सम्पादकीय

महामारी के पांव

Subhi
30 Aug 2021 1:45 AM GMT
महामारी के पांव
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एक बार फिर कोरोना ने पांव पसारने शुरू कर दिए हैं। दो दिन पहले देश भर में संक्रमितों की संख्या घट कर पैंतीस हजार से नीचे पहुंच गई थी,

एक बार फिर कोरोना ने पांव पसारने शुरू कर दिए हैं। दो दिन पहले देश भर में संक्रमितों की संख्या घट कर पैंतीस हजार से नीचे पहुंच गई थी, मगर फिर दो दिनों से आंकड़ा चालीस हजार से ऊपर पहुंच गया है। हालांकि कुल मामलों में आधे से अधिक अकेले केरल में दर्ज हो रहे हैं, पर दूसरे राज्यों में भी थोड़ी ही सही, संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है। देश के इकतालीस जिलों में साप्ताहिक संक्रमण दर दस फीसद से अधिक है। इसलिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने लोगों से अपील की है कि अगले दो महीने त्योहारी मौसम के होंगे, बाजारों में भीड़भाड़ अधिक रहेगी, इसलिए इस दौरान अधिक सावधानी बरतने की जरूरत है।

देखा गया है कि त्योहारों के बाद संक्रमण की दर कुछ बढ़ी हुई दर्ज होती है। इसलिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने लोगों से अपील की है कि वे कोरोनोचित व्यवहार अपनाएं, कोरोना नियमों का सख्ती से पालन करें। अब महाराष्ट्र सरकार भी कुछ नियम-कायदों में सख्ती करने जा रही है, क्योंकि वहां फिर से मामले बढ़ने शुरू हो गए हैं। मुंबई में दो हफ्ते पहले संक्रमितों की संख्या घट कर दो सौ तक पहुंच गई थी, पर अब फिर तीन सौ से ऊपर हो गई है।
कोरोना की दूसरी लहर के धीमी पड़ते ही फिर से वही मनमानियां और लापरवाहियां देखी जाने लगी हैं, जो पहली लहर के बाद देखी गई थी। तब बाजारों, सार्वजनिक स्थानों, सार्वजनिक वाहनों, शादी-ब्याह आदि में लोगों ने जरूरी एहतियाती उपायों पर अमल करना बंद कर दिया था। इस बार भी वैसा ही होने लगा है। अब सारे बाजार खुल गए हैं, साप्ताहिक मंडियां भी लगने लगी हैं, सार्वजनिक वाहन पूरी संख्या के साथ चलने लगे हैं। इसमें हाथ धोते रहने, नाक-मुंह ढंकने तक की जरूरत बहुत सारे लोग नहीं समझते। अनेक लोग अब भी कोरोनारोधी टीका लगवाने को लेकर संशय में हैं। ऐसे में सरकार की चिंता समझी जा सकती है। व्यावसायिक गतिविधियों और लोगों के रोजमर्रा के कामकाज को लंबे समय तक रोक कर संक्रमण पर काबू पाने का प्रयास व्यावहारिक नहीं कहा जा सकता। लोगों को खुद अपनी सेहत और जीवन को संकट में पड़ने से बचाने को लेकर सतर्क रहना होगा। हर व्यक्ति केवल अपनी चिंता करने लगे, तो इस समस्या को रोकने में बड़ी कामयाबी मिल सकती है।
मगर लोगों में व्यक्तिगत जागरूकता बनाए रखने के साथ-साथ ऐसे आयोजनों पर भी नियंत्रण रखने की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता, जिनसे अर्थव्यवस्था पर सीधा कोई असर नहीं पड़ता। खासकर, राजनीतिक दलों को इस मामले में गंभीरता से सोचने की जरूरत है कि वे जिस तरह अपना शक्ति प्रदर्शन करने के लिए रैलियां निकालते हैं, उससे संक्रमण के प्रसार की अशंका बनी रहती है। पिछले दिनों विपक्षी दलों ने कई बार रैलियां अयोजित की। अभी भाजपा देश भर में जन-आशीर्वाद यात्रा निकाल रही है, जिसमें भारी संख्या में लोग जुट रहे हैं।
जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव हैं, वहां भी रैलियों का सिलसिला बढ़ता जा रहा है। पश्चिम बंगाल विधानसभा और उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों का अनुभव अभी लोग भूले नहीं हैं। ऐसी राजनीतिक गतिविधियों में लोगों का एक से दूसरे राज्यों में लगातार आना-जाना लगा रहता है, जिसमें कोरोनोचित व्यवहार की परवाह तक नहीं की जाती। इसलिए तीसरी लहर के खतरों को भांपते हुए न केवल आम लोगों, बल्कि राजनीतिक दलों पर भी कोरोना नियमों के पालन का कठोर दबाव बने रहना चाहिए।


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