सम्पादकीय

ठेके का 'अग्निपथ'

Rani Sahu
16 Jun 2022 7:14 PM GMT
ठेके का अग्निपथ
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युवाओं ने ‘अग्निपथ’ योजना का विरोध किया है। बिहार में सबसे उग्र प्रदर्शन किए गए हैं

युवाओं ने 'अग्निपथ' योजना का विरोध किया है। बिहार में सबसे उग्र प्रदर्शन किए गए हैं। पथराव के अलावा रेल की पटरियां ठप की गई हैं। बिहार में ही सबसे ज्यादा बेरोज़गार हैं। सेना उनके लिए मंजिल है, जहां पहुंच कर वे देश-सेवा भी कर सकते हैं। बिहार के अलावा, राजस्थान, उप्र और हरियाणा में भी युवा 'अग्निपथ' योजना के जरिए सेना में भर्ती होने के खिलाफ हैं। देशसेवा करने और एक अदद सरकारी नौकरी के जरिए समूचे परिवार की आर्थिक सुरक्षा के सपने अब सूखने लगे हैं। 'अग्निपथ' के लिहाज से भी वे नौजवान 'ओवरऐज' हो चुके हैं, जो बीते 2-3 सालों से सेना में भर्ती के लिए खुद को गूंथ रहे थे। अब उनके पांवों की गति धीमी पड़ गई है, छाती में उबलता जुनून ठंडा पड़ने लगा है, भरी जवानी में 'भूतपूर्व' होने की यह अभूतपूर्व योजना उन्हें 'छलावा' लगती है। युवाओं के रोज़गार के अधिकार का हनन लगता है। सेना में मात्र चार साल का ठेका पूरा करने के बाद वे क्या करेंगे? पूर्व सैनिकों को नौकरी मिलने का अनुभव और औसत क्या रहा है? 14 साल की नौकरी के बावजूद मात्र 2 फीसदी…! जिन 75 फीसदी 'अग्निवीरों' की सेवाएं चार साल के बाद समाप्त कर दी जाएंगी, क्या समाज और निजी कॉरपोरेट क्षेत्र उन्हें सवालिया निगाहों से नहीं देखेंगे? सरकारी मंत्रालय और राज्यों के मुख्यमंत्री 'प्राथमिकता' कहने के बजाय नौकरी देने की गारंटी तय क्यों नहीं कर देते? आरक्षण की तर्ज पर यह गारंटी भी दी जा सकती है। कमोबेश 'अग्निवीर' प्रशिक्षित सैनिक तो होंगे, बेशक उन्हें सैनिक नहीं माना जाएगा। इन तमाम सवालों से महत्त्वपूर्ण और नाजुक सवाल देश की सरहदी सुरक्षा का है। सीमाओं पर चीन और पाकिस्तान सरीखे दुश्मन देश घात लगाए तैनात हैं। सेना की संरचना का सवाल भी है, क्योंकि करीब 60,000 सैनिक हर साल रिटायर होते हैं। नियमित भर्तियां अनिश्चित हैं। 'अग्निपथ' योजना का भविष्य सवालिया है। यह सियासी जुमला भी साबित हो सकती है। सवाल औसत और ठेके पर काम करने वाले सैनिक का 'नाम, नमक, निशान' के प्रति निष्ठा और हथेली पर जान रखने की प्रेरणा का भी है। ऐसा सैनिक युद्ध, आतंकवाद और किसी अन्य टकराव के दौरान अतिरिक्त जोखि़म क्यों लेगा? जब चारों ओर अनिश्चितता है, तो उसका जज़्बा और कारगिल जैसा साहस भी अनिश्चित होगा। दरअसल ये सवाल हमारे नहीं हैं। हमारा बुनियादी तौर पर मानना है कि ठेके पर सैनिक बनाना गलत और देश की सुरक्षा की रणनीति से खिलवाड़ है।

ऐसे ढेरों सवाल युवाओं ने ही नहीं, बल्कि उप सेना प्रमुख, लेफ्टिनेंट और मेजर जनरल सरीखे शीर्ष पदों पर रहे रक्षा विशेषज्ञों ने भी उठाए हैं। समस्या बजट की भी नहीं है। सरकार सैनिकों के वेतन और पेंशन के बजट कम करना चाहती है, यह रहस्य भी खुल गया कि भारत कितनी सशक्त अर्थव्यवस्था है! 'अग्निपथ' योजना की घोषणा के बाद अधिसूचना भी जारी हो गई होगी! सरकार ने तय कर लिया है, तो युवा विरोध-प्रदर्शन से भी क्या हासिल कर लेंगे? बीते दो-अढ़ाई साल से सेनाओं में कोई भी भर्ती नहीं की गई है। आश्वासन बहुत मिलते रहे हैं। जिन युवाओं ने शारीरिक और मेडिकल टेस्ट पास कर रखे हैं, लेकिन लिखित परीक्षा नहीं हो पाई, तो अब वे क्या करेंगे? क्या उन्हें 'अग्निपथ' में मौका दिया जाएगा? सरकार ने यह भी स्पष्ट नहीं किया है। सेनाओं में 1.25 लाख से ज्यादा पद खाली हैं, यह संसद में सरकार ने ही सवाल के जवाब में बताया था। 'अग्निवीर' रिटायर सैनिकों के स्थान पर भर्ती किए जाएंगे अथवा इन रिक्तियों को भी भरा जाएगा? देश में 5 करोड़ से अधिक बेरोज़गार हैं, जिनमें भावी सैनिक भी हैं, लेकिन 'अग्निपथ' के अलावा, सरकार ने आगामी डेढ़ साल में 10 लाख नौकरियां देने का भी वायदा किया है। ये रिक्तियां बहुत जल्द भरनी शुरू हो सकती हैं, क्योंकि डेढ़ साल के बाद तो आम चुनाव का समय करीब आ जाएगा। बेशक सरकारी पार्टी इसका राजनीतिक लाभ लेना चाहेगी। केंद्र सरकार में फिलहाल 8.80 लाख के करीब पद खाली हैं। क्या उन सभी पर नियुक्तियां की जाएंगी और फिर कुछ अतिरिक्त पद सृजित किए जाएंगे? यह देखना भी शेष है, लेकिन बेरोज़गारी के मद्देनजर सरकार की इन घोषणाओं का स्वागत भी करना चाहिए। लड़ाई जरूर जारी रहे। सैन्य सेवाओं के लिए चार साल अवधि करना सरकार की मजबूरी लगती है।

By: divyahimachal

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