सम्पादकीय

सुशासन की प्रतिमूर्ति का अवसान: मुख्यमंत्री के रूप में कल्याण सिंह ने जो फैसले लिए वे आज भी प्रतिमान माने जाते हैं

Tara Tandi
24 Aug 2021 3:24 AM GMT
सुशासन की प्रतिमूर्ति का अवसान: मुख्यमंत्री के रूप में कल्याण सिंह ने जो फैसले लिए वे आज भी प्रतिमान माने जाते हैं
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गांव की पगडंडियों से होते हुए राजनीति का ‘सिंह’ बनने वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राम मंदिर आंदोलन के प्रणेताओं में से एक श्रद्धेय कल्याण सिंह जी अब हमारे बीच नहीं है।

भूपेंद्र सिंह| गांव की पगडंडियों से होते हुए राजनीति का 'सिंह' बनने वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राम मंदिर आंदोलन के प्रणेताओं में से एक श्रद्धेय कल्याण सिंह जी अब हमारे बीच नहीं है।फिर भी राजनीति और व्यवस्था में उन्होंने जो लकीर खींची वह अनुकरणीय रहेगी। वह व्यवस्था के संचालन में हनक और धमक के प्रयोगधर्मी थे तो लोकजीवन में लोकराज और ग्रामराज के पक्षधर भी। उनका सूत्र था कि 'सत्ता धमक व इकबाल से चलती है। इससे सिस्टम कोलैप्स नहीं होता है। राजनेता का काम सिस्टम को बनाए रखना है।' वैचारिक दृष्टि से वह पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के 'एकात्म मानववाद' से प्रभावित थे। इसीलिए उनकी चिंता में समाज के प्रत्येक पीड़ित और वंचित व्यक्ति का दर्द और उसका समाधान ढूंढने की चेष्टा शामिल थी। एकात्म-मानववाद की मीमांसा में वह कहते थे कि 'पेट को आहार, मन को प्यार, मस्तिष्क को विचार और आत्मा को संस्कार, इन चारों का समुच्चय ही एकात्म-मानववाद है।' उनका मानना था कि रोटी, कपड़ा और मकान मानवीय जरूरतों का सिर्फ एक हिस्सा हैं। इससे मानवता परिपूर्ण नहीं होती। पेट के लिए आहार अनिवार्य है, लेकिन मनुष्य के पास एक अंत:करण भी है जिसे प्यार चाहिए। सच्चा अंत:करण वही है जो स्नेह, करुणा और समानुभूति से आप्लावित हो। समानुभूति का अर्थ है पीड़ित व्यक्ति के बराबर पीड़ा की अनुभूति। इसके आगे सहानुभूति बहुत ही सीमित अर्थ वाला शब्द है। इन विचारों से सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि कल्याण सिंह जी कतार में अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के साथ कितनी गहरी संवेदना के साथ जुड़े हुए थे।

मुख्यमंत्री के रूप में कल्याण सिंह के निर्णय मेरिट पर होते थे

वर्ष 1991 से 1999 के बीच दो सीमित कालखंडों में मिली सत्ता के दौरान उन्होंने जो फैसले लिए वे आज भी प्रतिमान माने जाते हैं। शासन संबंधी निर्णयों को लेकर वह एकदम स्पष्ट थे। उनके निर्णय मेरिट पर होते थे। जिले के अफसरों को उनका स्पष्ट निर्देश था कि अगर आप मेरिट पर फैसले नहीं कर सकते तो शाम तक जिले का चार्ज छोड़कर लखनऊ रिपोर्ट करिए। दूसरी ओर वह अधिकारियों के साथ भी खड़े थे। उनसे कहते थे कि भाजपा कार्यकर्ता आपके पास कोई काम लेकर आता है, यदि सही है तो वह जरूर होना चाहिए। अगर नहीं होने लायक है तो वह फिर किसी भी माध्यम से नहीं होना चाहिए। वह मानते थे कि सबको अपनी जिम्मेदारी उठानी चाहिए।

कल्याण की शासन व्यवस्था का मूल मंत्र था- भयमुक्त, भ्रष्टाचारमुक्त और दंगारहित प्रदेश

उनकी शासन व्यवस्था का मूल मंत्र था- भयमुक्त, भ्रष्टाचारमुक्त और दंगारहित प्रदेश। उनके कुछ महत्वपूर्ण निर्णय नजीर बने। उनमें से एक है संगठित अपराध और माफिया का खात्मा। कानून-व्यवस्था का उनका 'कल्याण माडल' आज भी विख्यात है। इसी माडल के तहत उनके पहले कार्यकाल में 1200 से अधिक अपराधी जेल भेजे गए थे। इसे और सशक्त बनाने के लिए उन्होंने 1998 में उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स यानी एसटीएफ बनाकर एक नए अध्याय की शुरुआत की थी। एसटीएफ ने कई कुख्यात अपराधियों और उनके आतंक की समाप्ति में निर्णायक भूमिका निभाई।

