सम्पादकीय

रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न ऊर्जा संकट से परमाणु ऊर्जा की खोज की जरूरत फिर से बढ़ी

Gulabi Jagat
8 May 2022 7:11 AM GMT
रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न ऊर्जा संकट से परमाणु ऊर्जा की खोज की जरूरत फिर से बढ़ी
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रूस-यूक्रेन युद्ध
के वी रमेश |
जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने गुरुवार को बयान दिया कि उनका देश रूसी ऊर्जा आपूर्ति पर निर्भरता को कम करने के लिए दोबारा परमाणु ऊर्जा (Nuclear Power) के इस्तेमाल के विकल्प पर सोचेगा. यह दिखाता है कि एक दशक से ज्यादा समय तक परमाणु विकल्प से दूर रहने के बाद अब विश्व दोबारा परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल के बारे में गंभीरता सोच रहा है. जापान उन देशों में से एक है जो यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का समर्थन करता है. जुलाई में चुनाव का सामना करने को तैयार किशिदा के अनुसार, जापान अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देगा और अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने के लिए अपने रिएक्टरों को दोबारा इस्तेमाल में लाएगा.
भूकंप से आई सुनामी के बाद फुकुशिमा दाइची परमाणु ऊर्जा परिसर में एक गंभीर दुर्घटना के कारण जापान ने अपने 17 परमाणु रिएक्टरों में से 11 को बंद कर दिया. दाइची और डेनी संयंत्रों में तीन टोक्योपावर कंपनी (टीईपीसीओ) के कर्मचारी सीधे भूकंप और सूनामी से मारे गए. हालांकि, परमाणु दुर्घटना से कोई मौत नहीं हुई. बावजूद इसके, विकिरण के कारण हजारों लोग प्रभावित हुए हैं.
किशिदा ने कहा कि, 'जापान अपने ऊर्जा स्रोतों का आधार व्यापक करेगा और देश की ऊर्जा आत्मनिर्भरता की कमजोरियों को दूर करेगा.' किशिदा के मुताबिक, 'हम रूसी ऊर्जा पर निर्भरता को दुनिया भर में कम करने में योगदान देने के लिए सुरक्षा आश्वासन के साथ परमाणु रिएक्टरों काइस्तेमाल करेंगे.'
जापान अपनी ऊर्जा जरूरतों का 88 प्रतिशत आयात करता है. एक दशक से अधिक समय से जापान अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है. पश्चिम एशिया से जीवाश्म ईंधन में कमी कर जापान ऊर्जा के लिए रूस पर ज्यादा आश्रित हो गया.
यूक्रेन संकट और उसके कारण उपजे पश्चिमी प्रतिबंधों का जापान समर्थन करता है. इसने रूस को काबू में रखते हुए अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में जापान के लिए समस्याएं पैदा कर दी हैं. किशिदा ने कहा, 'केवल एक मौजूदा परमाणु रिएक्टर को फिर से चालू करने से वैश्विक बाजार में प्रति वर्ष एक मिलियन टन नए एलएनजी (तरल प्राकृतिक गैस) की आपूर्ति के बराबर प्रभाव पड़ेगा.'
फुकुशिमा दुर्घटना ने दुनिया को झकझोर कर रख दिया. दुनिया भर में परमाणु ऊर्जा के खिलाफमाहौल बना जिससे ज्यादातर देश परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों को बंद करने या उनकी क्षमता कम करनेपर मजबूर हो गए. जर्मनी ने अपने अधिकांश रिएक्टरों को बंद कर दिया और अब केवल 17 बेहतर सुरक्षा और बेहतरमानकों के साथ चल रहे हैं. लेकिन अब ऊर्जा आपूर्ति के लिए रूस पर अपनी निर्भरता कम करने केलिए जर्मनी अपने निष्क्रिय रिएक्टरों को दोबारा चालू करने पर विचार कर रहा है.
