सम्पादकीय

जनता में पुलिस की दहशत ज़्यादा, बेख़ौफ़ घूम रहे हैं चोर

Rani Sahu
5 May 2022 5:19 PM GMT
जनता में पुलिस की दहशत ज़्यादा, बेख़ौफ़ घूम रहे हैं चोर
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क्या पुलिस की वर्दी ने तिलकधारी सरोज के भीतर मर्द होने का कोई अतिरिक्त भाव छिपा होगा

रवीश कुमार,

क्या पुलिस की वर्दी ने तिलकधारी सरोज के भीतर मर्द होने का कोई अतिरिक्त भाव छिपा होगा, इस तस्वीर में तिलकधारी कमज़ोर से दिख रहे हैं लेकिन कमज़ोरी को देखने का यह सामाजिक नज़रिया भी किसी में हताशा भर देता है और वह इस ताकत को ज़हर में बदल देता है. मर्द अपने को किस तरह कमज़ोर मानता है और समाज उसे किस तरह से कमज़ोर देखता है, इन दोनों का बड़ा रोल होता है किसी को लड़का से मर्द बनाने में. ऊपर से भारत जैसे विश्व गुरु टाइप देश में पुलिस के रोज़ का काम और उस काम में ताकत के इस्तेमाल को भी देखिए.
जिस तरह से पुलिस रूटीन के तौर पर थाने में टार्चर करती है, फर्ज़ी एनकाउंटर करती है, फर्ज़ी केस में किसी को फंसा देती है, रास्ते से वसूली करती है, यह सब काम पुलिस वाले को अलग से मर्द बना रहा होता है. अगर इस नज़र देखेंगे तो वर्दी का यह अपराध समझ आएगा तब आप तिलकधारी सरोज को केवल बलात्कार के मामले में एक आरोपी की तरह नहीं देखेंगे. अभी आपने चेन्नई में थाने में ऑटो चालक के मार देने की घटना सुनी थी. कुछ साल पहले तमिलनाडु में मामूली कहासुनी पर थानेदार दुकानदार और उसके बेटे को उठा ले गया और सारी रात इतना मारता रहा कि पिता की मौत हो गई. जो पुलिस सत्ता के इशारे पर फर्ज़ी एनकाउंटर कर सकती है वही पुलिस किसी को थाने में पीटकर मार भी सकती है. सत्ता के भीतर कई विभागों में इस तरह के कई मर्द हैं. केवल पुलिस ऐसी है, ज़रूरी नहीं. ये वही मर्द हैं जिनके भीतर स्त्री और कमज़ोर नागरिक को देखने की ख़ास निगाह होती है जो उसे बलात्कारी से लेकर दरिंदा बनाता है. जो गोरखपुर के एक होटल में ठहरे मनीष गुप्ता को इतना मारता है कि मर जाते हैं. पिछले साल मार्च में राजस्थान के अलवर में एक थानेदार को 26 साल की महिला के साथ बलात्कार के आरोप में निलंबित किया गया था. देश के तमाम राज्यों से पुलिस की इस दरिंदगी के किस्से आपको बलात्कार से लेकर वसूली के संदर्भ में मिल जाएंगे. आप जानते भी हैं.
इस देश में पुलिस सुधार की बात करने वाले दुकान चलाने लगे और सत्ता से सेट हो गए. पुलिस सुधार के नाम पर नई वर्दी और नई गाड़ी तो आ गई मगर पुलिस नई पुलिस नहीं बन सकी. जब तक आप विश्व गुरु टाइप के समाजों के मर्दों की टाइप को नहीं समझेंगे, तिकलधारी सरोज को नहीं समझें.
हम जानते है कि पुलिस में अच्छे लोग हैं और सारी पुलिस ऐसी नहीं है लेकिन देखना चाहिए कि पुलिस में आते ही कुछ लोग ऐसे कैसे बन जाते हैं कि उनकी वजह से आम जनता पुलिस का नाम सुनते ही कांपने लगती है. हम उस समाज और सरकार की भी बात कर रहे हैं, जिसकी फैक्ट्री में ऐसे मर्द तैयार होते हैं और पुलिस तैयार होती है.
दिल्ली में निर्भया केस के समय जस्टिस वर्मा कमेटी ने कई सुझाव दिए थे. अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पुलिस थानों में भी यौन हिंसा के कई अपराध होते हैं. सभी थाने और पुलिस की गाड़ी में सीसीटीवी कैमरा होना चाहिए. ये हाल है पुलिस का है. उसे कैमरे की नज़र में रखना पड़ रहा है. क्या सभी पीसीआर वैन और थाने में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं? 23 जनवरी 2013 को जस्टिस वर्मा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. 9 साल हो गए. जस्टिस वर्मा कमेटी ने तो यहां तक लिखा था कि जिस जगह पर पूछताछ होती है वहां भी सीसीटीवी कैमरा होना चाहिए ताकि पुलिस के अधिकारी कानून के दायरे में पूछताछ करें ताकि पुलिस जो यौन हिंसा की शिकायत दर्ज करने आये उनको डराए धमकाए नहीं.
