथवा मां थाली में पानी डाल कर, उसमें चांद की परछाईं दिखा कर, हमें दुलारती थी कि चंदा मामा यहां हैं। वाकई मानवीय प्रयोग, वैज्ञानिक अनुसंधान और इंजीनियरिंग के कौशल ने साबित कर दिया है कि आज भारत चांद पर है। चांद की सतह पर हमारा ‘अशोक चक्र’ और इसरो का प्रतीक चिह्न छाप दिया गया है। ये भारत की ऐतिहासिक विजय के साक्ष्य हैं। बधाइयों और शुभकामनाओं के अंबार लगे हैं। अब नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसियों ने भारत के इसरो के साथ काम करने, मिशन भेजने की इच्छाएं व्यक्त की हैं, पेशकश दी हैं, यकीनन हम विचार करेंगे। शाबाश!! इसरो के वैज्ञानिको! कर्मचारियो!! आपने संकल्प जमीन पर लिया और चांद पर उसे साकार किया। प्रधानमंत्री ने भी चंद्रविजय पर ऐसे ही भाव व्यक्त किए हैं। वह 26 अगस्त को बेंगलुरु जाकर इसरो के दफ्तर में सभी विजेताओं से रूबरू होंगे। बहरहाल हमने टीवी पर लैंडर की लैंडिंग का सीधा प्रसारण देखा था। लैंडर ने 20 फीसदी, फिर आधा सफर, फिर 50 फीसदी और उसके बाद 80 फीसदी यात्रा सफलता से तय की, तो धडक़नें तेज होने लगीं। लैंडर और चांद की सतह के बीच की दूरी सिमटने लगी, तो आंखें पनिया गईं। अचानक तालियां की गूंज सुनाई दी, ‘जय हो’ के उद्घोष गूंजने लगे, तो खुशी से उछल पड़े। देश की प्रतिक्रिया भी यही होगी, क्योंकि एक असंभव-सा लक्ष्य हासिल कर लिया गया था। यह ऐतिहासिक, वैज्ञानिक उपलब्धि यहीं तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि अंतरिक्ष के आयाम बदलेंगे। दुनिया को एक निश्चित रास्ता मिलेगा कि चांद कहां और कैसा है? वहां तक पहुंचना कैसे संभव है? दरअसल हमारा सुझाव है कि 15 अगस्त और 26 जनवरी की तरह 23 अगस्त को भी ‘राष्ट्रीय दिवस एवं पर्व’ घोषित किया जाए, क्योंकि यह मिशन भी भारत की संप्रभुता और स्वतंत्रता का प्रतीक है। चांद पर हीलियम-3 ज्यादा मात्रा में उपलब्ध है। परमाणु कार्यक्रम के लिए यह अहम माना जाता है। यह ऊर्जा का स्वच्छ स्रोत भी है। चांद की चट्टानों पर सल्फर मिलने के संकेत हैं। मूल्यवान धातु प्लेटिनम, प्लाडियम, मैगनीशियम और सिलिकॉन भी प्रचुर मात्रा में बताई जा रही हैं। अब लैंडर और रोवर चांद की स्थितियों का अध्ययन करेंगे। वहां की भूकंपीय हलचलों और तापमान का भी अध्ययन किया जाएगा और वे तमाम सूचनाएं इसरो तक पहुंचाई जाएंगी। चांद पर पानी के अन्य स्रोत भी पता चलेंगे और अंतत: वहां इनसानी जिंदगी की संभावनाओं के भी आयाम खुलेंगे। बहरहाल यह तो शुरुआत भर है। अभी तो इसरो को सूर्य और शुक्र पर भी जाना है। आशा की जानी चाहिए कि भारत सूर्य और शुक्र पर भी तिरंगा फहराएगा।

Rani Sahu
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