कल्याण सिंह ने नकल विरोधी कानून को सख्ती से लागू किया

उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले प्रदेश के सत्ताधीशों ने नकल का एक संगठित उद्योग खड़ा कर दिया था। उससे नकल माफिया की नई प्रजाति पैदा हो गई थी। बोर्ड परीक्षाएं मजाक बनकर रह गई थीं। कल्याण सिंह जी ने इस अराजक व्यवस्था के समूल नाश का संकल्प लिया। यह विषय अत्यंत संवेदनशील था और एक बड़ा वर्ग नकल पर चोट से क्षुब्ध भी था। उससे हुई आलोचना से विचलित हुए बिना 'जो उचित है, नैतिक है, वही ग्राह्य है' के सिद्धांत का अनुपालन करते हुए कल्याण सिंह जी ने नकल विरोधी कानून को सख्ती से लागू किया। उस कालखंड में उत्तीर्ण हुए लोग आज भी गर्व के साथ कहते हैं, 'हम कल्याण सरकार के जमाने के उत्तीर्ण हैं।'

गांवों को स्वायत्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए पंचायतों को शक्तिशाली बनाया

गांवों को स्वायत्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्होंने पंचायतों को शक्तिशाली बनाया। सत्ता के विकेंद्रीकरण की उनकी पहल के अंतर्गत प्रत्येक ग्राम पंचायत में ग्राम सचिवालय बनाने का निर्णय लिया गया। वह मानते थे कि स्थानीय निकायों को स्वायत्तता प्रदान करने, वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने और प्रशासनिक एवं वित्तीय अधिकार देने का जो ऐतिहासिक एवं क्रांतिकारी निर्णय लिया गया है, उसके सुखद व अनुकूल परिणाम आएंगे। जैसा उन्होंने सोचा वैसा ही हुआ भी।

कल्याण सिंह समाज के कमजोर और वंचित वर्ग के लोगों की सशक्त आवाज थे

वह समाज के कमजोर और वंचित वर्ग के लोगों की सशक्त आवाज थे। उन्होंने किसान, युवा और महिला सशक्तीकरण के लिए अनगिनत प्रयास किए। उनका समर्पण और सेवाभाव लोगों को हमेशा प्रेरित करता रहेगा। एक समय किसानों के पास अपनी जमीन का कोई औपचारिक दस्तावेज न होना एक बड़ी समस्या थी। इस कारण उन्हें तहसीलों के चक्कर काटने पड़ते थे। कल्याण सिंह जी ने इस पीड़ा की अनुभूति कर किसानों को उससे मुक्ति दिलाई। आज किसान बंधुओं के पास बैंक पासबुक की भांति जो किसान जोत बही होती है, वह उन्हीं की देन है। पूर्वांचल और बुंदेलखंड के पिछड़ेपन की टीस उन्हें हमेशा सालती रही। उन्होंने ही पूर्वांचल विकास निधि व बुंदेलखंड विकास निधि आरंभ की थी।

पीएम मोदी ने कहा- वह भले ही पंचतत्व में विलीन हो गए हों, लेकिन हमारी स्मृतियों में वह अमर हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कल्याण सिंह जी के योगदान पर उचित ही कहा कि उन्होंने भारतीय जनसंघ और भाजपा को एक विचार देने के साथ ही खुद को देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए समर्पित किया। कल्याण सिंह जी भारत के कोने-कोने में विश्वास का पर्याय बन गए थे। भारत की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। वह भारतीय मूल्यों में पूरी तरह रचे-बसे थे। अपनी सदियों पुरानी परंपरा पर उन्हें गर्व था। वह भले ही अब पंचतत्व में विलीन हो गए हों, लेकिन हमारी स्मृतियों में वह अमर हैं। जब भी शासन सत्ता के कर्तव्यों-दायित्वों की चर्चा होगी, नेतृत्व की परिभाषा लिखी जाएगी और शुचिता, नैतिकता, पारदर्शिता एवं सुशासन पर विमर्श होगा, वह कल्याण सिंह जी के बिना अधूरा ही रहेगा।

कल्याण सिंह का पांच दशक से अधिक का सार्वजनिक जीवन

पांच दशक से अधिक लंबे उनके सार्वजनिक जीवन के प्रत्येक कालखंड का स्मरण एक विशिष्ट ऊर्जा का संचार करता है। चाहे कोटि-कोटि आस्था के अवलंब मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के मंदिर निर्माण महायज्ञ में तपोव्रतधारी हों या संकल्प पूूूर्ति हेतु सत्ता को त्यागने वाले राजनीतिक संत अथवा अपनी दूरदर्शी नीतियों से शासन सत्ता के लिए नवीन मानक स्थापित करने वाले विराट व्यक्तित्व, कल्याण सिंह का स्मरण एक विशिष्ट आभा से आलोकित करता है। उनकी लिखी ये पंक्तियां सहज ही उनकी अनुभूति कराती रहेंगी।

मैं जन्मा आजाद मुझे बंधन स्वीकार नहीं

यों तो बहती धारा में शव भी बह जाते हैं,

धार मोड़ कर जीवट वाले ही चल पाते हैं।

प्रण वाले को प्रण प्यारा प्राणों से प्यार नहीं,

मैं जन्मा आजाद मुझे बंधन स्वीकार नहीं।



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