फुकुशिमा आपदा के बावजूद कई देशों ने अपने परमाणु रिएक्टर संचालन को कम नहीं किया लेकिन सुरक्षा के नियमों को कड़ा कर दिया. इस वक्त दुनिया भर में बत्तीस देश परमाणु ऊर्जा संयंत्र संचालित करते हैं. दुनिया की लगभग 10.3 प्रतिशत बिजली करीब 440 परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों से बनती है. करीब 55 और परमाणु रिएक्टर बनाए जा रहे हैं. कई देश क्षेत्रीय ट्रांसमिशन ग्रिड के माध्यम से परमाणु ऊर्जा स्टेशनों में उत्पन्न बिजली का आयात करते हैं. इटली और डेनमार्क अपनी बिजली का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा आयातित परमाणु ऊर्जा से प्राप्त करते हैं.
विश्व में उत्पादित कुल ऊर्जा में से 36.7 प्रतिशत कोयला जलाने से, 23.5 गैस से, 16 प्रतिशत जलविद्युत बांधों से, 10.3 प्रतिशत परमाणु से, 8.2 प्रतिशत सौर, पवन या तरंग ऊर्जा जैसे अक्षयस्रोतों से और 2.8 प्रतिशत तेल से प्राप्त होता है. 2020 में रखरखाव के लिए संयंत्र बंद होने के कारण 2019 के मुकाबले थोड़ी कम बिजली उत्तपन्नहुई जो करीब 2,553 टीडब्ल्यूएच (टेरा वाट घंटे) रही. परमाणु ऊर्जा उत्पादन का लाभ यह है कि कोयले, तेल या गैस से चलने वाले संयंत्रों के उलट इनका उत्पादन स्थिर रहता है. आपूर्ति की बाधाएं इन्हें प्रभावित नहीं करतीं.
इसमें कार्बन फुटप्रिंट भी कम रहता है और अगर शुरुआती लागत को छोड़ दें तो ये चलाने में काफी किफायती हैं. फ्रांस में वस्तुतः परमाणु ऊर्जा का ही इस्तेमाल होता है. देश की 80 प्रतिशत से अधिक ऊर्जा जरूरतें इसके परमाणु रिएक्टरों से पूरी की जाती हैं. यह एकमात्र देश है जिसकी ऊर्जा का मुख्य स्रोत परमाणुहै. परमाणु ऊर्जा उत्पादन में अमेरिका और चीन शीर्ष पर हैं जबकी इस सूची में भारत तेरहवें स्थान पर है. नवंबर 2020 तक भारत के सात परमाणु ऊर्जा केंद्रों में 22 परमाणु रिएक्टर चल रहे हैं, जिनकी कुल क्षमता 7,380 मेगावाट है. 2020-21 में परमाणु ऊर्जा ने कुल 43 टीडब्ल्यूएच का उत्पादन किया जो देश में कुल बिजली उत्पादन का 3.11 प्रतिशत है.
भारत का देश के विकास के लिए परमाणु ऊर्जा की खोज का एक लंबा इतिहास रहा है. होमी जहांगीर भाभा और विक्रम साराभाई जैसे लोगों के कारण भारत परमाणु ऊर्जा विकल्प चुनने वाला पहला विकासशील देश रहा. शुरुआत में कनाडा के सहयोग से भारतीय परमाणु कार्यक्रम एक विशाल तंत्र को रूप में फैल गया. बाद में भारत को तत्कालीन सोवियत संघ का साथ मिला. भारत ने 1974 में अपना पहला शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट (पीएनई) किया जिसने परमाणु हथियार-सक्षम देश के रूप में वैश्विक परिदृश्य पर देश के आगमन की घोषणा कर दी.
