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- शिक्षा की सूरत
Written by जनसत्ता: अगर हम किसी समाज, किसी देश का सर्वांगीण विकास चाहते हैं तो जरूरी है कि वहां के हर स्तर पर शिक्षा का बेहतर से बेहतर विकास हो। शिक्षा की सारी सुविधाएं उपलब्ध हों। वह शिक्षा गुणवत्ता और नैतिकता एवं रोजगारपरक हो, तो निश्चित तौर पर वह राष्ट्र विश्व के अग्रणी देशों में अपना परचम लहरा सकता है। शायद इसी को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र के सत्र सतत विकास लक्ष्यों में गुणवत्ता आधारित शिक्षा को चौथे क्रम में प्राथमिकता दी गई है।
हमारे देश में शहरी स्तर पर शिक्षा की स्थिति को बेहतर कही जा सकती है, लेकिन आज ग्रामीण स्तर पर शिक्षा की स्थिति बिल्कुल बेहतर नहीं है और आज इसके सामने कई गंभीर चुनौतियां खड़ी हुई हैं। मसलन, शिक्षक और विद्यार्थियों की संख्या का अनुपात संतुलित नहीं है। भारत के कई क्षेत्रों में दो से ढाई सौ बच्चों पर केवल एक शिक्षक ही सेवा दे रहा है। यह तथ्य सुनने में सामान्य लग सकता है, लेकिन स्थिति बहुत खराब है।
भारत के लगभग सभी राज्यों में सरकारी शिक्षक पदों पर भर्ती न करना, परीक्षा में देरी करना, परीक्षा भर्ती में होने वाला बेतहाशा भ्रष्टाचार। साथ ही, बेहतर अधोसंरचना का अभाव हम और आप अक्सर खबरों में पढ़ते और सुनते हैं कि गांव के सरकारी स्कूलों की क्या हालत है।
किसी कक्षा की छत से पानी टपक रहा है तो शौचालय टूटे-फूटे पड़े हैं। खेल परिसर का दूर-दूर तक पता नहीं है तो कहीं पानी के लिए बच्चे स्कूल से एक एक किलोमीटर दूर जाते हैं। कहीं सड़क नहीं है स्कूल तक पहुंचने के लिए तो बच्चे अपनी जान जोखिम में डालकर नदी पार कर स्कूल जाते हैं तो कहीं बारिश में स्कूल तक पहुंच दुर्लभ हो गई है।
इसके अलावा, दूरदराज के इलाकों या ग्रामीण स्तर पर शिक्षा को बेहतर करने की प्रतिस्पर्धा नहीं है। वहां की शिक्षा सरकारी तंत्र के भरोसे है। सरकारों ने गांव-गांव में उच्च माध्यमिक स्कूल तो खोल दिए हैं, लेकिन उनकी गुणवत्ता को लेकर कोई खास प्रयास नहीं किए हैं।
यह केवल आंकड़े में दिखाने के लिए है कि गांव में बारहवीं तक स्कूल उपलब्ध हो गया है। एक समस्या गांव में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है, जैसे बिजली, स्वच्छ जल, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, शहर और गांव के बीच बेहतर संपर्क का अभाव आदि।
इसके कारण महानगरों का शिक्षित वर्ग ग्रामीण स्तर पर सेवाएं देने से परहेज करते हैं। सरकारों ने सुधार लाने के लिए प्रयास किया है, लेकिन उतने बेहतर परिणाम नहीं दिखे जितने की आशा थी। इसलिए जरूरी है कि सरकारें और गंभीरता से इस ओर ध्यान दें।