तिलकधारी सरोज से पहले चंदन, राजभर, हरीशंकर और महेंद्र चौरसिया ने उस किशोरी के साथ कथित रुप से बलात्कार किया था. इन चारों का भी विश्लेषण उसी तरह होना चाहिए जिस तरह तिलकधारी सरोज का हुआ है. जानना चाहिए कि चंदन, राजभर, हरीशंकर औऱ महेंद्र चौरसिया के बचपन से लेकर लड़कपन और मर्द बनने की यात्रा कैसी रही, ये लोग क्या क्या करते रहे हैं, क्या देखते रहे हैं, ये सब जानना चाहिए. इनकी गिरफ्तारी की तस्वीरों से आप बहुत कुछ नहीं जानते हैं.
यूपी पुलिस गंभीर हो गई है. इस मामले की जांच डीआईजी को सौंप दी गई है और 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है. गनीमत है कि चाइल्ड लाइन में बच्ची की काउंसलिंग हुई वर्ना वो इस बात को कभी कह नहीं पाती. 15 मार्च 2022 को केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से मिली सूचना के अनुसार, 1 अप्रैल 2021 से लेकर 8 मार्च 2022 तक पुलिस की हिरासत में बलात्कार की एक भी घटना दर्ज नहीं हुई है.
हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक केस के सिलसिले में टिप्पणी की थी कि पुलिस को रक्षक होना चाहिए लेकिन वह भक्षक बन गई है. पुलिस के कारण सामान्य से सामान्य लोगों का भरोसा कम होता जाता है. इसका नुकसान पुलिस के भीतर अच्छे लोगों को भी उठाना पड़ता है क्योंकि वे भी उसी चश्मे से देखे जाते हैं. 2018 में CSDS ने पुलिस को लेकर कई राज्यों में एक सर्वे किया और 220 पेज की लंबी रिपोर्ट छापी.
आप सड़क पर रेहड़ी पटरी और दुकानदारों से पूछिए कि वे पुलिस को कितना हफ्ता देते हैं, हफ्ते का चलन इतना नॉर्मल हो गया है कि अब कोई बोलता भी नहीं. फिर आप विदेशों में रहने वाले NRI अंकिलों को व्हाट्सएप पर वीडियो कॉल कीजिए और उनसे पूछिए कि जिन देशों में वे रहते हैं, वहां कभी ऐसा देखा है.
प्रधानमंत्री विदेश दौरे पर गए थे. वहां जुटे NRI भारतीयों के चेहरे की मुस्कान का संबंध उन देशों की वास्तविकता से है या भारत में कुछ ऐसा कमाल हो गया है जिससे वे आंखें फाड़ कर देख रहे हैं? अगर भारत में स्वर्ण युग का पदार्पण हो गया है तब ये लोग बेडिंग बांध कर लौट क्यों नहीं आते हैं? दो दिन किसी निगम और थाने के अधिकारियों से पाला पड़ जाएगा तो दांत चियार देंगे. मुंह से बकार निकलना बंद हो जाएगा. क्या उन देशों की पुलिस इस तरह की हफ्ता वसूली वाली होती, फर्ज़ी केस में बंद करने वाली होती तो वे इतनी तरक्की कर पाते? क्या उनके विदेशों में बसने और अभी तक बसे होने का यह बड़ा कारण नहीं है कि उन देशों में ऐसा नहीं होता है? तो इन्हें दबाव नहीं डालना चाहिए कि भारत में भी ऐसा ही सिस्टम हो?
दिल्ली में निगम चुनाव होने हैं, अतिक्रमण हटाने की आड़ में एक खास किस्म की राजनीति की पृष्ठभूमि तैयारी की जा रही है ताकि गोदी मीडिया को डिबेट का सामान उपलब्ध हो सके और ग़रीब का सामान उजड़ जाए. हम अपने भीतर इतनी क्रूरता भर चुके हैं कि इस तरह की क्रूरताओं को कानून का लागू होना समझने लगे हैं. व्हाट्स एप पर वीडियो काल कर NRI अंकिलों से पूछिए कि उन्होंने क्या कभी इस तरह से किसी अमीर या मिडिल क्लास को निगम के सामने असहाय गिड़गिड़ाते देखा है? क्या इस दिल्ली में अतिक्रमण केवल ग़रीबों ने किया है? रेहड़ी पटरी वालों ने किया है? कार वालों ने दिल्ली के चप्पे चप्पे पर गाड़ी खड़ी करके अतिक्रमण किया है, उस पर कभी बुलडोज़र चला है? जो जगह पार्किंग की नहीं है वहां पार्किंग बन गई है. छज्जे जुड़ गए हैं लेकिन कांप रहा है ये ग़रीब.दिल्ली में अतिक्रमण हटाया जा रहा है कि ग़रीब हटाया जा रहा है.
