सम्पादकीय

कारोबारी परिवेश निर्माण के साथ आगे बढ रही उत्‍तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था

Rani Sahu
24 Feb 2022 1:45 PM GMT
कारोबारी परिवेश निर्माण के साथ आगे बढ रही उत्‍तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था
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किसी भी राज्य की प्रगति इस तथ्य पर आधारित होती है कि राज्य के पास कितनी पोटैंशियल (यानी राज्य के पास कितनी प्राकृतिक, भौतिक और मानवीय संपदा) है

डा. रहीस सिंह।

किसी भी राज्य की प्रगति इस तथ्य पर आधारित होती है कि राज्य के पास कितनी पोटैंशियल (यानी राज्य के पास कितनी प्राकृतिक, भौतिक और मानवीय संपदा) है और लीडरशिप का विजन व उसकी प्रबंधन क्षमता कितनी है। अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करें तो वर्ष 2017 से ठीक पहले के लगभग तीन दशकों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, आर्थिक विकास और अर्थव्यवस्था के वितरण में कुशलता, दक्षता और समयबद्ध परिणाम देने की प्रक्रिया के साथ-साथ पारदर्शिता की बेहद कमी रही। परिणाम यह हुआ कि इन दशकों में राज्य उत्तरोत्तर गैर-विकासवादी प्रतिस्पर्धा की ओर बढ़ा, फलत: बुनियादी ढांचा और विकास नेपथ्य में चला गया, परंपरागत उद्यम मृतप्राय हुआ और सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग सेक्टर बीमार हुआ, कृषि तकनीकी उन्नयन से वंचित हुई, बेरोजगारी और गरीबी बढ़ी जिससे सामाजिक संरचना में तमाम विभाजक रेखाएं खिंच गईं। प्राकृतिक, भौतिक और मानव संपदा से संपन्न उत्तर प्रदेश बीमारू राज्य की श्रेणी में पहुंच गया।