सत्तर के दशक के अंत में परीक्षण की एक दूसरी श्रृंखला ने परमाणु हथियार वाले देश के रूप में भारतकी स्थिति को पुष्ट कर दिया. हालांकि इस कारण भारत पर गंभीर प्रतिबंध लगाए गए मगर चतुराई से बातचीत के कारण भारत इस मुश्किल से आसानी से बाहर निकल आया. देश का विकास, विश्व की उभरती आर्थिक शक्ति और सायंस और टेक्नोलॉजी में सुपरपावर के रूपमें भारत को तब मान्यता मिल गई जब अमेरिका ने उसके साथ 123 समझौते पर हस्ताक्षर किया. परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर करने से इनकार करने वाले किसी देश के साथ दुनिया में पहला ऐसा समझौता था.
मगर इस समझौते का भारत में राजनीतिक दलों ने उससे होने वाले फायदे और महत्व को नजरअंदाज करते हुए केवल वैचारिक मतभेद के कारण विरोध किया. अमेरिका भारत को कई न्यूक्लियर रिएक्टरों के अनुबंध के बदले अत्याधुनिक परमाणु प्रौद्योगिकी देने के लिए सहमत हो गया था. मगर तब भारत मेंदक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों ही विचारधारा वाली पार्टियों ने इसका विरोध किया. इसके अतिरिक्त फुकुशिमा आपदा ने भारतीय परमाणु कार्यक्रम पर भी अपना असर डाला जो पहले से ही हादसा होने पर मुआवजा कौन देगा इस प्रश्न को लेकर मतभेदों से गुजर रहा था. परमाणु रिएक्टरों के कॉन्ट्रैक्टरों ने हादसा होने पर मुआवजा देने से इनकार कर दिया था.
फुकुशिमा हादसा और उसके कारण तमिलनाडु के कुडनकुलम परमाणु केंद्र के खिलाफ आंदोलन नेभारत के परमाणु ऊर्जा विस्तार कार्यक्रम को ठंडे बस्ते में डाल दिया. लेकिन सीओपी-26 विचार विमर्श में भारत ने 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो करने परसहमति जताई जिस कारण उसे सबसे ज्यादा प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जित करने वाले ईंधन स्रोतकोयले और तेल पर अपनी निर्भरता कम करनी थी और अक्षय ऊर्जा स्रोतों की तरफ बढ़ना था. भारत अपने सौर ऊर्जा स्रोतों का विस्तार कर सकता है, लेकिन जलविद्युत उत्पादन में इसकी पहुंच पर्यावरण से संबंधित कारणों से सीमित है. ऐसे में कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करके ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि करना भारत की मजबूरी है.
भारत के लिए समस्या यह है कि वह कई दूसरे देशों की तरह यूरेनियम को लेकर समृद्ध नहीं है. भारतपरमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) का हिस्सा बनना चाहता था मगर यूरेनियम का व्यापार करने वाले ऑस्ट्रेलिया और चीन ने इसका भरपूर विरोध किया. 48 देशों के इस समूह की सदस्यता भारत की यूरेनियम आपूर्ति को आसान बना सकती है. उम्मीद है कि इस साल भारत एनएसजी का सदस्य बन जाए. ऐसे में आज जब दुनिया दो कारणों रूसी ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम करने और नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए परमाणु ऊर्जा की तरफ लौटने पर दोबारा विचार कररही है, अब तक सबसे गंदे ऊर्जा स्रोत के रूप में देखा जाने वाला परमाणु ऊर्जा अब सबका पसंदीदा विकल्प होता जा रहा है.
भारत के लिए परमाणु ऊर्जा उत्पादन अक्षय ऊर्जा के साथ ऊर्जा की जरूरत को पूरा करने के लिए उसकी भविष्य की योजना का हिस्सा है. अगर जापान और जर्मनी अपने परमाणु विकल्पों पर दोबारा विचार कर सकते हैं तो भारत को भी न सिर्फ इस पर विचार करना चाहिए बल्कि परमाणु विकल्प का इस्तेमाल भी करना ही चाहिए.

(आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)

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