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पहली तिमाही के लिए जीडीपी वृद्धि के 20.1% के आकंड़े ने गंभीर बहस शुरू कर दी है कि क्या अर्थव्यवस्था पटरी पर आ गई है
मदन सबनवीस। पहली तिमाही के लिए जीडीपी वृद्धि के 20.1% के आकंड़े ने गंभीर बहस शुरू कर दी है कि क्या अर्थव्यवस्था पटरी पर आ गई है। कुछ का कहना है कि इससे 'वी' आकार की रिकवरी का संकेत मिलता है। ऐसा है भी क्योंकि पिछले वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में 24.4% की गिरावट रही थी, ऐसे में कोई भी वृद्धि तेज लगेगी। इन आकंड़ों को कैसे समझें? जीडीपी के आंकड़े बताते हैं कि हम बमुश्किल 90-91% महामारी के पहले के स्तर तक पहुंचे हैं और इसलिए भले ही कुल आकंड़ों में बढ़त अच्छी हो लेकिन अब भी लंबा सफर बाकी है।
हालांकि इन आंकड़ों की व्याख्या कुछ अलग भी हो सकती है। क्या हमें इनके बारे में खुश होना चाहिए? हां, यह संतोषजनक है क्योंकि इस साल की पहली तिमाही में दो महीने लॉकडाउन था, जो पिछले साल से अलग था क्योंकि इसे अलग-अलग राज्य लागू कर रहे थे। इसलिए सर्विस के कई सेक्टरों में अर्थव्यवस्था बंद थी। गैर-जरूरी चीजों की बिक्री पर रोक भी समस्या थी। इसलिए आशंका थी कि अर्थव्यवस्था काफी प्रभावित होगी। इसलिए इस तिमाही में 20% की बढ़त दिलासा देती है कि हम बहुत नहीं पिछड़े। लेकिन हम उस असली रिकवरी से दूर हैं, जहां बिजनेस तेजी से बढ़ें और नई नौकरियां आएं।
आर्थिक आंकड़े सावधानीपूर्वक देखना जरूरी है। विनिर्माण के लिए खरीद प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) जुलाई में 55.3 था, लेकिन अगस्त में 52.3 पर आ गया। वहीं सेवाओं के लिए पीएमआई जुलाई के 45.4 से बढ़कर अगस्त में प्रभावशाली 56.7 हो गया है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस सेक्टर में 'वी'आकार की रिकवरी हुई, लेकिन याद रखें कि पीएमआई कंपनियों के सर्वे पर आधारित होता है, जिसमें उनसे पूछा जाता है कि पिछले महीने की तुलना में मौजूदा महीना कितना बेहतर रहा।
चूंकि जुलाई में सभी सेवाएं लगभग बंद थीं, इसलिए स्वाभाविक है कि अगस्त में चीजें खुलने पर उनकी स्थिति बेहतर होगी। लेकिन सितंबर के लिए यही पीएमआई बने रहने की संभावना कम दिख रही है। हमें अर्थव्यव्सथा की रिकवरी समझने के लिए यह नियम बना लेना चाहिए कि कम से कम तीन महीनों तक लगातार बढ़त देखें।
इस बीच सरकार से खर्च के रूप में कुछ प्रोत्साहन की उम्मीद की जा रही है। अब तक रुझान यह रहा है कि सरकार ने राजस्व खर्च को नियंत्रित रखा है। इसलिए राजकोषीय घाटा भी नियंत्रण में है। इसलिए फिलहाल नहीं लगता कि सरकार सीधे तौर पर प्रोत्साहन के जरिए खर्च बढ़ाएगी। सरकार के लिए मुख्य चिंता संपत्ति को लेकर है।
सबसे पहले 1.75 लाख करोड़ का विनिवेश कार्यक्रम अभी पूरी तरह से शुरू नहीं हुआ है। एलआईसी, एयर इंडिया और बीपीसीएल, इन तीन कंपनियों पर बाजार की नजर है। इस वर्ष कमी स्पष्ट रूप से राजकोषीय घाटे में वृद्धि का कारण बनेगी। दूसरा, सरकार की हाल ही में घोषित संपत्ति मुद्रीकरण योजना में विभिन्न सेक्टर की संपत्तियां बेचकर 88,000 करोड़ रुपए जुटाने की बात है। यह विभिन्न सार्वजनिक उपक्रमों के साथ मंत्रालयों की संपत्ति को 25 साल के लिए लीज पर देकर या इनविट जारी कर पीपीपी के जरिए 6 लाख करोड़ रुपए जुटाने की महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा है।
इसका मतलब है कि संपत्ति मुद्रीकरण, विनिवेश और निजी क्षेत्र से नियमित इक्विटी आईपीओ के कारण बाजार में बहुत अधिक संपत्ति की बिक्री होगी। लेकिन क्या बाजार ऐसी बिक्रियों को फाइनेंस करने के लिए तैयार है? सिस्टम में आईपीओ की झड़ी लगी है, जिसमें विभिन्न कंपनियां निवेशकों से भारी प्रीमियम लेने में सफल रही हैं। सरकार के लिए चुनौती यह है कि जब तक यह विनिवेश और मुद्रीकरण का कार्यक्रम शुरू होगा, तब तक साल की आखिरी तिमाही होगी और ऐसी संपत्तियों के लिए भूख कम हो सकती है।
साथ ही निवेशकों के संसाधन भी खत्म होंगे। आज बैंकों द्वारा दी जा रही कम दरों के कारण परिवार पूंजी बाजार में ज्यादा रिटर्न तलाश रहे हैं। तब विदेशी निवेशक भी अपने पोर्टफोलियो पर पुनर्विचार कर रहे होंगे। इसलिए फंड का प्रवाह अनिश्चित और अस्थिर रहेगा। इसलिए जबकि अर्थव्यवस्था इस वर्ष 9% की वृद्धि के सही रास्ते पर है और ऐसा लगता है कि हमने दूसरी लहर का सामना, पहली से बेहतर ढंग से किया है। वहीं मार्च तक पहुंचते-पहुंचते, इस वृद्धि के लिए वित्त पोषण, जिसमें न केवल निजी क्षेत्र बल्कि सरकारी लक्ष्य भी शामिल हैं, पर काफी दबाव होगा। अगले कुछ महीने बहुत महत्वपूर्ण हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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