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- महामारी के पांव
एक बार फिर कोरोना ने पांव पसारना शुरू कर दिया है। इसे लेकर स्वाभाविक ही चिंता उभरने लगी है कि कहीं यह तीसरी लहर की आहट तो नहीं। कोरोना की दूसरी लहर के थमने के बावजूद काफी समय से संक्रमण का आंकड़ा पैंतीस से चालीस हजार के बीच बना हुआ था, मगर पिछले चार दिनों से इसका रुख चालीस हजार से ऊपर बना हुआ है। शुक्रवार को यह चौवालीस हजार से भी ऊपर पहुंच गया था। अभी तक देश में कुल संक्रमितों की आधी संख्या महाराष्ट्र और केरल से आ रही थी, अब अकेले केरल से आधे मामले दर्ज होने लगे हैं। दक्षिण के अन्य राज्य और पश्चिम बंगाल, ओड़ीशा तथा पूर्वोत्तर में भी अभी कोरोना का अपेक्षित उतार नहीं हो रहा। अब दिल्ली में भी मामले बढ़े हुए दर्ज होने लगे हैं। चिकित्सा विज्ञानियों का कहना है कि कोरोना का डेल्टा स्वरूप ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है। फिलहाल 'आर फैक्टर' एक फीसद से नीचे नहीं आ रहा। इसकी दर एक फीसद से अधिक होने का अर्थ है कि कोरोना के मामले तेजी से बढ़ सकते हैं। इसलिए इस स्थिति को लेकर अधिक चिंता जताई जा रही है।
दूसरी लहर थमने लगी, तभी से तीसरी लहर की आशंका जताई जाने लगी थी। लगातार लोगों को जरूरी एहतियात बरतने को कहा जाता रहा है। अब अमेरिका और यूरोपीय देशों में कोरोना की तीसरी लहर फैलनी शुरू हो गई है, इसलिए भी यहां इसके पांव पसारने की आशंका जताई जाने लगी है। हालांकि विदेशी उड़ानें फिलहाल बंद हैं, पर अपने देश में ही जब कोरोना का डेल्टा स्वरूप बना हुआ है, तो बाहर के बजाय भीतर से इसके संक्रमण का खतरा बना हुआ है। केरल आदि राज्यों में कोरोना पर काबू न पाए जा सकने की कुछ वजहें साफ हैं। दूसरी लहर के धीमी पड़ने के साथ ही जब आंशिक रूप से बंदी खुलनी शुरू हुई तो लोगों ने मान लिया कि कोरोना का भय समाप्त हो गया है। बाजारों, सड़कों, सार्वजनिक वाहनों में भीड़भाड़ शुरू हो गई। इसमें सरकारों की तरफ से भी लापरवाही बरती गई। ईद के मौके पर केरल सरकार ने बाजार खोले, तो स्वाभाविक ही उसकी चौतरफा निंदा शुरू हो गई थी। उस लापरवाही के नतीजे भी आने शुरू हो गए। ईद के बाद वहां संक्रमण तेजी से बढ़ा है। इसके चलते वहां फिर से बंदी का फैसला करना पड़ा है।
चिकित्सा विज्ञानी कोरोना विषाणु से बचने के लिए कोरोनारोधी टीके लगाने पर जोर देते रहे हैं। टीकाकरण अभियान में तेजी लाने के लगातार प्रयास भी हो रहे हैं। मगर फिलहाल इससे बचाव का सबसे कारगर तरीका भीड़भाड़ से बचना, नाक-मुंह ढंक कर रखना, हाथ धोते रहना, यानी कोरोनोचित व्यवहार का पालन करना ही है। इसी मामले में ज्यादा लापरवाही देखी जा रही है। यह ठीक है कि काम-धंधे बंद करके नहीं रखे जा सकते, मगर जीवन के साथ लापरवाही बरतना भी कोई समझदारी की बात नहीं। सरकारों के लिए हर समय लोगों पर निगरानी रखना संभव नहीं है। महानगरों में पुलिस जरूर कुछ हद तक नाक-मुंह न ढंकने वालों पर जुर्माना लगा कर उन्हें सबक सिखाने का प्रयास करती देखी जाती है, मगर छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में ऐसा करना संभव नहीं हो पाता। पर केरल की तरह शिथिलता को किसी भी रूप में उचित नहीं माना जा सकता। फिर, लोगों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी सुरक्षा का ध्यान रखें और कोरोना को फैलने से रोकें।