कानून का मसला इतना आसान नहीं होता. इन दिनों अगर आप विपक्ष में हैं, सरकार से सवाल करने वाले पत्रकार हैं और ग़रीब हैं, तो आपके खिलाफ कानून बहुत अच्छा काम करता दिखेगा. क्या दक्षिण दिल्ली के जसोला में अतिक्रमण हटाने का जो अभियान चला है, उसकी आड़ में किसी और जगह अतिक्रमण की तैयारी हो रही है?
अतिक्रमण की राजनीति के सुर बता रहे हैं कि अपने अपने तरीके से इसमें हिन्दू मुस्लिम चुना जा रहा है. अगर लोगों ने इसी भाषा में राजनीति को समझना है या राजनीति के लिए यही सब ज़रूरी है तो इससे बुरा क्या हो सकता है. इसकी आड़ में नुकसान केवल ग़रीब का हो रहा है. मंदिर और मस्जिद के लिए बोलने वाले तो आ जाते हैं, ग़रीब को रस्ते पर छोड़ दिया जाता है.
हमने ऐसा सर्वे कभी नहीं सुना कि किस पार्टी को जनता गुंडा पार्टी मानती है, आम आदमी पार्टी ने एक अजीब सर्वे किया है. हमने तो ऐसा सर्वे कभी नहीं सुना कि आप किस पार्टी को गुंडा पार्टी मानते हैं. सर्वे का रिज़ल्ट ट्विट पर आउट हो चुका है.
दिल्ली चुनावों में दोनों दल आमने-सामने हैं. लाउडस्पीकर औऱ बुलडोज़र के नाम पर एक समुदाय को टारगेट किया जा रहा है लेकिन इस झगड़े में ग़रीब की दुकान लुट रही है. क्या निगम के चुनाव गरीबों के घर और ठेले की
यह सही है कि आप महंगाई और बेरोज़गारी का सामना बहादुरी से कर रहे हैं और आपकी इस खूबी की तारीफ केवल मैंने की है लेकिन आप खुद भी अपनी तारीफ़ में इतना तो हिसाब करते होंगे कि महंगाई के कारण कितनी तेज़ी से पैसा उड़ता जा रहा है. मिडिल क्लास दबाव में है लेकिन उसे हिन्दू मुस्लिम टॉपिक के तनाव में उलझाया जा रहा है. अब तो आज रिज़र्व बैंक ने भी साफ साफ कह दिया कि महंगाई का राज अभी रहेगा. कितने दिन लाउडस्पीकर के नाम पर महंगाई के मसले से बचेंगे.
जैसे ही घोषणा हुई कि रिज़र्व बैंक के गवर्नर की प्रेस कांफ्रेंस होने वाली है, झूमता हुआ बाज़ार ढिमलाने लगा. सेसेंक्स 1000 अंकों से ज़्यादा गिरा और 56000 के नीचे बंद हुआ. सेंसेक्स और निफ्टी में 2.29 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. 2018 में रिज़र्व बैंक ने ब्याज दर में आपात कटौती कर दी थी, उसी तरह आज आपात वृद्धि कर दी गई. इससे EMI महंगी होगी, चीज़ों के दाम और बढ़ेंगे और जीवन स्तर महंगा होगा. लेकिन बिल्कुल न घबराएं, महंगाई से तकलीफ होने पर हाउसिंग सोसायटी के व्हाट्सएप ग्रुप में महंगाई के किसी भी सपोर्टर को फोन लगाएं,आपको राहत मिलेगी. अमरीका का फेडरल रिज़र्व ब्याज दर बढ़ाने वाला है इसलिए विदेशी निवेशक अमरीका की तरफ भाग रहे हैं लेकिन भारत के घरेलू निवेशक कहां भागे. बैंकों में बचत दर कम होने के कारण वे भाग कर शेयर बाज़ार की तरफ आए तो वहां से अनुभवी लोग कहीं और भागते नज़र आ रहे हैं. 2020 से लेकर अभी तक कई करोड़ नए डीमैट खाते खुले हैं. शेयर बाज़ार में इस समय बड़ी संख्या में नए घरेलू निवेशक हैं. सोच समझ कर पैसा लगाइये. मगर, धबराने की ज़रूरत नहीं है. बाज़ार में चलता रहता है.
Rani Sahu

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