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- यूक्रेन संकट का...

आर. विक्रम सिंह।
यह प्रश्न बहुत परेशान करने वाला है कि यदि यूक्रेन जैसा संप्रभु देश अपनी सुरक्षा के लिए नाटो सरीखे किसी सैन्य संगठन का हिस्सा बनना चाहे तो क्या उसे रूस जैसे ताकतवर पड़ोसियों की शर्तों पर चलना पड़ेगा और यहां तक कि उसके हमले का सामना करना पड़ेगा? इसी तरह एक प्रश्न यह भी उठ खड़ा हुआ है कि क्या आपकी अपनी संप्रभुता को किसी तीसरे देश की आशंकाओं का कारण बनना चाहिए? यूक्रेन पर रूस के हमले जारी हैं। इस अर्थहीन युद्ध में जनहानि भी बढ़ती जा रही है। सोवियत संघ के विघटन से जो देश बने, उनमें रूस के बाद यूक्रेन ही दूसरा सबसे बड़ा यूरोपीय देश है। सोवियत संघ के विघटन ने अमेरिका को एकमात्र वैश्विक शक्ति बना दिया। कतिपय अतिउत्साही अमेरिकी टिप्पणीकारों ने इस एकध्रुवीय काल को 'इतिहास का अंत' तक कह डाला। सोवियत रूस के विघटन से अस्तित्व में आए 15 देश किसी संघर्ष या आंदोलन की उपज नहीं थे। उनके पास जनसंघर्ष से निकले तपे हुए नेतागण नहीं, बल्कि नौकरशाह मनोवृत्ति के प्रशासक थे। वे संप्रभुता, लोकतंत्र और राष्ट्रीयता का अर्थ समझे बगैर स्वतंत्र देश के शासक बन गए थे। इन शासकों ने प्राय: लोकतांत्रिक व्यवस्था का उपयोग अपने सत्ताधिकार की औपचारिक स्वीकार्यता के लिए किया।