वैश्वीकरण ने विकास का एक नया माडल दिया था जिसमें 'ट्रिकल डाउनÓ विकास को नीचे तक पहुंचाने का सबसे बेहतर उपकरण करार दिया गया। लेकिन हुआ क्या? 'बाटम आफ पिरामिडÓ तक विकास तो पहुंचा ही नहीं, बीच में ही अवशोषित कर लिया गया। फिर समरसता कहां से आती? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 'जैमÓ (जनधन-आधार-मोबाइल) माडल ने सरकार की सब्सिडी की लीकेज को रोक दिया। डीबीटी यानी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की व्यवस्था ने सीधे उसे ही लाभ पहुंचाया जो इसका हकदार था। परिणामस्वरूप 'बाटम आफ पिरामिडÓ नई शक्ति हासिल करने लगा। उत्तर प्रदेश इस व्यवस्था में देश के अंदर सबसे आगे रहा। स्वाभाविक है कि अन्य राज्यों की तुलना में उत्तर प्रदेश में उन लोगों की संख्या कहीं ज्यादा होगी जो 'जैम ट्रिनिटीÓ से लाभान्वित हुए। इसके माध्यम से राज्य में करोड़ों लोगों को अनेक प्रकार से लाभ मिला।
बहुत से अध्ययन बताते हैं कि उत्तर प्रदेश के पास प्रदेश के पास एक बड़ा बाजार है और कुशल मानव पूंजी है। वर्ष 2017 के बाद प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में बुनियादी ढांचा एवं संपर्क, कानून एवं व्यवस्था, निवेश आकर्षण तथा कारोबारी परिवेश के निर्माण की दिशा में अभूतपूर्व कदम उठाए। ईज आफ डूइंग बिजनेस उत्तर प्रदेश की रैंकिंग का 14वें पायदान से दूसरे पायदान तक पहुंचना इसका प्रमाण है। इसी के फलस्वरूप उत्तर प्रदेश के प्रति व्यवसायियों व निवेशकों की अवधारणा बदली और यह प्रदेश बीमारू से संभावनाओं की भूमि बना
दरअसल इसकी वास्तविक नींव मुख्यमंत्री ने इन्वेस्टर्स समिट (फरवरी 2018) में ही रख दी थी जिसमें देश भर के उद्यमी एवं निवेशक शामिल हुए और 4.68 लाख करोड़ रुपये के मेमोरेंडम आफ अंडरस्टैंडिंग्स (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए थे। इससे पहले ही औद्योगिक नीति 2017 के माध्यम से विकास की दिशा स्पष्ट कर दी गई जिसे बाद में इन्वेस्ट यूपी के माध्यम से प्रक्रिया को सरल, पारदर्शी, समयबद्ध (टाइमबाउंड) और जवाबदेह बनाकर गति प्रदान की गई। इससे प्रदेश की अर्थव्यवस्था के लिए एक ऐसा परिवेश निर्मित हुआ जो अर्थव्यवस्था को प्रगतिशील बनाने के साथ-साथ तेजी से आगे बढऩे की ओर ले जाने के लिए समर्थ था। इसका परिणाम सामने है।
एक बात और, आर्थिक विकास में धारणीयता हो, तीव्रता हो और समावेशिता हो, यह संतुलित विकास के लिए जरूरी होता है। इस दिशा में ग्रामीण स्वास्थ्य, ग्रामीण कल्याण और ग्रामीण विकास में आधारभूत परिवर्तन एवं तेजी लाने की जरूरत थी, क्योंकि जब तक सामाजिक-आर्थिक विकास एवं कल्याण की स्थापना नहीं होगी, तब तक ऐसी बहुत सी विभाजक रेखाएं समाप्त नहीं होंगी, जो विकास में बाधक थीं। जब तक सामाजिक स्वरूप में परिवर्तन नहीं होगा, समाज अर्थव्यवस्था के विकास के मामले में प्रतिस्पर्धी नहीं हो पाएगा। यह बदलाव हुआ, जिसे आज स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जैसे-जिन गरीबों को पक्का मकान मिला उसने पात्र व्यक्तियों को मकान के साथ-साथ आत्मनिर्भर बनने का अवसर दिया और बाजार की मांग को तेज कर आपूर्ति पक्ष को उत्पादन के लिए प्रेरित किया। इससे मल्टीपल स्तर पर रोजगार का सृजन व आय में वृद्धि निहित होती है। राज्य सरकार ने यदि दर्जनों अधूरी सिंचाई योजनाओं को पूरा कर 22 लाख अतिरिक्त सिंचन क्षमता का सृजन किया उससे कृषकों को मुफ्त पानी मिला।
यानी उसका ईंधन पर होने वाला व्यय बचा, उसका श्रम और समय बचा तथा समय पर सिंचाई के लिए मिले पर्याप्त पानी ने कृषि पर लागत कम करने के साथ-साथ किसान की आय में वृद्धि की। केंद्र और प्रदेश सरकार द्वारा 15 करोड़ लोगों को महीने में दो बार राशन दिया गया। इसने परिवारों की भूख की चिंता को समाप्त कर दिया। इसके साथ ही, यदि एक करोड़ वृद्धजनों, निराश्रित महिलाओं और दिव्यांगजनों को 12 हजार रुपये सालाना दिया जा रहा है तो स्वाभाविक रूप से यह उनके जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं पर खर्च होता होगा। विभिन्न प्रकार की सहायता योजनाओं के तहत प्रदेश के नागरिकों को दी गई सहायता राशि ने एक तरफ उनके जीवन को खुशहाल और चिंतामुक्त बनाने का काम किया तो दूसरी तरफ बाजार की मांग-आपूर्ति चेन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यही कारण है कि जब कोरोना कालखंड में अन्य राज्यों में मांग और आपूर्ति चेन लडख़ड़ाई, उद्यम बंद हुए और लोग बेरोजगार हुए, तब उत्तर प्रदेश सभी के बीच संतुलन साधते हुए तेजी से आगे बढ़ता रहा।
पिछले कुछ दशकों पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश में पर्यटन अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में बहुत पीछे चला गया था। योगी सरकार ने अयोध्या में दीपोत्सव एवं प्रयागराज में भव्य एवं दिव्य कुंभ का आयोजन कर उत्तर प्रदेश में सांस्कृतिक-आध्यात्मिक अर्थव्यवस्था की एक नई शुरूआत की। संस्कृति और अध्यात्म आधारित अर्थव्यवस्था आने वाले समय में केवल अर्थव्यवस्था में ही मल्टीप्लायर की भूमिका नहीं निभाएगी, बल्कि ईज आफ लिविंग और हैपीनेस का मूलभूत आधार साबित होगी। इस दृष्टि से देखें तो पिछले पांच वर्षों में उत्तर प्रदेश में अर्थव्यवस्था के जिस माडल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विकसित किया है, उसमें अंत्योदय संबंधी ध्येय पथ तो है ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, आध्यात्मिक-सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था और हैपीनेस का मंत्र तथा 'आत्मनिर्भरताÓ की कुंजी भी है।
Rani Sahu

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