सम्पादकीय

जलवायु परिवर्तन का असर दिखना शुरू, अब इसके सबसे बुरे प्रभावों से बचना ही एक मात्र रास्ता

Rani Sahu
7 April 2022 8:48 AM GMT
जलवायु परिवर्तन का असर दिखना शुरू, अब इसके सबसे बुरे प्रभावों से बचना ही एक मात्र रास्ता
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ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) की वजह से जलवायु परिवर्तन (Climate Change) हो रहा है

राजेश सिन्हा

ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) की वजह से जलवायु परिवर्तन (Climate Change) हो रहा है. IPCC (The Intergovernmental Panel on Climate Change) जो कह रहा है वह इसके विस्तार और प्रभावों को कम करने की कोशिश करना है. अपने चारों ओर देखें और आप इसे हर जगह पाएंगे. पिछला महीना (मार्च) (March) भारत के इतिहास का अब तक का सबसे ज्यादा गर्म महीना था. मार्च में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया. यह तापमान आमतौर पर अप्रैल महीने में भी नहीं देखा जाता था. ऐसा अमूमन मई और जून के भयंकर गर्मी के महीनों में होता है.
भारत के पूर्वी तट के किनारे के कई गांव समुद्र के बढ़ते स्तर, चक्रवात और अन्य पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित हुए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे तटीय इलाकों जिनमें ओडिशा, आंध्र प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों के गांव शामिल हैं, वहां से लोग दूसरे राज्यों में पलायन कर चुके हैं. आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के एक तटीय गांव उप्पदा को पिछले कुछ सालों में समुद्री पानी के गांव में घुसने की समस्या का सामना करना पड़ा है. गांव की आधी तटरेखा में शायद ही कोई रेतीला समुद्री तट बचा हो. ऊंची ज्वार की लहरों ने घरों को क्षतिग्रस्त कर दिया है, जिसकी वजह से सैकड़ों लोग अपने घरों को छोड़कर जाने के लिए मजबूर हो गए हैं.
केंद्रपाड़ा जिले के सतभया में सात गांव धीरे-धीरे समुद्र में डूब गए
श्रीकाकुलम जिले के उत्तर में लगभग 240 किमी दूर कलिंगपट्टम एक और गांव है जो समुद्र के बढ़ते जलस्तर से प्रभावित हुआ है. पहले यह समुद्र से 500 मीटर की दूरी पर हुआ करता था और अब इसके ठीक बगल में है. ओडिशा में कुछ तटीय समुदायों को पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा. केंद्रपाड़ा जिले के सतभया में सात गांव धीरे-धीरे समुद्र में डूब गए. इसके बाद वहां के समुदायों को बागपतिया (Bagapatia) में बसाया गया.
इससे एक और गंभीर रूप से प्रभावित हिस्सा सुंदरबन क्षेत्र है. जहां 104 द्वीपों में से 54 बसे हुए हैं. यह कई दशकों से समुद्र के स्तर में वृद्धि और तटीय कटाव के लगातार खतरे का सामना कर रहा है. सुंदरवन डेल्टा के साथ औसत वार्षिक समुद्र-स्तर की वृद्धि आठ मिलीमीटर है, जो ग्लोबल एवरेज से कहीं ज्यादा है. हालात बदतर करने के लिए सुंदरबन और इसका डेल्टा साल में करीब दो से चार मिलीमीटर की दर से डूब रहे हैं. आने वाले सालों में दस लाख से ज्यादा लोगों को यहां से दूसरे हिस्सों में स्थानांतरित करने की जरूरत होगी.
21वीं सदी के अंत तक तटीय क्षेत्र पानी के नीचे जा सकते हैं
एक महीने पहले जारी IPCC की प्रारंभिक रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्र के बढ़ते स्तर से सदी के अंत तक देश के 12 तटीय शहरों के पानी में डूबने का खतरा है. जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि सदी के अंत तक ये शहर लगभग तीन फीट पानी के अंदर जा सकते हैं. इनमें दूसरे शहरों के साथ मुंबई, चेन्नई, कोच्चि और विशाखापट्टनम शामिल हैं. एशिया में भारत की 7,500 किलोमीटर की सबसे लंबी समुद्री तटरेखा है. 2011 की जनगणना के अनुसार इस लंबी तटरेखा में 486 से अधिक शहरी इलाके शामिल हैं, जहां लगभग 41.7 मिलियन लोग (ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की आबादी को मिलाकर भी उसकी तुलना में अधिक आबादी) रहते हैं.
जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पादकता में कमी
मौसम और संसाधनों जैसे पानी और भोजन पर प्रभाव डालने के अलावा गर्म जलवायु सीधे अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती है, क्योंकि ज्यादा तापमान मजदूरों के काम को और मुश्किल बना देता है जिससे उनकी उत्पादकता कम हो जाती है. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक 2030 तक गर्मी के कारण उत्पादकता में कमी भारत के 3.4 करोड़ फुल टाइम जॉब (1995 में 1.5 करोड़ से ऊपर) को खोने के बराबर हो सकती है. जो दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देशों में सबसे ज्यादा है.
खासतौर से आर्द्रता (Humidity) के साथ बढ़ता तापमान और भी घातक हो सकता है. ड्यूक यूनिवर्सिटी की एक स्टडी के मुताबिक भारत मौजूदा समय में मजदूरों पर आर्द्रता और गर्मी के प्रभाव के कारण सालाना लगभग 259 बिलियन घंटे खो रहा है. जो 110 बिलियन घंटे के पिछले अनुमान से दोगुना से भी ज्यादा है.
गर्मी जब खासतौर से आर्द्रता के साथ मिलती है तो कृषि या निर्माण जैसे भारी काम करने वाले लोगों की काम की रफ्तार धीमी कर सकती है. जैसे-जैसे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण जलवायु और अधिक गर्म होती जा रही है वैसे-वैसे गर्मी के बढ़ने के कारण काम पूरा होने में ज्यादा समय लग रहा है. यानी प्रोडक्टिविटी (उत्पादकता) कम हो रही है. भारत में जहां पिछले महीने ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए उसे देखते हुए लग रहा है कि गर्मी के महीने मई-जून बहुत तनावपूर्ण होंगे. देश की अर्थव्यवस्था पहले से ही तनावपूर्ण है ऐसे में आर्थिक गतिविधियों पर एक और मुश्किल झेलने के लिए यह तैयार नहीं है.
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